भोजपुरी के पहिल कवि ईसानचन्द - प्रो. ( डॉ. ) जयकान्त सिंह 'जय'

जब पूरबी बोली भोजपुरी का साहित्यन के अध्ययन के सिलसिला चलल त एकरा पुरान साहित्यिक परम्परा आ ओकरा भासिक रूपन के पड़ताल होखे लागल। पहिले बिद्वान अध्येता लोग भोजपुरी भासी क्षेत्र के निरगुन भक्ति धारा का ज्ञानाश्रयी साखा के संतकवि कबीर दास का साखी, सबद आ रमैनी के भासाई नजरिया से अध्ययन करके उनका के भोजपुरी के आदि कवि बतावल। फेर कुछ पीछे नजर दउड़ावल लोग त नाथ सम्प्रदाय के प्रवर्तक गुरु गोरखनाथ आ उनका चेला लोग जइसे - भरथरी, गोपीचंद आदि का पदन में पच्छिम आ उत्तरी भोजपुरी के भासिक तत्वन के आधार पर भोजपुरी काव्य साहित्य के सीमा - बिस्तार दसवीं - एगारहवीं सदी के नाथ सम्प्रदाय का एह जोगी लोग के पदन तक बढ़ावल लोग।

फेर जब संतकवि कबीर दास आ नाथ सम्प्रदाय के गुरु गोरखनाथ आदि का पदन का कई दार्शनिक, आध्यात्मिक, यौगिक आ सांस्कृतिक अनुभूतियन का संङ्गे - सङ्गे भोजपुरी क्षेत्र के बेवहार में आवे वाला संज्ञा, सर्वनाम, बिसेसन, क्रिया, उपसर्ग, प्रत्यय, बिभक्ति, परसर्ग आदि भोजपुरी का भासिक तत्वन के दरसन बौद्ध पंथ का बज्रयानी शाखा के आचार्य कवि सरहपाद, सबरपाद, भुसुकपाद आदि के दोहा आ चर्यापदन में पा के भोजपुरी काव्य साहित्य के प्रारंभिक काल आठवीं- नउवीं सदी तक खींच ले गइल।

एही तरह से पूरबी बोली - भोजपुरी के भासिक आ साहित्यिक बिकास के अध्ययन के क्रम सातवीं सदी का दूगो आउर कवियन के नाम चर्चा में आइल । जवना में एगो भाखा के कवि बाड़न ईसानचंद आ दोसर बरननकवि (वर्णकवि) बेनी भारत मतलब बेनी कवि। 'भाखा' भोजपुरी में भासा के सामान्य उचरित संज्ञा रहल बा।

आचार्य हवलदार त्रिपाठी 'सहृदय' अपना पुस्तक 'भोजपुरी भासा आ साहित्य के उद्भव आउर विकास' में उलेख कइले बाड़न कि महाकवि बाणभट्ट ( जे खुद भोजपुर क्षेत्र के रहस ) अपना 'हर्षचरितम्' में अपना मित्र - मंडली के दू जवारी कवि इसानचंद आ बेनी भारत (बेनी कवि) के चर्चा कइले बाड़न। ऊ इसानचंद के भाखा कवि आ बेनी भारत के बरननकवि कहले बाड़न। (पन्ना -१३) । ओह समय में बरननकवि (वर्णकवि) राज दरबारी कवि लोग के कहल जात रहे जे अपना आश्रयदाता के अस्तुति आ गौरव - गाथा गाके उनका मान - स्वाभिमान बरनन करत रहलें। ऊ लोग भाँट भा चारन कवि कहात रहे। बेनी भारत बरननकवि रहलें। जे अपना बोली - भाखा में समय आ समाज का एक - एक पक्ष पर आपन भाव - विचार कविता के जरिए राखत रहे ओकरा के भाखाकवि कहल जात रहे। अपना बोली - भाखा में किसिम - किसिम के कविता लिखे वाला भाखाकवि रहले ईसानचंद।

