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तिरंगा: उमेश कुमार राय

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बलिदानियन के शान ह तिरंगा देशवासी के गुमान ह तिरंगा देशवा के पहचान ह तिरंगा जवानन के अभिमान ह तिरंगा। कवियन के मधुर गान ह तिरंगा खेलाड़ी के विजय भान ह तिरंगा गवईयन के सरगम तान ह तिरंगा शहादत के शौर्य बखान ह तिरंगा। देश के काम के अगुआन ह तिरंगा माँ भारती के माथे प चान ह तिरंगा करम योगी के अभियान ह तिरंगा सभे महानो में महान ह तिरंगा। उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट- जमुआँव थाना- पिरो जिला- भोजपुर, आरा (बिहार)

खतम बा: हरेश्वर राय

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  बसंत के बहार खतम बा नदिया के धार खतम बा मन में भरम जिंदा बड़ुए पाँख के संसार खतम बा। हरेश्वर राय, सतना, म.प्र.

आनंदे साहित्य के संजीवनी ह: डॉ. ब्रजभूषण मिश्र के आलोचना कर्म पर एगो नज़र- विष्णुदेव तिवारी

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भोजपुरी आलोचना में, अपना सहृदयता, तटस्थता, विधि-निषेध सम्मत विनयशीलता, वैज्ञानिकता आ सहज सरलता ख़ातिर ख्यात, डॉ. ब्रजभूषण मिश्र के योगदान महत्वपूर्ण बा। उनकरा आलोचना के आधार कृति बा, कृतिकार के जाति, धर्म, विचारधारा आ परवरिश ना। ऊ जतना सहृदयता से गुलरेज शहजाद के कृति चंपारन सत्याग्रह-गाथा पर 'उहे भूमि बाटे चम्पारन' शीर्षक से बात करेलन ओतने सहृदयता से अरुण त्रिपाठी 'अशेष' रचित 'प्रेमायन' पर 'प्रेमायन: रामकाव्य परंपरा में भोजपुरी के अवदान' शीर्षक से बतियावे लन आ बिना आपन कवनो विचार बोवले, रचयिता लोगन के कृतियन तक पहुँचे के सुंदर राह देखा देलन। रुचिकर आ प्रसंगानुकूल भाषा के प्रयोग से मिश्र जी के आलोचना में शास्त्रीय गरिमा के निर्वाह भइल सुखद लागेला। 'प्रेमायन' के आलोचना के क्रम में ऊ लिखत बाड़े- "कवनो महाकाव्य खातिर ओह में महत् उद्देश्य भइल जरुरी होला। महाकाव्य अपना पूर्वर्ती युग के अध्ययन करेला, वर्तमान के निरखेला आ भविष्य के पूर्वासित करेला, काहे कि ओकरा अपना दा़यित्व के ज्ञान रहेला आ समसामयिक समाज के उन्नति के महान उद्देश्य ओकरा सोझा होला।

बाकुड़ों की बलिदानी: उमेश कुमार राय

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ठंडा खुनवा भी छनहीं में उबली-गरमाई। सुतल गुमान छनही में अउजाई-अकुलाई। फाँसी-गोली अब रउरा नजरी प नचिहे, भगत-आजाद के जसहीं याद झीमीलाई। हाहाकार अउर भगदड़ शत्रुदल में भईलन। जब टाप के सुर तेगा-तलवार से मिललन। गंगा माई कटल बांह बाकुड़ा के थाम लेली, कुंवर सिंह तब आजादी साथ नाम जुड़लन खोरिया में लोगन के बतकुचन अगराईल । बतिया के छिंउकी से खुशी हकाईल। नयका सबेरवा जयहिन्द से गुंजे लागल , हाथ में तिरंगा जयघोष साथे सवाराईल । लक्ष्मी,नाना, सुभाष के लोगवा बिसारल। संघर्ष काल की कृति आजादी बाद बगादल महल-अटारी से ऊँचा आपन शान करके, ईमान,रीति,नीति के छनिक लोभे हेरावल। अकिल के नकल प बा सभे केहु अझुराईल। सत्य-अहिंसा सब नेताजी लोग भुलाईल। अंजू-पंजू मिल देश के खिल्ली उड़ावस। देख राजघाट से गाँधीजी के मती हेराईल। उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट- जमुआँव थाना- पिरो जिला- भोजपुर, आरा (बिहार)

दिवलिया प: हरेश्वर राय

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हमार निकलल देवाला दिवलिया प भइली बगली कंगाल कनबलिया प हार मेहरी के महंगा किनाइल असों माल बाकी बिगाइल ओठललिया प। हरेश्वर राय, सतना, म.प्र.

