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भोजपुरी के संतकाव्य (वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर): डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'

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१. 'निरगुन बानी' पुस्तक के संपादक के बा - क. कुलदीप नारायण झड़प आ डा. शंभु शरण ख. पाण्डेय कपिल  ग. सिपाही सिंह श्रीमंत घ. शुकदेव सिंह उत्तर - क. कुलदीप नारायण झड़प आ डा. शंभु शरण। २. 'निरगुन बानी' पुस्तक के प्रकाशक के बा - क. अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन ख. बिहार विश्वविद्यालय ग. भोजपुरी साहित्य परिषद्  घ. अखिल भारतीय भोजपुरी परिषद उत्तर- क. अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन। ३. नौवीं सदी के शालवाहन पूरन भगत के नाम रहे- क. गोरखनाथ  ख. टेकमन राम  ग. चौरंगीपा भा चौरंगीनाथ  घ. सरहप्पा उत्तर- ग. चौरंगीपा भा चौरंगीनाथ । ४. चौरंगीनाथ का ग्रंथ के नाम बताईं - क. बीजक  ख. शब्द विवेक  ग. सबद  घ. प्राण संकली उत्तर - घ. प्राण संकली। ५. 'सालवाहन घरे हमरा जनम उतपति सतिमा झूठ बलीला।' केकर कहल भा लिखल ह - क. कबीर ख. भिनक राम  ग. लक्ष्मी सखी  घ. चौरंगीनाथ उत्तर - घ. चौरंगीनाथ। ६. गोरखनाथ कवना सम्प्रदाय के प्रवर्तक रहलें- क. नाथ सम्प्रदाय  ख. सखी सम्प्रदाय  ग. अघोर सम्प्रदाय  घ. सरभंग सम्प्रदाय उत्तर - नाथ सम्प्रदाय । ७. 'योगी' शब्द के बेवहार केकरा खातिर कइल

बिहार आ बिहारी गौरव बोध - डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'

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बिहार भारत के एगो महत्वपूर्ण राज्य ह। एकर प्राचीन इतिहास भारत के अस्मिता गाथा ह। एकरा के बिना जनले ऐतिहासिके ना, पौराणिक आ वैदिक भारत के भी नइखे जानल जा सकत। भारतीय सभ्यता, संस्कृति आ ज्ञान-ग्रंथन का निर्माण, उत्थान आ पहचान के दिसाईं एकर अवदान अतुलनीय बा। वैदिक ऋषि विश्वामित्र, याज्ञवल्क्य, अगस्त के अलावे बुद्ध, महावीर, गोविंद सिंह आदि के तपोभूमि ई बिहार अपना गौरवशाली सांस्कृतिक, साहित्यिक, राजनीतिक आदि पृष्ठभूमि खातिर जगत प्रसिद्ध रहल बा। बाकिर आज खुद इहाँ के लोग अपना गौरवशाली अतीत से अंजान होके आपन बिहारी पहचान बतावे, जनावे आ जतावे से मुँह चोरावेलें। एकरा खातिर कुछ हद तक राजनीतिक विद्रूपतन से पैदा भइल कुछ एक सांस्कृतिक बोधहीनता, सामाजिक विकृति, शैक्षिक-शैक्षणिक गिरावट आ आर्थिक पिछड़ापन जिम्मेवार बा। अब एह सब समस्यन से उबरे खातिर बिहार का एक-एक व्यक्ति के एकरा गौरवशाली अतीत से परिचित करावे के होई, ताकि सभे अपना ओही बिहारी अस्मिताबोध के सहारे एक बार फेर अपने आप के आ अपना गौरवशाली बिहार के ओही गौरवपथ पर ले जा सके। ई बात ठीक बा कि गौतम बुद्ध के समय तक एह राज्य भा क्षेत्र के नाम 'ब

संत कबीर के सगुनोपासना - डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'

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संत कबीरदास के बारे ई आम राय बा कि ऊ उत्तर भारत में निरगुन भक्ति धारा के पहिल संतकवि हवें। बाकिर हमरा समझ से कबीरदास खाली निरगुनिए भक्ति धारा के संत नइखन। ऊ सुगुन भक्ति धारा के भक्तो बाड़न। बाकिर ओह तरह से ना जइसे सगुन भक्ति धारा के संतकवि तुलसीदास बाड़न। तबो जे अपना नाम के पाछे दास लगवले बा ओकर केहू ना केहू नाथ, साईं भा अराध्य होई। ऊ ओकर दास्य भाव से भक्ति जरूर करत होई। कबीरो दास करत रहलें। बाकिर ऊ हरसट्ठे सगुन साकार अवतार के रूपक कथानक नइखन गढ़ले। बाकिर बार-बार ओह अवतार के फूल-फल से पूजा करत समर्पित भाव से उनका जोति में विलीन होखे के बात करत बाड़न- 'ऐसी आरती त्रिभुवन तारे, तेज पुंज तहाँ प्रान उतारे। पाती पंच पुहुप करी पूजा, देव निरंजन अउर न दूजा। तन मन सीस समरपन कीन्हाँ, प्रगट जोति तहाँ आतम लीनाँ।।' केहू सगुन के उपेक्षा भा नजरअंदाज कर सकऽता, पूरा तरह से नकार नइखे सकत। इहाँ अवतार के बिरोधी अवतारी बन के पूजाए लागेलें। मूर्ति बिरोधी के मूर्ति संसार में सबसे जादे भेंटालें। जेकरा पूर्व जनम में बिस्वास ना होखे उहे अपना बीस जनम के कथा सुनावे लागेलें। ओइसहीं ई निरगुन आ सगुन के