आचार्य शिवपूजन सहाय के अनुसार "हर्षचरितम् के महाकवि बाणभट्ट के बारे में बतावल जाला कि ऊ भोजपुर (साहाबाद जिला) जिला में, सोन नदी के पच्छिम छोर पर, बसल 'प्रीतकूट' गाँव के रहे वाला, सम्राट हर्षवर्धन (६०६-६४८ ई.) के समकालीन रहलें। (हिन्दी साहित्य और बिहार - संपादक - श्री शिवपूजन, प्रथम खंड, पन्ना - १)। बाणभट्ट 'हर्षचरितम्' के प्रथम उच्छ्वास में ईसानचंद के आपन मित्र बतावत लिखले बाड़न - 'भाषाकविरीशान: परंमित्रम्।' (हिन्दी साहित्य और बिहार, प्रथम उच्छ्वास - सं. श्री शिवपूजन सहाय, पन्ना -१)। एह आधार पर बिद्वान लोग ईसानचंद के गाँव बाणभट्ट के गाँव भोजपुर जिला के प्रीतकूट भा ओकरा आसपास के गाँव मनले बा। अब प्रीतकूट के नाम पेरू हो गइल बा। सम्राट हर्षवर्धन आ बाणभट्ट के समकालीन भोजपुर जिला का पेरू गाँव का एह भोजपुरी भाखा के कवि ईसानचंद के 'चिन्तातुराङ्क' के उपाधि मिलल रहे। आचार्य शिवपूजन सहाय 'शुक्ल अभिनन्दन ग्रन्थ' के हवाले से एगो अस्लोक के उलेख कइले बाड़न जवना में उनका 'चिन्तातुराङ्क' उपाधि के चर्चा बा - 'इति व: प्रशस्तिकार: कवि: स चिन्तातुराङ्क ईशान:। यत्पालनार्थमर्थयति पार्थिवस्तां स्थितिं श्रृणुत।।(कलकत्ता, सन् १९५५ ई., इतिहास - पुरातत्व - खंड - पन्ना - २००)

आचार्य शिवपूजन सहाय जी 'जैन - साहित्य और इतिहास' के उलेख के आधार पर आगे लिखले बाड़न कि स्वयंभूदेव अपना 'पउमचरिउ' आ 'रिट्ठनेमिचरिउ' में अपना पहिले का कवि लोग का सङ्गे ईसानचंद के इयाद कइले बाड़न (नाथुराम प्रेमी, दूसरका संस्करन, सन् १९५६ ई. - पन्ना - ६)।

नाथुराम प्रेमी अपना एह ग्रन्थ में ईसानचंद कवि के सप्तसती के २७५ आ ८४ गाथा के रचनाकार कहले बाड़न।(पन्ना - १९९-२००)

अपभ्रंस के महाकवि पुष्पदन्त का 'अपभ्रंस - महापुराण' में भी एह भोजपुरी भाखा के कवि ईसानचंद का नाम के आदर से उलेख कइल गइल बा। 'शुक्ल अभिनंदन ग्रन् ' में श्रीलोचन प्रसाद पाण्डेय के कहनाम बा कि "ईसानचंद के रचना रायपुर आ नागपुर का संग्रहालयन के सुरक्षित शिलालेखन में बा। ऊ बहुते बड़ सानदार कवि रहलें, अइसन उनकर पद्य - रचनन ब्यक्त करेलन स। ऊ महासिव बालार्जुन के मतारी, मौखरी - नरेस सिरी सूर्यवर्मा के बेटी आ ' प्राक् - परमेश्वर ' बिसेसन से बिभूसित कोसलाधिपति सिरी हर्षगुप्त महाराज का महारानी के अपना प्रतिभा से अमर बना गइल बाड़न।" (इतिहास - पुरातत्व - खंड, पन्ना - १९९-२००)

अब तक का उलेखन से ई उजागर होता कि सातवीं सदी का आरंभिक दसक में बिहार के भोजपुर जिला का पिअरो (तत्कालीन प्रीतिकूट गाँव) गाँव के भाखाकवि ईसानचंद भोजपुरी के पहिल कवि रहलें। इनका रचनन का अध्ययन - अनुसंधान के बादे भोजपुरी काव्य - साहित्य का प्राचीन परम्परा के ज्ञान बोधगम्य पाई।
सम्प्रति:
डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'
प्रताप भवन, महाराणा प्रताप नगर,
मार्ग सं- 1(सी), भिखनपुरा,
मुजफ्फरपुर (बिहार)
पिन कोड - 842001

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