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रे नोकरिया: उमेश कुमार राय

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हहरवलस छछनवलस डहकवलस रे नोकरिया! तड़पवलस जगवलस सउंसे देसवा घुमवलस रे नोकरिया! डंटववलस, पीटववलस, खदेड़ववलस , रे नोकरिया! मुँहचोर बनवलस करजखोर बनवलस, कुंअरपथ डललस रे नोकरिया! सम्प्रति: उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट- जमुआँव थाना- पिरो जिला- भोजपुर, आरा (बिहार)

दियरा जईसन: उमेश कुमार राय

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रतिया के निहारे खातिर तनी जगमगाए दs दिवाली जईसन दोसरा के देखावे खातिर तनी जल जाए दs दियरा जईसन । दोसरा के बुझावे खातिर तनी मिट जाए दs पतंगा जईसन दोसरा के छांह खातिर तनी तनि जाए दs फेंड़ जईसन। दुनियां के महकावे खातिर तनी खिल जाए दs फूल जईसन दोसरा के हर्षावे खातिर , तनी गूंथ जाए दs पुष्प जईसन। ईमान-धरम खातिर तनी बिक जाए दs हरिसचंदर जईसन रतिया के सुकून खातिर तनी चमक जाए दs चाँद जईसन। भारती के सरियत खातिर तनी मिट जाए दs शहीद जईसन अपनन के आन खातिर तनी झूल जाए दs भगत जईसन । सम्प्रति: उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट- जमुआँव थाना- पिरो जिला- भोजपुर, आरा (बिहार)

मजबूरी: उमेश कुमार राय

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कब तक जुझबि रउआ किसानी में। जियरा सकेता आ भागवा बा हेयारी में ।। हरवा-बैलवा आ खेतवो बेंचाईल तीज-त्योहार आईल-गईल ना बुझाईल डाकटर-बैद के उधारी ना दिआईल बबुनिया के लुगरी फगुओ में ना बदलाईल कबले काटबि दिनवा परेशानी में कब तक जुझबि रउआ किसानी में। कवने जतन बिआहबि बिटिया उजबुजात जियरा सुझे ना अकिलिया दइब दगाबाज बुझस ना मजबुरिया माहुर भईल अन-दाना हेराईल मतिया नईया डूबे-डूबे भईल बा किनारी में कब तक जुझबि रउआ किसानी में। सम्प्रति: उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट- जमुआँव थाना- पिरो जिला- भोजपुर, आरा (बिहार)

गउआँ हेराइल बा: उमेश कुमार राय

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तनि खोजवाव हो हमार गउएँ में गउआँ हेराइल बा। ढेंका के चोट आ जाँता के झींक फेंड़वा से ढिलुहा आ खेतवा से हरवा चिक्का कबड्डी आ गुल्ली-डंटा पइन के कनवाह आ आहर-पोखरवा दुअरा से बैलवो हेराइल बा तनि खोजवाव हो हमार गउएँ में गउआँ हेराइल बा। चिरईं के चहक आ चबेनी के घोघी गउआँ के लिखिया आ अगिया के चिपरी दुअरा से पुरनियाँ आ घुघवा से गोरी दुअरा से ललटेनवो हेराइल बा तनि खोजवाव हो हमार गउएँ में गउआँ हेराइल बा। आल्हा-सोरठी आ गीता-रामायन हरीस-जुआठ आ नाधा-पैना गायडाढ़ आ सिवनवा से होलरी गाड़ी के बांगड़ आ घरवा के मुड़ेरा काका मुँहवा से दोहा-चौपाई हेराइल बा तनि खोजवाव हो हमार गउएँ में गउआँ हेराइल बा। दोल्हा-पाती आ घुमरी-चकईया रेंहट-दोन आ दँवरी-कल्हुआड़ी बीच-बचाव आ मान-मनउअल गाँव-डीहवार आ जगशाला-ठकुरबाड़ी खरिहान से खटउरवो हेराइल बा तनि खोजवाव हो हमार गउएँ में गउआँ हेराइल बा। कुँड़ा-भाँड़ी आ तासला-बटलोही कोठीला-दियारखा आ चिठ्ठी-पतरी पल्लू-दुपट्टा आ चद्दर के गाँती कनेआ के लाज आ केनवाई के ठटरी घरवे में अंगनवा हेराईल बा तनि खोजवाव हो हमार गउएँ में गउआँ हेराइल बा। दुअरा के चरन आ चुहानी से चूल्हा तीसी

