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गज़ल होती है: हरेश्वर राय

उनकी सौगात गज़ल होती है उनकी खैरात गज़ल होती है। उनका हर दिन ख्याल होता है उनकी हर रात गज़ल होती है। उनका जाड़ा भी बसंत होता है उनकी बरसात गज़ल होती है। उनका तो मौन भी मुखर होता उनकी हर बात गज़ल होती है। उनका हर शह बहुत मज़ा देता उनकी हर मात गज़ल होती है।

तनहाई: हरेश्वर राय

ये जो तनहाई है, मेरी थाती है इसीलिए वो मुझको भाती है। जब भी यादों में खो जाता हूं छुपके आती है गुदगुदाती है। जब उदासी मुझे जकड़ लेती झट से आके  मुझे छुड़ाती है। नींद जब भी मुझे नहीं आती दे दे थपकी मुझे सुलाती है। दर्द जब हद से गुजर जाता है चुपके चुपके दवा पिलाती है।

अलविदा साथियों: हरेश्वर राय

चल रहा हूं अभी अलविदा साथियों फिर मिलूंगा कभी अलविदा साथियों। तेरी महफ़िल में मैं था अकेला बहुत इसलिए जा रहा अलविदा साथियों। रह चुका मैं बहुत दिन किसी कैद में अब रिहा हो रहा अलविदा साथियों। ये जो अंबर खुला है बहुत दूर तक उड़ने अब चला अलविदा साथियों। मैंने वादा किया था किसी से कभी अब निभाने चला अलविदा साथियों।

सो रहा हूँ अभी: हरेश्वर राय

ऐ लहर! तू ठहर, सो रहा  हूँ अभी बवंडर! तू ठहर, सो रहा  हूँ अभी। अभी कंबल से बाहर न झांको रवि ऐ सहर! तू ठहर, सो रहा  हूँ अभी। तुमसे सुंदर कोई भी नहीं यामिनी भर पहर तू ठहर, सो रहा  हूँ अभी। ऐ चांद! यूं ही गगन में चमकते रहो निशाचर! तू ठहर, सो रहा हूँ अभी। ऐ बहारों! चमन में न जाओ अभी ऐ भ्रमर! तू ठहर, सो रहा  हूँ अभी।

डराने-सी लगी है: हरेश्वर राय

मुझको शहनाई भी डराने-सी लगी है अपनी परछाईं भी डराने-सी लगी है। घर की खिड़की मेरे खुली नहीं तबसे जबसे पुरवाई भी डराने-सी लगी है। दौरे- पाबंदी का चलन हुआ है जबसे अपनी चारपाई भी डराने-सी लगी है। दर्द-ए दिल अपना अब बयां करुं कैसे मुझको रोशनाई भी डराने-सी लगी है। जिनके बिन पल भी मुझे बरस सा लगे उनकी अंगड़ाई भी डराने-सी लगी है।

घना अंधेरा है: हरेश्वर राय

सांझ सहमी है, डरा सवेरा है हर तरफ बिखरा तम घनेरा है। खौफ़जदा हैं मछलियां क्योंकि हर घाट पर बैठा हुआ मछेरा है। चमन के पुष्प भी सहमे- सहमे हरेक कदम पर खड़ा लुटेरा है। बस्ती-बस्ती में है डरावनी चुप्पी हर शहर बस मौत का बसेरा है। हरेक सांस पर पहरा लगा हुआ पसरा हर दर पर घना अंधेरा है।

मजा लीजिए: हरेश्वर राय

सर पे बैठी कजा का मजा लीजिए खट्टी मीठी सजा का मजा लीजिए। बाहर की फजा अब फना हो चुकी तो घर की फजा का मजा लीजिए। ज्ञान व ध्यान से जब फुरसत मिले मौजा ही मौजा का मजा लीजिए। दिन मुरुगा व दारु  के हैं लद गए तो चना व भूंजा का मजा लीजिए। घर में ताजे यदि संतरे हों खतम सखे! खरबूजा का मजा लीजिए।

जिंदगानी: हरेश्वर राय

बिना निमक के दाल जिंदगानी भइल बे खड़ग बिना ढाल जिंदगानी भइल। सझुरावल जाता हेने त होने अझुराता बड़ मकड़ा के जाल जिंदगानी भइल। फूल खिले के मौसम खतम हो गइल बिना हाल के बेहाल जिंदगानी भइल। खेल अइसन अवारा हवा कर गइल बिना चोप के पंडाल जिंदगानी भइल। फाटि गइली बंसुरी आ फूटले मंजीरा बिना सुर बिना ताल जिंदगानी भइल।

रोटी: हरेश्वर राय

इक रोटी मुझसे करने लगी सवाल रे सांवरिया वो पड़ी हुई थी पटरी ऊपर निढाल रे सांवरिया। कहां गया वो भोलाभाला मैं जिसका पकवान थी स्वप्नपरी थी मैं जिसकी मैं ही जिसका भगवान थी वो कहां गया मेरा प्यारा गोपाल रे सांवरिया। मुझको पाने की खातिर वो दिन भर स्वेद बहाता था मैं जब उसको मिल जाती वो फूला नहीं समाता था मुझको रखता था वो बहुत संभाल रे सांवरिया। वो मानस की था चौपाई वो गीता की पाठशाला था कहां गया वह कर्मवीर जो बहुत बड़ा दिलवाला था बोल नहीं तो ला दूंगी भूचाल रे सांवरिया।