काव्य : परख आ परिभाषा - डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'

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भारतीय वाङ्मय के दू गो रूप बा - शास्त्र आ काव्य। एह दूनो के अलग-अलग परखे खातिर एह दूनो के लक्षण आ परिभाषा पर भारतीय आचार्य लोग खूब बारीकी से बिचार कइले बा। चूकि इहाँ वाङ्मय के शास्त्र रूप से इतर काव्य रूप के परखल हमार प्रयोजन बा। एह से अबहीं काव्य के लक्षण, आचार्य-बिद्वान लोग के दिहल काव्य के परिभाषा पर बिचार कइल जाई। आउर बिसय-बस्तु जइसन काव्यो के बाहरी आ भीतरी रूप आ गुन के आधार पर अलग-अलग लक्षण आ परिभाषा बतावत बा। बाहरी निरूपक लक्षण में काव्य का बाहरी चिन्ह के उल्लेख कइल गइल बा आ अंतरंग निरूपक लक्षण में ओकरा भीतरी चिन्ह के बतावल गइल बा। काव्य के बाहरी रूप-चिन्ह के आधार पर लक्षण आ परिभाषा बतावे वाला आचार्य लोग में प्रमुख बाड़ें- अभिनव गुप्त, मम्मट, भामह आदि। त ओकरा भीतरी तत्व-चिन्ह के आधार पर ओकर लक्षण आ परिभाषा तय करे वाला आचार्य लोग बा- दण्डी, जगन्नाथ आदि। काव्य के लक्षण बतावत अभिनव गुप्त अपना 'ध्वन्यालोक लोचन' कहले बाड़ें कि काव्य कवि-कर्म ह - 'कवनीयं इति काव्यम्।' काव्य कवि के एगो शाब्दिक निर्मिति ह। ई 'कवि' शब्द बनल बा 'कु' धातु में अच् प्रत्य

बादुर - डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'

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चमगादड़ कबो एह दल में पुछात रहल ई बता के कि हम पाँख फइला के उड़िले तोहार हईं। कबो ओह दल में पूजात रहल ई जता के कि हम अंडा ना, बच्चा दीले तोहार हईं। भाँज लगा के अइसहीं लेत रहे मजा। बाकिर, ओकर इहे चाल, चरित्र आ चेहरा दिला दिहल एक दिन सजा। जब दूनो में भिड़ंत हो गइल दूनो दल लागल खोजे ऊ कहाँ गइल? फेर खुलल जब भेद जतावहूं के ना मिलल खेद। नीचे खोजत रहे सिआर ऊपर आँख फोड़ देवे पर कउआ रहे तइयार। सुनऽ ए होसियार, तब से चमगादड़ पेड़ पर उल्टे टंगाइल बा। तबो ओकर बान कहाँ सुधिआइल बा। आ एही से एकरा ला रहल बा दिल्ली बहुत दूर। एही से एकरा के सभे कहत आइल बा बादुर। सम्प्रति: डॉ. जयकान्त सिंह 'जय' प्रताप भवन, महाराणा प्रताप नगर, मार्ग सं- 1(सी), भिखनपुरा, मुजफ्फरपुर (बिहार) पिन कोड - 842001

बोली आ भासा : डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'

