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जेने देखीं ओनिए झोल: हरेश्वर राय

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जेने देखीं ओनिए झोल। सहर गाँव के नदी नाव के तरजुई के सेर पाव के बिगड़ल बाटे बोली बोल। नेता लफाड़ी पंच खेलाड़ी मरदे मेहरारु चतुर अनाड़ी सभे पहिरले बड़ुए खोल। हरेश्वर राय, सतना  

जिअते काम-किरिया सपरावे के प्रवृत्ति माने 'अभिनंदन ग्रंथ' के बहाने आत्म-तर्पण: विष्णुदेव तिवारी

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आजु-काल्ह भोजपुरी दुनियाँ में ' अभिनंदन  ग्रंथ' के चलन बढ़ रहल बा। एमे दाम, जिनका के अभिनंदित कइल जाला, ऊ लगावेले आ आलोचना वगैरह के काम उनकर हसबखाह लोग करेला। कुछ लोग लाजहूँ-लेहाजे आ कुछ लोग डरहूँ अभिनंदित होखे वाला साहित्यकार के व्यक्तित्व आ कृतित्व पर कलम रगरेला। जिअता साहित्यकार के ख़िलाफ़ ज़ल्दी केहू कलम ना उठावे आ अगर उठा ले, त ओकरा प आफते आइल समझीं। मुस्टंडन के गिरोह एकवट के सच्चाई कहे वाला ईमानदार महाराज जी के हुलिया अस बिगार दीही कि उनका के आपन मेहरारू के अलावा शायदे केहू दोसर पहचान पाई! आलोचना ठकुरसोहाती ना ह। आलोचना माने खाली दोषो-दर्शन ना ह, बाकिर खाली प्रशस्तियो-गान त ना ह। ' अभिनंदन  ग्रंथ' के प्रकाशन भा 'अमृत महोत्सव' के छपासन कवनो संस्था के देख-रेख में, जेमे अभिनंदित-वंदित साहित्यकार के दख़ल ना होखे, होखे त' ममिला ठीक हो सकत बा बाकिर मए गूर-गोइँठा अपने कपारे आ लिलारे चंदन ख़ातिर हाथ पसारे? अंदाजा लगावल जा सकत बा कि चंदन ख़ातिर आतुर साहित्यकार महाराज के साहित्यिक हैसियत कवना पहाड़े अड़ल होई! सम्प्रति: विष्णुदेव तिवारी, बक्सर, बिहार

डॉ. कमलेश राय के लोकप्रिय काव्य-संग्रह 'अइसन आज कबीर कहाँ': एगो अध्ययन - विष्णुदेव तिवारी

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आज ओइसन कबीर नइखन जइसन कबीर कबो रहले। ई अचरज के बात नइखे, कवनो अनहोनी के बात नइखे काहें कि सृष्टि में दोहराव ना होला। दोहराव ध्वंस में होला, सृजन में ना। ओइसन कबीर आज नइखन, माने आज के लोगन में केहू कबीर अस नइखे। जब दरसन, चिंतन आ करतब पच्छिम होखे, तब पूरब के कबीर कइसे होखल जा सकत बा? सब आपन-आपन लेके बइठल बा, आपन-आपन रो रहल बा। एह रोवनिया लोगन में कबीर के खोजल बेकार बा। कबीरो अपने खातिर रोवत रहले बाकिर उनकर आपन सब उहे रहे, जेकरा के दुनिया दोसर कहेले- अपना खातिर लोर बहुत बा औरन   खातिर   पीर  कहाँ जग  के  दुख कारन जे रोवे अइसन  आज कबीर  कहाँ ' अइसन आज कबीर कहाँ ' के गीतकार डॉ. कमलेश राय के अनुभूतियन में संवेदना के जवन चटक रंग घोराइल बा आ उनका गीतन में उगल बा, ऊ चहुँ ओर क्षरण से जामल वेदनउग चिंते के टभकन ह- व्यथित मन जब तिलमिलाये आह हिय में ना समाये बेकली के पार जाके वेदना जब तमतमाये तू अनासे उतरि आवेलू कवित पुनीत बन के सुरति के संगीत बन के। बाकिर ' अइसन आज कबीर कहाँ ' चिंता-काव्य ना ह। चिंता बा, उजबुजहट बा, छटपटइनी बा। एकर कारन बा। कारन के निवारनो बा आ निवारन के उपाइयो

फागुन में नाचल: उमेश कुमार राय

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हंसि हंसि क बहार उतान भईल, अगराई के फाग जब फागुन में नाचल। फगुआ के जब आगुआन भईल, अबीर-गुलाल आपना सुघर भाग पे नाचल। बबुआ-बुचिया के जब रंग रंगीन भईल, फिचकारी के संग उछल- कुद के नाचल । बुढा-जवान के भेद सभ भुल गईल, फागुन फगुआ के जब मधुर तान पर नाचल। आपन-आन के सब ध्यान गईल, जब बैर तेज के सब केहु गले मीली नाचल। उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट- जमुआँव थाना- पिरो जिला- भोजपुर, आरा (बिहार)

भकुआइल बानी: हरेश्वर राय

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ना काड़ा ना गुलगुल ढेंसराइल बानी चौराहा प चहुँपि के चोन्हराइल बानी ना केहू आगहीं लउकत बा ना पाछा केने जाईं का करीं भकुआइल बानी। हरेश्वर राय, सतना, म.प्र.

