संदेश

2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भोजपुरी लोकजीवन के अंग - नृत्य, वाद्य आ गीत - संगीत- प्रो. जयकान्त सिंह

चित्र
भोजपुरी लोकजीवन के अंग - नृत्य, वाद्य आ गीत - संगीत - प्रो. जयकान्त सिंह लोककला जन समुदाय का संगठित समाज के द्योतक ह। स्थानीयता आ जातीयता के एकर विशेषता बतावल जाला। एकरा के सामान्य जन समुदाय से पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्राप्त पारंपरिक सम्पत्ति कह सकिले। एकर जड़ ओह समाज के अन्दर तक पहुँचल होला। स्वाभाविकता एकरा बोधगम्यता के सहजता प्रदान करेला। ई मुख्य रूप से चार तरह से अभिव्यक्त होले - आंगिक, अभिनय, निर्मित आ वाचिक। अल्पना - रंगोली, चउका - पूरन, मेंहदी, गोदना, कोहबर - लिखाई, घर चउकेठाई, भित्तिचित्र आदि आंगिक लोककला के नमूना हवें स। माटी, पत्थर, आ धातुअन के खिलौना, गृहसज्जा, काठ शिल्प, अलंकार - आभूषण आदि निर्मित लोककला के उदाहरण हवें स। लोक नृत्य आ नाटक आदि अभिनय लोक कला के गिनती में आवेलें आ संगीत ( वादन आ गायन ), लोकगीत, लोककथा, लोकगाथा, लोकोक्ति, कहाउत, मुहावरा, बुझउवल, सुभाषित आदि वाचिक लोककला भा लोक साहित्य के विधा मानल जालें। सामान्य जन समुदाय भा समाज जब अपना मनोभाव के शब्द - स्वर के बदले देह का भाव - भंगिमा से उजागर करेला त ओकरे के लोकनृत्य कहल जाला। नृत्य काव्य के कायिक चेष्टा चाहे भावात...

बसंत गीत

  बसंत गीत सरसों फुलइले मटर गदरइले पिया नाहीं अइले रे सखिया। बाबा फुलवरिया कुहुके कोइलरिया आमवा के डाढ़ी प महके मोजरिया तीसी फुलइली अलि इतरइले पिया नाहीं अइले रे सखिया। पेन्हली बधरिया गुजरिया पियरिया महकेली मह-मह बसंत के बेयरिया ठाकुरबारी प ताल उठि गइले पिया नाहीं अइले रे सखिया।

फगुनवा आइल सखी

उड़ि चललि तितिली आकास  फगुनवा आइल सखी लालेलाल भइल लाजे पलास फगुनवा आइल सखी। कुकु कोइलिया करेली फुलवारी चहचह भइली बाबा के बँसवारी चलल भँवरा बुझावे पिआस फगुनवा आइल सखी। ठुमुकि ठुमुकि के चलेली पुरवाई मैना के मुँह से झरत बा मिठाई  मोजर  छोड़त बा सुवास फगुनवा आइल सखी। ----- हरेश्वर राय 15/02/2025