हरजाई: उमेश कुमार राय

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खखोरी जस खखोर देल काहे अझुरा के। कुकूर जस भभोर देल चिकन बतिया के।। निरखेल अईसन जईसे शेर हिरनवा के। नीति चाणक्य जसन देल ग्यानवा के।। हमके भोरा देल खराब सपनवा बना के। खोभेल हरदमे बतिया के बरछी बना के।। पिरितिया के रीतिया रउआ उलटे बना के। मुकर गइनी काहे सातो बचनवा भोरा के।। उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट- जमुआँव थाना- पिरो जिला- भोजपुर, आरा (बिहार)

नसा: हरेश्वर राय

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नसा देसी के होखे भा चालानी के होखे नसा सूट के होखे भा सेरवानी के होखे नसा कुछो के होखे उतरहीं के बा ओके नसा सूरत के होखे भा जवानी के होखे। हरेश्वर राय, सतना, म.प्र.

भोजपुरिया माटी: उमेश कुमार राय

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भूमण्डल यश गावे पताखा उड़ल आकाश, ओह भोजपुरियन के पावन देखी माटी। मां भारती शान से ईठलइली जेकरा पर, उपजल उ फूल जेकर सुगंध देखी खाटी। पहिलका इन्कलाबी भारती के फाड़ा में, जेकर अमर गाथा बनल स्वाभिमानी। अमर कुर्बानी जेकर अमीट पहचान में, जे रहल वीर कुंवर सिंह अमर बलिदानी। स्वतंत्रता के अविराम अलख जगा के, भारती के बेटन के देलन अमर कहानी। अंग्रेजन के खदेड़े के जुनून पैदा कर के, गढ़ देलन स्वतंत्रता के जोशीली कहानी। ईमानदारी, समर्पण, कर्तव्यनिष्ठा के मूर्ति, प्रतिभा जेकर सदा रहल परम अनुगामिनी। डाॅ0 राजेन्द्र प्रसाद भइलन प्रथम राष्ट्रपति, जना भोजपुरिया माटी में बांका अभिमानी। भोजपुरी भाषा के ध्वज जे फहरवलस, सरस्वती जेकर जिह्वा प सदा निवासिनी। भिखारी ठाकुर जेकर नाम अमर भईल, ऊ भोजपुरिया के माटी के सच्चा ग्यानी। सुरसंगम की सप्तधारा अंगुलियो में समाई, श्वांसो में मधुर संगीत धारा के प्रवाह बहल। विशमिल्ला सहनाई वादक विश्व विख्यात, उ भोजपुरिया माटी के रतन अनमोल रहल। विलक्षण प्रतिभा-बुद्धि के मालिक रहे, गणित की अबुझ पहेलियां सुलझावे वाला। बशिष्ठ नारायण विश्वविख्यात गणितग्य, भोजपुरिया माटी के सम्मान बढ़ावे वा

भड्डरी आ उनकर कहाउत (1): उमेश कुमार राय

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भड्डरी एगो ढेर पहिले के ज्योतिषी आ विद्वान रहन जेकरा विषय में बहुते विद्वान लोग सोध कईल बाकी ओह लोगन के विचार एक ना भईल। केहु पुरुष मानल त केहु स्त्री। भड्डरी आ भड्डली के केहु अलग-अलग मानल त केहु एकही आदमी के दुगो नाँव मानल। भड्डरी के जीवनी पर भी ढेर विवाद विद्वान लोगन में रहल बा। पं0 राम नरेश त्रिपाठी के लिखल किताब "घाघ और भड्डरी" में भड्डरी के जीवनी बा कि: गाँव में एगो कहानी परचलित रहे कि काशी में एगो ज्योतिषी रहत रहन। इनकरा गणना में एगो शुभ साइत आवे वाला रहे जवना में गर्भाधान भईला पर यशस्वी अउर विद्वान संतान के जनम होई। ज्योतिषीजी एगो गुणवान संतान के लालसा में काशी से अपना घर खातिर चल देलन। घर काशी से दूर रहे। ठीक समय प घर ना पहुँच पवलन। राहे में सांझ हो गईल तब एगो अहीर के घर रूकलन। अहीर कन्या खाना बनावे लगली।ज्योतिषीजी के उदास देख के कारन पुछली। एने-ओने के बात कईला के बाद ज्योतिषीजी असली बात बता देलन। अहीरिन भी एह शुभ साइत के फयदा उठावे के फेरा में लाग गईली आ उ सफल भईली। ज्योतिषीजी से उनकरा भड्डरी के जनम भईल। भड्डरी बहुत भारी ज्योतिषी भईलन। पं0 रामनरेश त्रिपाठी जी

