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राखी के दिन: उमेश कुमार राय

राखी के दिन: उमेश कुमार राय  फुलेसरी के आँख डबडबाईल रहे। उ पहिले के याद में डूबल रही। रक्षाबंधन आवेला त ई असहीं हर साल परसान रहेली। ईनकर याद लरछुत (छुआछुत के रोग) जस पीछा करेला। रक्षाबंधन के दु-चार दिन बाद तक परसान रहेली। उहो एगो दिन रहे जब रक्षाबंधन के दिन इनकरा परिवार में खूब धमाचौकड़ी मचत रहे। इनकर पांच-छव साल के भाई रहन। उ चंचल आ ग्यनगर रहन। हमेसा दीदी-दीदी करत फुलेसरी के आगे-पीछे घुमत रहन। खाना से सोना तक साथ-साथ ही रहस। मतारी हरदम बबुआ के बिगाड़े के आरोप फुलेसरी प लगावस बाकी बबुआ के सनेह में फुलेसरी के सभ मंजूर रहे। मतारी फुलेसरी के समझावस कि ते ससुरा जइबे त हमार जियल मुहाल कर दी। उहो समय आईल जब फुलेसरी बिआहे ससुरा चल गईल। बबुआ खूब तंग करे लगलन काहे कि फुलेसरी के दुलरुआ रहन। एने फुलेसरी के भी मन ना लागे। बबुआ हरदम फुलेसरी के खोजस आ खाईल-पियल भी कम कर देलन। सेहत ग ड़ बड़ाए लागल बाकि लोक-लाज से फुलेसरी किंहा ना भेजस कि लोग-बाग का कही। नाया-नाया हीतई रहे। बाकी फुलेसरी के मालूम भइल त बेेचएन हो गईल। उ आपन देवर के मोटरसाईकिल से लियावे खातिर भेज दिहली। दईब के कुछ अऊरे मंजूर रहे। ...

बाबू: उमेश कुमार राय

बाबू उझूकुन प खड़ा होई, करस लम्हर बात। घर में भूंजी-भाग ना, आ लाखन के सउगात। कुकाठ बोल बा, मृदुल पड़ल नाव। अगहर हर कुकरम के, पालना में बा पांव। चाल-चलन में उरेब बा, भकभौंजा भरल कपार। कागजी कारखाना के, लाखन के बा बेयापार। कानवाह में पूंजी गइल, बाबू लोगन के दुआर । घाटा में मनई मरल, बिकल घर-बाधार। बाबू लोगन के दुआर प, लछमी खड़ा उतान। सई मूस खा-खा के, बाबू बनलन पुरुधान। उमेश कुमार राय जमुआँव, भोजपुर (बिहार)