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प्रो. (डॉ.) जितराम पाठक के व्यक्तित्व आ कृतित्व : पर्यावलोकन - प्रो. (डॉ.) जयकान्त सिंह 'जय'

प्रो. (डॉ.) जितराम पाठक के व्यक्तित्व आ कृतित्व : पर्यावलोकन - प्रो. (डॉ.) जयकान्त सिंह 'जय' प्रो. (डॉ.) जितराम पाठक का व्यक्तित्व आ कृतित्व के पर्यावलोकन आज एह से समीचीन बा, काहे कि ऊ भोजपुरी भाषा, साहित्य आ आलोचना के मानक रूप स्थापित करे के उतजोग ओही घरी प्रारंभ कर देले रहस जब कुछ जन के छोड़ के संस्कृत, हिन्दी आ अंगरेजी के प्रायः हर छोट - बड़ विद्वान भोजपुरी के हिन्दी के बोली भा उपभाषा बतावत विमर्श के हल्का कर देत रहस, एकरा के लोकभाषा से आगे आधुनिक साहित्य के भाषा माने से साफे इंकार कर देत रहस आ एकरा वर्तनी, व्याकरणिक बनावट, लिपि, शब्दकोष आउर आलोचना के लेके तरह-तरह के प्रश्न खड़ा करत रहस। ओह समय में पाठक जी बिना कवनो विज्ञापन आ प्रचार - तंत्र के बेवहार करत वन मैन आर्मी जइसन सफल साहसिक भाव के सङ्गे अपना कारयित्री आ भावयित्री प्रतिभा के एगो सफल योद्धा नियन एह कुल्ह प्रश्नन के सम्यक उत्तर देवे खातिर भाषिक - साहित्यिक मैदान में उतार देले रहस। एक तरफ ऊ भोजपुरी भाषा, साहित्य आ आलोचना के लेके अनर्गल विवाद खड़ा करेवालन के धराशाही करत जात रहस त दोसरा तरफ ओह भोजपुरी सेवी साहित्यकारन स...