भाषा-पहचान के मूल भाषिक तत्व- डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'

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कवनो भाषा का स्वरूप के बतावे वाला चार गो प्रमुख भाषिक तत्व होलें - सर्वनाम, क्रिया-पद, प्रत्यय-विभक्ति आ अव्यय। कवनो व्यक्ति, समाज भा भाषा के सम्पर्क में आके केहू के भाषा प्रभावित हो सकेले। बाकिर एह चारो भाषिक तत्वन के ना अपना सके। कवनो भाषा अपना सर्वनाम आ क्रिया-पद के छोड़ के दोसरा भाषा के सर्वनाम आ क्रिया-पद ना ले सके। संज्ञा आ विशेषण के लेन-देन आम बात होला। शर्ट, पैंट, कोट, टाई, स्वेटर, कम्प्यूटर आदि भोजपुरी जाति-भाषा के आविष्कार ना ह त ई भोजपुरी अंगरेजी भा दोसरा यूरोपीय भाषा से एह सब के संज्ञा के रूप में ले ली। ओइसहीं साड़ी, धोती, धर्म, दर्शन, अध्यात्म आदि शब्द इंग्लिश जाति-भाषा के आविष्कार ना ह त उहो ले ली। बाकिर एकरा से भाषा ना बदली। भोजपुरी अंगरेजी से क्रिया-पद कम, गो, इट, ड्रिंक आदि ना ले सके आ अंगरेजियो भोजपुरी से खा, जा, उठ, बइठ, सुत, पढ़, जो, आव आदि ना ले सके। खड़ी बोली हिन्दी के सहायक क्रिया है, हैं, था, थे, थी, थीं आदि भोजपुरी ना लगा सके आ भोजपुरी के क्रिया-पद बा, बाटे, बड़ुए, बाटी, बाड़ी, बानी, हईं, हवी, हउवे आदि के खड़ी बोली हिन्दी ना अपना सके। भोजपुरी के नकारात्मक बो

भाषा-उत्पत्ति चिंतन- डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'

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भाषा-अध्ययन का क्रम में भाषा-विज्ञानी लोग के 'भाषा-उत्पत्ति' के लेके सबसे अधिका माथापच्ची करेके पड़ल बा। आरम्भ में जब कवनो निजी स्वतंत्र धारणा ना बन सकल त मान लिहल गइल कि भाषा मनुष्य खातिर ईश्वरीय अर्थात् दैवी देन बा जवन आउर जीया-जन्त का प्राप्त ना हो सकल। किन्तु, भाषा-अध्ययन के क्षेत्र में जइसे-जइसे एह विषय से जुड़ल अनुभवजन्य विचार उभरत गइले, तइसे-तइसे बनत धारणा सिद्धांत के रूप लेते गइल; जइसे - दैवी सिद्धांत के अलावे संकेत सिद्धांत, अनुकरण सिद्धांत, अनुरणन सिद्धांत, श्रम-ध्वनि सिद्धांत, प्रतीक सिद्धांत, सम्पर्क सिद्धांत, संगीत सिद्धांत, आवेग सिद्धांत आदि। किन्तु, भाषा-उत्पत्ति के लेके एह कुल्ह सिद्धांतन के एतना ना अपवाद मिलत गइल आ संसार के हर भाषा के उत्पत्ति से ई कुल्ह सिद्धांत अपना के तर्कसंगत ढ़ंग से ना जोड़ पावल, जवना के चलते भाषा-विज्ञानी लोग का सामूहिक निर्देश जारी करत एह 'भाषा-उत्पत्ति' विषय के दर्शन, मानव-विज्ञान आ समाज-विज्ञान के पाले डाले के पड़ल। सन् 1866 ई. में पेरिस में 'लोसोसिएते द लेंगिस्तीक ( La societe de linguistique )' नाम के एगो भाषा-विज्