दे दिहनी: हरेश्वर राय

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काठा कठुली ठकुरबाड़ी के दे दिहनी बाग - बगइचा कुल्हाड़ी के दे दिहनी। हवाखोरी खातिर एगो छोट गाड़ी रहे आजु ओहुके के कबाड़ी के दे दिहनी। हम त ठहरनी हरिसचंदर के अवलाद एगो दिलो रहे त पहाड़ी के दे दिहनी। हरेश्वर राय, सतना, म.प्र.

काव्य - रसिक के विविध आयाम - प्रो. (डॉ.) जयकान्त सिंह 'जय'

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जइसे कवि आ काव्य का विविध आयाम पर विचार भइल बा ओइसहीं ओह काव्य के आनंद लेवे वाला श्रोता आ पाठको के विविध आयामन पर खूब विचार भइल बा। कहल गइल बा कि हर आदमी का? मंत्रद्रष्टा रिसियो बिना भावानुभूति के बरनन कइले कवि के पद आ प्रतिष्ठा ना पा सकस ओइसहीं सभे काव्य का आनंद के अधिकारियो ना हो सकस। जेतना काव्य रचे खातिर कवि में कवित्व शक्ति आ प्रतिभा के भइल जरूरी होला ओह से तनिको कम प्रतिभा के जरूरत ओकरा श्रोता भा पाठक खातिर ना होला। भारतीय आचार्य लोग काव्य के आनंद लेवे वाला मतलब काव्यामृत के सवाद लेवे वाला आधिकारिक श्रोता भा पाठक के काव्यानंद के उपभोक्ता, सहृदय, रसिक, भावुक, विदग्ध आ सचेतस कहके संबोधित कइले बा। एह एक-एक संबोधन के मरम बतवले बा। ऊ लोग इहो कहले बा कि एह संसार रूपी बिखहर गाछ पर दूइए गो मीठ फल लागल बा - एगो काव्यामृत का रस के सवादल आ दोसर सज्जन लोग के सङ्गति कइल - 'संसार विषवृक्षस्य द्वे एव मधुरे फले । काव्यामृतरसास्वाद: संगम: सज्जनै: सह।।' बाकिर एह काव्यामृत का रस के सवाद सभे ना ले सके। ऊ कवनो सहृदये अर्थात् रसिके का बस के बात होला। एह सहृदय के बारे में आपन विचार देत ध्

एगो भोजपुरी गजल: उमेश कुमार राय

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रउर निगाह से गिरनी त होश का बड़ुए। बनल साक्षी अंखिया त दोष का बड़ुए।। खूब तजूरत के बाद रउआ के पइले रहनी। रउए हमरा के भुलवनी त रोष का बड़ुए।। हाट बाजार अंगुरी धइके घुमल रहनी। हाथ-बांही धरे के बेरी होश का बड़ुए।। जवना प अगरा के उतान रहत रहनी। तवन गुमान हेराइल त जोश का बड़ुए।। एक मुसुकी प रउआ जियत मरत रहनी। अब राउर जहर भरल मुसुकी त बड़ुए।। उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट- जमुआँव थाना- पिरो जिला- भोजपुर, आरा (बिहार)

हम विक्रम साराभाई- डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'

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एगो पार्क में एगो नौजवान टाइट शूट-बूट में टहलत रहे। टहले के दरम्यान ओकर नजर बगल के बेंच पर बइठल एगो बुजुर्ग पर पड़ल। ऊ कवनो पुस्तक बहुत तल्लीन होके पढ़त रहलें। ऊ नौजवान ओह बुजुर्ग के लगे आके बेंच पर बइठ गइल। फेर ओह बुजुर्ग से पुछलस - अपने का पढ़ रहल बानी ? बुजुर्ग पढ़े में तल्लीन रहते जबाब दिहलें - 'श्रीमद्भगवद्गीता'। एह पर ऊ नौजवान लमहर - चाकर भासन देत कहलस - 'अपने सब ना सुधरब। दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गइल आ रउरा सभे देस के आजुओ कूप मंडूप बनाके रखले बानी। एह बैग्यानिक जुग में गीता आ महाभारत पढ़ला से देस आगे थोड़े जा पाई।' एह पर ऊ बुजुर्ग ओह नौजवान से पूछलें - 'तूं का करेलऽ?' एह पर गुमान से बोललन- 'हम, हम विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के साइंस्टिस्ट हईं, आ रउरा?' नौजवान के जबाब आ सवाल सुनके ऊ बुजुर्ग उहाँ से उठ के चलते- चलते बोललें - 'हम, विक्रम साराभाई ।' सम्प्रति: डॉ. जयकान्त सिंह 'जय' प्रताप भवन, महाराणा प्रताप नगर, मार्ग सं- 1(सी), भिखनपुरा, मुजफ्फरपुर (बिहार) पिन कोड - 842001