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हर भासा बोली होले । जब भासा बोली ना रह जाए, मतलब लोक- बेवहार में ना रह के पोथी आ पढ़ाकुअन का गलथोथी तक सिमट जाले त ओकरे के 'कूप जल' भा मुअतार भासा कहल जाला। बोली गढ़ल कवनो पाणिनि आ पतंजलि का बूता के बात ना होला। बोली लोक- जीवनधारा में सालिग्राम मतिन सिरजाले आ जब उहे लोक बुद्धि, बिद्या, संस्कार-बिचार, ग्यान-बिग्यान-अन्तर्ग्यान से सोबरन होके ओह कुल्ह चीज के अपना बोली में बोले-लिखे लागेला त ओकरा बोली के दुनिया भासा कहेला। जहाँ ले ब्याकरन के सवाल बा त ब्याकरन भासा के प्रकृति आ प्रवृति के अनुरूप लिखाला अपना से अधिका गैर भासा-भासी खातिर। अपना लोक (जन) के त मातृभसे होले। बाकिर ब्याकरन के नियम एतना जन कसा जाए कि फेर ऊ बोली ना रह जाए, ना त उहे नियम ओकरा मउअग के कारन हो जाई। जइसे जवन भासा आ ओकर ग्यान जुगन तक जन-जन के बोली में सहजे कहात-सुनात आ इयाद रखात आइल, उहे ब्याकरन का तंग नियमन भँवरी में अझुरा के लोक से कट-हट के परलोक के दुरूह भासा-ग्यान बन गइल। लिपि त बहुत बाद के अरजल चीज ह। बाकिर लिपियो भसे जइसन अपना लोक के प्रकृति आ प्रवृति उजागर कर देले। भासा बिग्यान के अनुसार बोली आ भासा एक

सम्यक् के सोच आ सक्रियता - डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'

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अजीब बा ई सम्यक्! अलहदा बा एकरा रहे-कहे के ढ़ंग अभावो में जी लेला उछाह के संग नाध देला अदोबदो गूंगी जवना के कह सकिले मौन रहल ठीक नइखे जवना के चुप्पी कहल काहे कि जब-जब बा सम्यक् बोलल तब-तब हम बानी देखले एकरा के अपना मनन जोग विचार के सदियन से बहिर भइल कान में घोलल। परिवार से ठीक विचार से नीक सम्यक् का संवाद-सहयोग के सभे सराहेला। इहे सोच के एक बेर हमहीं पूछनीं- तूं काहे ना लड़ जालऽ चुनाव परधानी के ऊ छुटते पूछल- काहे ला? सहयोग लिहल, चाहल, सराहल अलग चीज बा। बाकिर, पंचायत का हित के आपन हित जान के प्रतिनिधि चुने के एकरा तमीज बा? जहाँ एक-एक जन मतलब में बना लेले बा मन-मिजाज के गलीज जेकरा जेहन में नइखे रह गइल नीक-जबून में फरक करेके तजबीज आ जे खुद के काहिल बना रहल बा खैरात खाके। जेके जाहिल बनावल जा रहल बा अंजान भासा में जीवन ला अनुपयोगी इतिहास-भूगोल रटा के। जहाँ जन सेवक आ प्रतिनिधि बनेला मारामारी बा। ओह लोभी लालची अकर्मण्य जातवादी जमात के प्रतिनिधि ना बनल हमार लाचारी बा। प्रतिनिधि ओकरे बनल जा सकेला जेकर बने में खुद पर गुमान होखे आ कि जेकरा कुकृत्यन से अपनो मन झवान होखे। हम काहे बनव ओकर प्रत

भोजपुरी भासा का मानकीकरन के बेवहारिक आधार ( भाग - ०१ ) - डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'

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संसार का हर ग्यात भासा के दू खाना में राखल गइल। पहिला - एक केन्द्रीय भासा आ दोसर - बहु केन्द्रीय भासा। एक केन्द्रीय भासा के माने एक मानक रूप के भासा ; जइसे - रूसी, इतालवी, जापानी वगैरह। एह एक मानक रूप वाला भासा के अंगरेजी में मोनोसेंट्रिक लैंग्वेज (Monocentric Language) कहल जाला। बहु केन्द्रीय भासा के माने एक से अधिक मानक रूप वाला भासा ; जइसे - अरबी , फारसी , जर्मन , अंगरेजी वगैरह। एह बहु केन्द्रीय भासा के अंगरेजी में प्लूरिसेंट्रिक लैंग्वेज (Pluricentric Language) कहल जाला। ई अरबी , फारसी , जर्मन , अंगरेजी वगैरह बहु केन्द्रीय भासा अलग-अलग देसन के उचारन के आधार पर आपन आकार लेवेला ; जइसे - जर्मनी ऑस्ट्रिया का जर्मन के आपन आपन भासा रूप, ब्रिटेन , अमेरिका ऑस्ट्रेलिया वगैरह का अंगरेजी के आपन आपन भासा रूप , पुर्तगाल आ ब्राजील के आपन आपन पुर्तगाली के आपन आपन भासा रूप आदि। अइसे हर देस के आपन भासा रूप भइला से ओह देस खातिर त ओकरा भासिक एकरूपता खातिर ओकर एगो मानक रूप तय त होइबे करेला। कई देस के एके भासा का बहु केन्द्रीय भासा के भासिक रूप के जाने खातिर समुझे से जादे रटे के पड़ेला। काहे कि एह भा