बचल रहीहे रे भाई: उमेश कुमार राय

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बचल रहीहे रे भाई दुनिया में ढेरे झोल बा। रोआं गिरवला से  मखन लगवला से गोल-गोल घुमवला से मीठ बतिअवला से बचल रहीहे रे भाई। बुड़बकवन के बोली से गुुंडवन के गोली से लंगवन के हमजोली से ठगवन के टोली से बचल रहीहे रे भाई। मुँह बिचकवला से नजर चुरवला से दँतनिपोरवा से  मुँहफेरवा से बचल रहीहे रे भाई। नेतवन के वादा से  आत्म विश्वास जादा से  बिगड़ल कायदा से  नाजायज के फैदा से  बचल रहीहे रे भाई। देश के गद्दार से रंगल सिआर से बुढ़़ापा के प्यार से  दुश्मन के हथियार से  बचल रहीहे रे भाई। सम्प्रति: उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट -  जमुआँव थाना- पीरो, जिला- भोजपुर (बिहार)

मुखिया जी: उमेश कुमार राय

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ए मुखियाजी! रउरा त सभकर थाह लगा गईनी। चलनी के चालल सूपवा के फटकारल अपना के बता गईनी ए मुखियाजी! रउरा त सभकर थाह लगा गईनी। ए मुखियाजी!  रउआ त जेकरा-जेकरा दुअरा गईनी भात-भवदी के त छोडीं  बातो-बतकही छोड़ा गईनी ए मुखियाजी! रउरा त सभकर थाह लगा गईनी। ए मुखियाजी! रउरा त हाथ जोरि के दाँत निपोर के सबका के बुड़बक बना गईनी बाबू-बरुआ के महाभारत कराके झड़ुअन वोट बहार गईनी  ए मुखियाजी! रउरा त सभकर थाह लगा गईनी। ए मुखियाजी! रउरा त चापलुसन के वंस बढ़ा गईनी दुआरा के कुकुरन के भी बब्बर शेर बना गईनी ए मुखियाजी! रउरा त सभकर थाह लगा गईनी। ए मुखियाजी! रउरा त जेकरा से ना बात-बतकही ओकरो से घीघीआ गईनी ढोंढ़ा-मंगरू छेदी-झगरू से  छनही मे लाट लगा गईनी ए मुखियाजी! रउरा त सभकर थाह लगा गईनी। ए मुखियाजी! रउरा त गली-नाली के का कहीं मुड़ेरवो भसा गईनी आवास के आसारा में त घरओ में जोन्हीं  देखा गईनी ए मुखियाजी! रउरा त सभकर थाह लगा गईनी। सम्प्रति : उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट -  जमुआँव थाना- पीरो, जिला- भोजपुर (बिहार)

भोजपुरी आंदोलन की प्रासंगिकता - डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'

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छपरा - ०७ नवम्बर, २०२१ को ऋषि दधीचि की तपोभूमि छपरा के साधनापुरी में क्रांतिदर्शी प्रयोगधर्मी महान ऋषि विश्वामित्र की जयंती मनाई गई। इस अवसर पर सारन जिला भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के तत्वावधान एवं ब्रजेन्द्र कुमार सिन्हा की अध्यक्षता में 'भोजपुरी आंदोलन की प्रासंगिकता' विषय केन्द्रित संगोष्ठी आयोजित की गई । संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए बी आर अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर के लंगट सिंह कालेज के भोजपुरी विषय विभाग के अध्यक्ष डॉ जयकान्त सिंह 'जय' ने भोज, भोजपुर और भोजपुरी के नामकरण से वैदिक भोज गणों के पुरोहित ऋषि विश्वामित्र को सम्बद्ध करते हुए पौराणिक तथा ऐतिहासिक भोज नामधारी राजाओं से भोजपुर और भोजपुरी को सिलसिलेवार ढंग से जोड़ते हुए भोजपुरी भाषा के विस्तृत इतिहास से अवगत कराया। डॉ. जयकान्त के अनुसार भोजपुरी भाषा, संस्कृति, समाज, साहित्य और शिक्षा के सम्यक् निर्माण, उत्थान एवं वैश्विक पहचान के साथ साथ इसके संवैधानिक अधिकार के लिए आंदोलन को जनांदोलन में परिणत करने की आवश्यकता है। भोजपुरी भारत के पचास हजार बर्गमील से भी बड़े भू-भाग के अठारह करोड

