डॉ रंजन विकास के फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया - विष्णुदेव तिवारी

आत्म-संस्मरण: जिनिगी परत-दर-परत
डॉ रंजन विकास के, आपन आ अपना लोगन के जिनगी के कुछ बहुमूल्य क्षणन के कहानी के नाँव ह- फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया, जेकरा के ऊ 'आत्म-संस्मरण' कहत बाड़े। उनका अनुसार- "हमार आत्म-संस्मरण 'फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया' में मन के उपराजल कुछुओ नइखे, बलुक जिनिगी में जे हमार देखल-भोगल जथारथ बा ओकरे के उकेरे के कोसिस कइले बानीं। साँच कहीं त पचरुखी एगो छोटहन कस्बा भइला के बादो हमरा ख़ातिर बहुते मनोरम, रमणीक आ खास रहल बा। एह जगह से हमार बचपन के सगरी इयाद आजो ओसहीं जुड़ल बा, जइसे पहिले रहे। पचरुखी आम बोलचाल के भाषा में पचरुखिया नाम से जानल जाला।" (आपन बात/14-15)
भारतीयता के कई सुघर पहचान चिन्हन में से एगो इहो ह कि ऊ कबो अपना उद्भव-स्रोत, आपन ज'रि ना भुलाइ। भगवानो अवतार लेले त' सामान्य आदमी नियर कहेले- "भले लंका सोना के होखसु, हर तरह से अजाची, शक्ति आ सत्ता के शीर्ष प खाड़ होके विश्व-वैभव के चकचिहावत होखसु, हमरा जन्मभूमि अयोध्या के बरोबरी करे वाला स्थान सउँसे सृष्टि में कतहूँ नइखे। महतारी आ मातृभूमि सरगो से बड़ होली।"
भौगोलिक आ सामाजिक परिवेश, पारिवारिक माहौल, शैक्षिक वातावरण के अनुकूलता, सुखद, विनियमित जीवनचर्या- ई कुछ कारक भावी जीवन के बनावे में बहुते योगदान देले। अच्छा संयोग कुछे लोग के मिलेला। रंजन विकास के सौभाग्य रहल कि उनका ऊ सब कुछ नीक से आ तृप्तिभर मिलल, जेकरा से उनकर भावी जीवन बनत- सँवरत चल गइल। उनकरे शब्दन में देखल जाउ- "बाबूजी के आवास सही माने में पढ़ाई-लिखाई के एगो बड़हन केन्द्र रहे, जहँवा के परिवेश देख के साक्षात गुरुकुल के आभास होखे। रोज साँझ-सवेरे बाबूजी अपना आवास प ट्यूशन पढ़ाईं। पूरा जवार के बहुते लइका सब पढ़े आवत रहले सन। ओमे जादे लइका गरीब परिवार से रहले सन। बाबूजी ओकनी के नि:शुल्क ट्यूशन देत रहीं। कुछ लइका पढ़े में बहुते तेज रहले सन, बाकिर ट्यूशन फीस के जोगाड़ ना भइला के चलते ओकनी के तनीं झेंप लागे। बाबूजी ओकनी से कहीं कि तूँ लोग के जब अतना झेंप लागता त बदला में हमरा लइकन के पढ़ा दिहल करिह' बाकिर अपना पढ़ाई में तनिको नागा मत कर' लोग।…बाबूजी कबहूँ कवनो लइकन से ट्यूशन फीस ना माँगत रहीं। जवन देहलस त ठीक आ ना देहलस तबो ठीक।' (पचरुखी में हमार बचपन/21-22)
विकास रंजन के भविष्य के तइयार करे में पचरुखिया के बड़हन योगदान बा, बाकिर ई उनकर पैतृक गाँव ना ह। उनकर पैतृक गाँव गौरी ह, जहाँ के सुखद-दुखद प्रसंगन के वर्णन ऊ 'गौरी- हमार पैतृक गाँव' शीर्षक के अन्तर्गत करत बाड़े। गाँव के असीम गरीबी के बीचे एक-दोसरा के सहयोग देबे वाली ऊँच भावना के बात करत ऊ, एहिजा, कुछ अइसन मर्मस्पर्शी प्रसंगन के अंकन कइले बाड़े जे बिना व्यख्ये कइले बहुत कुछ व्याख्यायित करत हमनी सामने सोचे आ बूझे के कुछ नया झरोखा खोलत लउकत बा। एक जगह ऊ लिखत बाड़े- "हमरा इयाद बा कि सउँसे गाँव-जवार के लोग कबहूँ आपन रिश्तेदारी में शादी-बिआह भा दोसरा कवनो मोका प जाव, त अक्सरे बड़का बाबूजी से धोती-कुरता आ जूता पहिरे ख़ातिर माँग के ले जात रहे।" (पृ. 84)
एह अध्याय के समापन बड़ा दुखद ढँग से होत बा। लेखक बतावत बा कि कइसे शांति के सहकार वर्चस्व के कारोबार आ स्वारथपना आ डाह के सरोकार से खंड-विखंड हो जाला। लेखके के शब्दन में देखल जाउ- "सन 1973 आवत-आवत हमरा गाँव-जवार के राजनीति एगो अलगे मोड़ प खड़ा रहे। गाँव में चरमनी के गड़हा प कब्जा ख़ातिर एके दिन में तीन गो लाश गिरल। अब लोग गोलबंद होखे लागल रहे। एकर पूरा फायदा माले पार्टी के नेता उठवले स।"