घंटा: हरेश्वर राय

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मोंछि सफाचट तs मुंड़ाइब का घंटा आँखि बिया कानी लड़ाइब का घंटा ना पोथी ना पत्रा ना मानस ना गीता लैकन के क्लास में पढ़ाइब का घंटा। हरेश्वर राय, सतना, म.प्र.

फाटत फट्फट् मोर कापार बा ना: हरेश्वर राय

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  बुढ़वा जबसे भइल रिटायर दिनभ करत रहत बा फाएर भइल घरवा में रहलका दुसबार बा फाटत फट्फट् मोर कापार बा ना। फेंटा बान्हत बा जोरदार सोंटा राखत बा बरियार भोरे चार बजे से करत कुंकुहार बा फाटत फट्फट् मोर कापार बा ना। दिनभ फच्चर फच्चर थूके रहि रहि कुत्ता नियर भूंके बुढ़वा अपना आदत से लाचार बा फाटत फट्फट् मोर कापार बा ना। हरेश्वर राय, सतना, म.प्र.

ई नएको साल ओदारी खाल: हरेश्वर राय

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ई नएको साल ओदारी खाल। डेल्टा आ ओमिक्रान रही सांसत में जान परान रही पूरे साल बस चली चुनाव ठेंगा प नियम बिधान रही सालों भर बस कटी बवाल। घंटा मिली केहू के नोकरी बी ए चरइहें बकरा बकरी लंगटे महंगाई डाइन नाची ओठे ओठे लउकी फेफरी दुलुम होई तर्कारी दाल। हरेश्वर राय, सतना, म.प्र.

भोजपुरी आलोचना के कुछ करिया पक्ष: विष्णुदेव तिवारी

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(क) लापारवाही भा जानकारी के अभाव:- भोजपुरी आलोचना के क्षेत्र में कुछ प्रशंसितो लोग अपना काम के महत्व के ना समुझत, या त लापारवाही से भा जानकारी के अभाव से अइसन बात कह देत बा, जे सरासर ग़लत भा संदेहास्पद बा। कृष्णानंद कृष्ण अपना चर्चित आलोचना पुस्तक "भोजपुरी कहानी: विकास आ परंपरा" में कुछ अइसने लापारवाही करत लिखत बाड़े कि भोजपुरी कहानी के विकास में महापंडित राहुल सांकृत्यायन के बहुत योगदान बा।(पृ.19 के पहिलका पैराग्राफ/पहिला संस्करण/1976) स्मरणीय बा कि राहुल सांकृत्यायन भोजपुरी भाषा में आठ गो नाटक- 'मेहरारुन के दुरदसा', 'जोंक', 'नयकी दुनिया', 'जपनिया राछछ', 'ढुनमुन नेता', देस रक्षक', 'जरमनवा के हार निहचय' आ 'ई हमार लड़ाई' लिखले। इहँवा उनकरा कुछ अन्य बातन-वक्तव्यनो के प्रमाण मिलेला बाकिर 'ऊ कहानियो लिखले बाड़े', एह बात के पता त' खाली कृष्णेनन्द के बा। आलोचना के एह क़िताब में, कहानियन के विषयो-वस्तु के ले के कृष्णानंद जी से कहीं-कहीं भूल हो गइल बा। जइसे, अवध बिहारी सुमन के कहानी 'मलिकार' के बारे मे

हसीं जा हाहा हाहा: हरेश्वर राय

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अइले अइले बसंत बाह बाह हसीं जा हाहा हाहा। तिसिया फुलइली मटर गदराइल झुंड तितिली के उड़ेला इतराइल बनल भंवरा बनल बदसाह हसीं जा हाहा हाहा। आम मोजरइले कली मुसुकइली कंठा में मिस्री कोइल लेइ अइली भइली पुरवा बड़ी नखड़ाह हसीं जा हाहा हाहा। हरियर चहचह भइली बंसवरिया सरसों के रंगवा रंगइली बधरिया होता भुईं सरग के बिआह हसीं जा हाहा हाहा। हरेश्वर राय, सतना, म.प्र.