डॉ. जयकान्त सिंह 'जय': जीवन - वृत्त

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* नाम - प्रो. ( डॉ. ) जयकान्त सिंह * साहित्यिक नाम - प्रो. (डॉ.) जयकान्त सिंह 'जय' * जन्म - तिथि - ०१ नवम्बर, सन् १९६९ ई. * जन्म-स्थान - ग्राम - चरिहारा , डाकघर + प्रखंड + थाना - मशरक, जिला - सारण, राज्य - बिहार (भारत) पिनकोड - ८४१४१७ * माता - स्व. कौशल्या देवी * पिता - स्व. शिवशंकर सिंह * अग्रज - श्री शुभ नारायण सिंह 'शुभ' * पत्नी - सुनीता सिंह * पुत्री - कविता किरण, करुणा किरण * पुत्र - डॉ. शिवेन्द्र प्रताप सिंह, सर्वेन्द्र प्रताप (विद्यार्थी, एम. बी. बी. एस., एम्स, पटना) * शिक्षा - स्नातकोत्तर (भोजपुरी), पी-एच. डी. *सेवा - क्षेत्र - अध्यापन एवं अनुसंधान कार्य:   प्रोफेसर सह अध्यक्ष, भोजपुरी विभाग, लंगट सिंह कालेज, बी. आर. अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर (बिहार) * शिक्षक संगठन से सम्बद्ध: उपाध्यक्ष, बिहार विश्व-विद्यालय सेवा शिक्षक संघ, मुजफ्फरपुर (बिहार) * साहित्यिक संस्था से सम्बद्ध: १. कार्यकारिणी सदस्य - भोजपुरी भारती, सारण २. सदस्य, प्रवर समिति - सारन जिला भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, छपरा (बिहार), ३.संरक्षक - संस्थापक - सारन प्रमंडल भोजपुरी साहित्य सम्मे

भोजपुरी के भारतीय संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल भइला के प्रमुख लाभ - डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'

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* राजभाषा हिंदी के विकास में भोजपुरी का योगदान के सही मूल्यांकन * भोजपुरी के अध्ययन - अनुसंधान आ विकास खातिर सरकार के ओर से अनघा आर्थिक सहयोग * भोजपुरी भाषा के भाषिक, साहित्यिक आ सांस्कृतिक सृजन के राष्ट्रीय - अन्तराष्ट्रीय सम्मान * भोजपुरी भाषा के कार्य क्षेत्र - भाषा वैज्ञानिक अध्ययन - अनुसंधान, व्याकरण निर्माण, कोश निर्माण, साहित्य निर्माण, अनुवाद कार्य / विभाग आदि क्षेत्र में विशेष आर्थिक सहयोग आ एह क्षेत्र में रोजगार के विशेष अवसर * संघ / राज्य लोक सेवा आयोग के प्रवेश परीक्षा के एगो विषय आ वैकल्पिक माध्यम भाषा के रुप में भोजपुरी के बेवहार मतलब बेजोड़ रोजगार के अवसर * प्राथमिक स्तर से लेके पी० जी०/पी-एच्०- डी०/ डी लिट स्तर तक अध्ययन अनुसंधान खातिर शिक्षक /प्रोफेसर के पद सृजन, नियुक्ति आ भाषा साहित्य समाज संस्कृति से संबंधित पठनीय पुस्तकन के प्रकाशन * कई सरकारी, अर्ध सरकारी आ गैर सरकारी विभागन  में भोजपुरी अनुवादक के पद सृजन आ नियुक्ति * सरकार के वार्षिक बजट आ पंचवर्षीय योजना के जरिये मोट रकम के विनियुक्ति * प्रेस, प्रकाशन , फिल्म उद्योग, रेडियो दूरदर्शन के प्रसारण में विशेष महत