होली: उमेश कुमार राय

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अवध बीचे, होली खेलत रघुवीर। सखिया सब अबीर लेई खोजत, रामाई लुकाये सरजू तीर। अवध बीचे, होली खेलत रघुवीर। हनुमान पिचकारी रंग डारे, भरत भुआल डाले अबीर। अवध बीचे, होली खेलत रघुवीर। कोशिला केकई मुशुकी छांटत , राजा दशरथ बड़न धीर गंभीर। अवध बीचे, होली खेलत रघुवीर। लखन लाल बचाव में लागल , सुमित्रा के डेरावत राम के फिकीर। अवध बीचे, होली खेलत रघुवीर । उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट- जमुआँव थाना- पिरो जिला- भोजपुर, आरा (बिहार)

ना रहीत: हरेश्वर राय

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रहीत ना आलू त समोसा ना रहीत रहीत ना मुँह पेट त ढोसा ना रहीत। रामजी ना जइतन तड़िका के बधे त रहीत ना बकसर चौंसा ना रहीत। बाबा- दादी नाना- नानी ना रहीतन त मइया मउसी आ मौसा ना रहीत। बाढ़ि ना रहीत आ चुनाव ना रहीत त रहीत ना लूटपाट भौसा ना रहीत। बिधना के खेल त बहुते निराला बा रहिति ना मेहरि मुँहझौंसा ना रहीत। हरेश्वर राय, सतना, म.प्र.

फगुआ: उमेश कुमार राय

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भरs फागुनs ए भईया हमार हो। देद भऊजी के हमनी के उधार हो।। लालs पिअरs गुलालs हरियर लगाईब, आहे! मजाक करबs जा बरियार हो। देद भऊजी के हमनी के उधार हो।। आसs पड़ोसs के भईया सब मिलब, आहे! रंगवा में देबs जा चभोर हो। देद भऊजी के हमनी के उधार हो।। चुनरs रंगs बिरंगs सब होई जईहे, आहे! होईहे फरेबवा सब अनेर हो। देद भऊजी के हमनी के उधार हो।। उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट- जमुआँव थाना- पिरो जिला- भोजपुर, आरा (बिहार)

नीक लागेली: हरेश्वर राय

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दाढ़ी देसी ना बिदेसिए नीक लागेली साड़ी देसी ना बिदेसिए नीक लागेली बिदेसिए कुत्ता आ जूत्ता के पूछ बाटे गाड़ी देसी ना बिदेसिए नीक लागेली। हरेश्वर राय, सतना, म.प्र.

हकीकत: उमेश कुमार राय

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खोरी झार बहारी के का करबs, जब घर दुआरे कंजास भरल खूब सज संवर के का करबs, जब मन मनदिर में कलेश भरल। आन के बुझारत अब का करबs, जब अपने काना फुंसी में बाड़ फंसल। राम रहीम के पुज के का करबS, जब अपने हीक भर पाप में बाड़ धंसल । जानी के लोक परलोक के का करबS, जबकि आस पड़ोस के ना जनल। सकल समाज के भलाई का करबS, जबकि अपने परिवार कुछ ना जनल। उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट- जमुआँव थाना- पिरो जिला- भोजपुर, आरा (बिहार)

तेले नइखे: हरेश्वर राय

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तीसी का करी जब तेले नइखे दीया का जरी जब तेले नइखे तेल के खेलि दइबो ना जनिहें बाती का बरी जब तेले नइखे। हरेश्वर राय, सतना, म.प्र.

ई किरिया ह: उमेश कुमार राय

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आखिर ई त हउए किरिया। का इहे हउए राउर किरिया ? संसद के ना कबो चले दिहल विकास के संउसे फंड खईलs तबो कबो ना डेकार लिहलs कहाँ गईल संविधान किरिया आखिर ई त हउए किरिया। नयका अपराध के ढंग बनवलs बचे खातिर हर उपाय सजवलs छल - परपंच से बेगुनाह बनलs कहाँ गईल गीता-कुरान के किरिया आखिर ई त हउए किरिया। घूस से आपन घर - बार बनल क्रप्शन से आपन परिवार सजल ईनसाफ के मजाक खूबे उड़ल कहाँ गईल वर्दी आ फर्ज के किरिया आखिर ई त हउए किरिया। जब जीव सांसत में पड़ जाई सग्गी भी मुंहवा फेर जाई हर बचाव के उपइया टर जाई ईमान-धरम जब तरजुई चढ़ जाई तब जी-डाठी दे खाईला किरिया आखिर ई त हउए किरिया। उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट- जमुआँव थाना- पिरो जिला- भोजपुर, आरा (बिहार)

हमके ना बुझाइल: हरेश्वर राय

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कतने दिवाली अइली गइली, हमके ना बुझाइल हम कतने मरीचा खा गइलीं, हमके ना बुझाइल बचपन- जवानी के मजा किनारी काट लिहलस कब चुप्पे बुढ़ौती आ गइली, हमके ना बुझाइल। हरेश्वर राय, सतना, म.प्र.