भोजपुरी आलोचना के वर्तमान स्थिति: विष्णुदेव तिवारी

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भोजपुरी साहित्य में आलोचना के स्थिति, साहित्य के अउरी दोसर विधा सब के तुलना में, ओइसन त नइखे जेकरा पर उतान होखल जा सके बाकिर अइसनो नइखे जेकरा से चितान होखे के नउबत आवे। कोरोना संकट से हरान आ डेराइल- उबिआइल समय में, जब सब कार ठप रहे, भाषा आ साहित्य से जुड़ल लोग विभिन्न आभासियो माध्यमन के जरिए, साहित्य अउर ओकरा के रचे वाला साहित्यकारन के ऊपर कुछ नया ढँग से बात कइल। 'भोजपुरी मंथन', 'पचमेल', 'आखर', 'भोजपुरी: द सोल ऑव मिलियन्स', 'सारण भोजपुरिया समाज' जइसन कई डिजिटल पटल पर महत्वपूर्ण कार्यक्रम भइले स। 'पचमेल' के संस्थापक प्रो. पृथ्वीराज सिंह त' अपना पटल से जार्ज ग्रियर्सन के भाषा सर्वेक्षण पर बात शुरु कइले आ उनकरा भाषा सर्वेक्षण सम्बन्धी वॉल्यूम-5, खंड-2 के, जेकरा में बिहारी भाषा भोजपुरी, मैथिली आ मगही बोली के सम्बन्ध में बात बा, अनुवाद कइले आ किताब रूप में छपवले। क़िताब के नाँव ह "भारतीय भाषा सर्वेक्षण में भोजपुरी"। द्रष्टव्य बा कि ग्रियर्सन के एह महत्वपूर्ण कार्य के अब ले अनुवाद ना भइल रहे। भाषा सम्बन्धी एह किताब में ग्रियर्स

उचरS हो कागा: हरेश्वर राय

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उचरS उचरS हो कागा। ना कादो के प॔जरा गइनी राख धूरि में ना लसरइनी चुनर में दाग कहां से लागा? नइहर मे रतजगा कइनी ससुरा में ना घूघ उठइनी बेसर के लूटि भागा? हरेश्वर राय, सतना, म.प्र.

आलोचक के भूमिका: विष्णुदेव तिवारी

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आलोचक ख़ातिर आपन, आपन युग, अापन इतिहास आ अपना साहित्यिक-सांस्कृतिक परंपरा के ज्ञान बहुत जरुरी होला। कवनो रचना के मर्म तक पहुँचे में एह से बड़ा मदत मिलेला आ ओकर अभिनव विवेचना जीवन के प्रति आस्था के कई-कई दुआर खोल देला। असवे महेश ठाकुर 'चकोर' के 'सर्व भाषा ट्रस्ट' से एगो किताब आइलि हा- 'जरुर कोई बात बा'। एह में कवि-गीतकार के पहिलके गीत बा- 'जरूर कोई बात बा'। ई 'चकोर के बड़ा प्रसिद्ध गीत ह। एकर शुरुआती कुछ पाँति बाड़ी स- कोइल के बोली बोलत बाटे कउआ जरूर कोई बात बा, विचार करीं रउआ बकुला लगावे लागल बाटे चंदन मुसवा के बिलड़ा कर ता अभिनंदन बघवा दबाव ता बकरी के पँउआ एहिजा, ई त' एकदम साफ बा कि ई पाँति आज के राजनीति के तिकड़म, नटरपन, दोगलई आ मौकापरस्ती के बोकला ओकाचत बाड़ी स, बाकिर एगो मर्मी आलोचक एह पंक्तियन के साथ पूरा गीत के संदर्भ साहित्यिक-सांस्कृतिक परंपरा के साथे-साथ कवि के वैयक्तिको जीवन के स्थिति-परिस्थिति से जोड़ी आ एकर व्याख्या समग्रता में करे के कोशिश करी। संभव बा, एह पंक्तियन के साथ ऊ आदिकाव्य 'रामायण' के अरण्यकांड के सैंतीसवा सर्ग