भोजपुरी बिरोधी मंच क प्रोपगंडन के भंडाफोड़ - डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'

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आर्यावर्त-भारत बहुभासी आ बहुसांस्कृतिक देस ह। ए. अब्बी के सम्पादन में छपल पुस्तक 'स्टडीज इन बाइलिंग्विलिज्म' के अपना आलेख में अन्नामलाई एह बहुभासिकता के बहुते तार्किक ढंग से 'भारत के स्नायु-बेवस्था कहले बारन। सन् १९७२ ई. में पी. बी. पंडित भारत के 'सोसियोलिंग्विस्टिक एरिया' में कहले बारन कि India is a Sociolinguistic glant.' उनइसवीं सदी के अरजल आ आजादी का लड़ाई के दौर में देस के सम्पर्क भासा के रूप में प्रचलित भइल खड़ी बोली आधारित हिन्दी भासा के उत्तर भारत के मातृभासा बताके उत्तर भारत के कुल्ह स्वाभाविक मातृभासा भोजपुरी, मैथिली, मगही, अवधी, ब्रजभासा, राजस्थानी आदि के सङ्गे भारत सरकार लमहर खड्यंत्र कइल। आजुओ उत्तर भारत के कुल्ह मातृभासा सबका सङ्गे खड्यंत्रे हो रहल बा आ एह कुल्ह भासा के अधिकार आ बिकास के राह में तरह-तरह के प्रोपगंडा फइला के रोड़ा अँटकावल जा रहल बा। अंगरेजन का मानस-पुत्रन का रोब-रूतबा के भासा अंगरेजी के दबाव झेलत बेवहारिक रूप में दोयम दर्जा के राजकीय भासा हिन्दी के कट्टर हिमायती महानुभाव लोग अपना बर्चस्वबादी आ बिस्तारबादी सोच के तहत अंगरेजी का मा

जा ए भकचोन्हर: डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'

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जा ए भकचोन्हर, तोहरा बात बुझात नइखे ? ई 'भकचोन्हर' सब्द बिहार का राजनीति में हल्फा उठा देले बा। सब्दन के सटीक प्रयोग के लेके हम त बड़का भइया माननीय लालू प्रसाद यादव जी के गुनगान करे से ना थकीं। ई एके सब्दवा यू. पी. - बिहार का जनता के जना-जगा दिहलस कि लालू जी निरोग बाड़ें आ बहरी आ गइल बाड़ें। कांग्रेसी लोग उनका पर बमकल बा त कुछ भकुरन के भक भुला गइल बा। भाकुर के बहुबचन भकुरन। भाकुर मतलब उल्लू होला। अँजोर में एकर भक मतलब बुद्धि हेरा जाला आ उहो दिसा हीन उड़ान भरे लागेला। इहे हाल भादूर/बादूर मतलब चमगादड़ो के होला। अब आईं ए भकचोन्हर सब्द पर। ई भक आ चोन्हर दू सब्द का मेल से गजब खेल करेला। भक के मतलब होला बुद्धि। वाक्य प्रयोग से समुझीं - 'झट से हमार भक खुल गइल' माने हमार तुरते बुद्धि खुल गइल। आ चोन्हर मतलब चक्षु चाहे चोख (आँखि खातिर बंगला के सब्द) के अन्हराइल भा चोन्हिआइल। एह तरह से एकर अर्थ-अभिप्राय होला - ऐन वक्त पर अकिल गुम हो गइल। बुरबकाही के सिकार भइल। बुद्धि के चिहउनी लागल। देस, काल, परिवेस आ परिस्थिति के हिसाब से सही फैसला ना ले पावे वाला आदमी खातिर भकचोन्हर सब्द के बेव