लेखक आगे बतावत बा कि जब कटवाबझ शुरु हो जाले त ओहू लोग के जीवन ना बाँचे जे स्वार्थहीन, पूजनीय आ निर्दोष होला। अइसने निर्दोष लोगन में एक जना रहले नथुनी सिंह, जे गहिलापुर हाई स्कूल के हेडमास्टर रहले। उनकर दोष खाली इहे रहे कि ऊ जाति के राजपूत रहले। उनकर जान ले लिहल लोग। नथुनी सिंह के देखनउग व्यक्तित्व के बतावत लेखक लिखत बा- "लमहर आ छरहर बदन प सफेद धोती-कुरता में उनकर व्यक्तित्व बहुते निखरत रहे। रोज साइकिल से स्कूल जात-आवत रहले। सालो भर नाव से झरही नदी हेल के आवस-जास। घर से स्कूल आ स्कूल से घर अइला के अलावे गाँव में कतहूँ उनकर बइठकी ना होखे आ गाँव के राजनीति से कवनो खास सरोकारो ना रखत रहले।" (पृ. 92)
नथुनी सिंह के कहनी पढ़ते सिद्धार्थ चौधरी के लिखल अँग्रेजी कहानी 'द लीडर ऑव मेन' मन परे लागल बिया, जेकर नायक एगो गरीब राजपूत रूप सिंह बा। रूप सिंह अपना परिवार के पाले खातिर सिक्युरिटी गार्ड के नोकरी करत बा। रूप सिंह पढ़ल लिखल बा आ इहे ओकरा ख़ातिर गान्ही हो जात बा। ओनर्स' एसोसिएसन के प्रेसिडेंट केडिया कइसहूँ ई बात पचा नइखे पावत कि ओकर गार्ड ओकरा प्रश्न के जबाब ओकरा से शुद्ध आ सुघर ढँग से अँग्रेजी में दे रहल बा।
रूप सिंह के बहिन के बिआह करे में ओकर कुछ खेत बेंचा गइल रहे आ जवन तनी-मनी बाँचलो रहे, ओपर एक दिन लाल झंडा गाड़ के ओके जबरजस्ती कब्जिया लिहल गइल रहे।
कुल सोरह भाग में बँटल 'फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया' के भूमिका 'लोक संस्कृति के जियतार झाँकी' नाँव से भगवती प्रसाद द्विवेदी जी लिखले बाड़े। ई भूमिका 'कुछ राउर कुछ हमार' के तर्ज पर चलत ई बढ़िया निष्कर्ष देत बा कि "घर-परिवार, हीत-नात सभके सम्हारत, दुखो-अभाव में भरपूर नेह-छोह आ सुख बाँटे के माई आउर बड़की मामी के सुभाव के सविस्तार चरचा क'के लेखक एह कृति के बेसकीकमती बना देले बा।" (पृ. 10-11)
लेखक अंत में परिशिष्ट देले बाड़े जेमे अपना बाबूजी शारदानंद प्रसाद के साहित्यिक अवदान के बात कइले बाड़े। विरासत के ई सहेज उचित आ प्रेरक बा।
भगवती प्रसाद द्विवेदी भोजपुरिए ना हिन्दियो के निमन लेखक मानल जाले बाकिर एहिजा उनकर रंग कुछ जमे नइखे पावल। दोसरा के कृति में अनेक बेर अनावश्क रूप से अात्मोल्लेख कइल भूमिका लेखक के ना शोभे। द्विवेदीजी एक जगह रंजन प्रकाश आ रंजन विकास के सार्थक श्रम आ मेधा से स्थापित 'भोजपुरी साहित्यांगन' नाँव के ई-लाइब्रेरी के चर्चा चलावत लिखत बाड़े - "इहो सूचना मिलल कि हमरो किछु किताब सुरक्षित-संरक्षित कइल गइल बाड़ी स आ ओही दिसाईं किछु आउर नया किताब ले जाए का गरज से उहाँके आगमन भइल रहे। एह ऐतिहासिक पहलकदमी खातिर हम दूनो भाई के दिल से बधाई देत आपन नया किताबो भेंट कइले रहीं।"
हद त' ई बा कि भूमिका के समापनो ऊ स्वनामे से करत बाड़े आ अपना हिन्दी गीत के चार बंद बेझिझक झोंक देत बाड़े।
एह भूमिका में द्विवेदी जी एगो सजग कलमकार के भूमिका से बहुते फरका लउकत बाड़े। उनकर कुछ कहनाम त अस बा कि बुझाते नइखे कि का कहल जाउ! ऊ कहत बाड़े- (क) 'बच्चन' जी के साहित्य के सर्वोत्तम भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलल रहे। (ख) भोजपुरियो में अपेक्षाकृत कम, बाकिर आत्मकथा-लेखन के लमहर परिपाटी बा। (दूनो पृ.)
साँच त ई बा कि हरिवंश राय 'बच्चन' के उनकरा आत्मकथा प प्रतिष्ठित 'सरस्वती सम्मान' मिलल रहे। भोजपुरी में आत्मकथा के स्थिति रेगिस्तान में नखलिस्तानो अस बा कि ना- कहल मुश्किल बा।
फिलहाल डॉ रंजन विकास के एह श्रेष्ठ रचना खातिर असीम बधाई बा। समय मोहलत दी त चलल चर्चा के जरूर आगे बढ़ावल जाई।
विष्णुदेव तिवारी, बक्सर

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