गोस्वामी तुलसीदास : शब्दन के ऑपरेटर - प्रो. (डॉ.) जयकान्त सिंह 'जय'
गोस्वामी तुलसीदास : शब्दन के ऑपरेटर
- प्रो. (डॉ.) जयकान्त सिंह 'जय'
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी संत कवि कबीरदास के भासा के डिक्टेटर कहले बाड़न त हम गोस्वामी तुलसीदास के शब्दन के ऑपरेटर कहिले। ई दूनों शब्द डिक्टेटर आ ऑपरेटर आङ्ग्ल भासा के ह अउर ई दूनों संत उत्तर भारत का जनपदीय भासा के कबि हउवें। त एह दूनों संतकबि लोग खातिर एह आङ्ग्ल भासा का शब्दन के प्रयोग काहे भइल भा होता, सेपर बिचार कर लिहल जाए। डिक्टेटर के शाब्दिक अर्थ होला तानाशाह भा निरंकुश। जे कवनो नियम-कानून आ बिधान-संबिधान के ना माने आ अपना मनमर्ज़ी से आपन राज-काज चलावेला। संतकबि कबीरदास भासा के मामला में ओही निरंकुश राजा अइसन अपना भासा-प्रयोग से मनमर्जी के अनुसार भाव-अर्थ निकाल के रख दिहले बाड़न। ऊ अपना भाव-बिचार आ दर्शन खातिर भासा के दरेरत चलल बाड़न। एही अर्थ में द्विवेदी जी उनका के भासा के डिक्टेटर कहले बाड़न।
अब आईं एह ऑपरेटर शब्द पर। एह ऑपरेटर शब्द के शाब्दिक अर्थ होला - चालक, परिचायक भा संचालक। कवनो मशीन, यंत्र, उपकरण भा प्रक्रिया के संचालित भा नियंत्रित करेवाला। एह से जेकरा एह कुल्ह चीजन के बनावट, बुनावट, एक - एक अंग के बारीकी से जोड़े - छटकावे आ चलावे भा काबू में करे के कौशल मालूम होई ओकरे के ऑपरेटर कहल जा सकेला। अपना साहित्य में प्रसंग-संदर्भ का जरूरत के मुताबिक जवना तरह से गोस्वामी तुलसीदास शब्दन के बेवहार कइले बाड़न ऊ उनका के सही अर्थ में शब्दन के ऑपरेटर मतलब कुशल प्रयोगकर्ता, संचालक भा परिचायक सिद्ध करऽता। जवना का बोध के अभाव में तुलसी- साहित्य के कवनो पाठक-श्रोता भाव- अर्थ के बूझे से चूक जालन। गोस्वामी जी एक चौपाई, दोहा, रोला आदि में एक शब्द से अनेक अर्थ के प्रकट करावे में सिद्धहस्त नजर आवेलें।
गोस्वामी तुलसीदास शब्दन के ऑपरेटर एह से बाड़न कि ऊ जनपदीय लोकभासा भोजपुरी-अवधी के सिद्ध कबि बाड़न आ जनपदीय लोकभासा के शब्द प्रायः बहुअर्थी होला। ई बहुअर्थकता लोकभासा के आपन खास गुन ह। बहुअर्थक शब्दन के अर्थ तय करे में बड़-बड़ भासाविदन के पसेना छूटे लागेला, आमजन के त बातें छोड़ीं। गोस्वामी तुलसीदास के एगो बहुअर्थी शब्द 'तारना' के लक्षणा, व्यंजना, सादृश्य, प्रसंग, संदर्भ, आन शब्द के सान्निध्य, संयोग, बियोग, औचित्य, प्रकरण, समय, समाज, परिस्थिति, परिवेश, व्यक्ति आदि आधारित अर्थ के ना जाने-समुझे के चलते कुतर्की जन बखेड़ा खड़ा करत रहेलें। रामचरितमानस के अलावे अपना आउर साहित्यन के ई तारन आ तारना शब्द कई अर्थ में प्रयुक्त बा। अइसहीं बहुअर्थक शब्द 'बात' के जवना तरह से गोस्वामी तुलसीदास अपना मानस में प्रयोग कइले बाड़न ऊ देख-पढ़के मन आह्लादित हो जाता। त्रिभुवन नाथ शुक्ल के शोध आलेख 'बहु-अर्थक शब्दों के अर्थ निर्धारण की प्रक्रिया' में इससे संबंधित उल्लेख देखे के मिलल।
शुक्ल जी के मुताबिक एह बात शब्द के पूरे रामचरितमानस में बावन बेर दुहरावल गइल बा। तुलसीदास संदर्भ भेद से एकर आठ अर्थ में प्रयोग कइले बाड़न। जवना में वृत्त भा हाल-चाल के अर्थ में सोरह बेर, हवा के अर्थ में सात बेर, कार्य मतलब काम के अर्थ में पन्दरह बेर, सलाह भा सुझाव के अर्थ में छव बेर, चीज-बतुस के अर्थ में तीन बेर, कथन भा सवाल के अर्थ में तीन बेर, चर्चा भा बिचार के अर्थ में एक बेर आ औकात भा बउसाव के अर्थ में एक बेर प्रयोग भइल बा। जदि केहू बात के सब जगे एके अर्थ कथन भा बिचार लगाई त अनर्थ हो जाई। एह से आईं शब्दन के ऑपरेटर गोस्वामी तुलसीदास के 'बात' शब्द के कई अर्थ में कइल प्रयोग से परिचित होखल जाए -
1. वृत्त चाहे हाल - चाल के अर्थ में बात शब्द के प्रयोग:
(क) गई समीप महेस तब हँसि पूछी कुसलात।
लीन्ह परीक्षा कबन बिधि कहहु सत्य सब बात।। (1/55)
जब उमा जी प्रभु श्रीराम के परीक्षा लेके महेस जी के पास पहुंचली तब ऊ हँसत उनका परीक्षा लेवे का कुसलता के बारे में पूछलें कि कवना - कवना बिधि से परीक्षा लिहलू ह ओह सबके सांच - सांच वृत्त राखऽ।
(ख) पुनि पुनि धरि धीर पत्रिका बाँची। हरषी सभा बातु सब साँची।। (1/290)
फेर सबलोग धीरज ध के पत्रिका मतलब चिट्ठी बाँचल आ सभे साँच- साँच हाल समाचार जान के प्रसन्न भइल ।
2. हवा भा बायु के अर्थ में बात शब्द के प्रयोग:
(क) अजिन बसन फल असन महि सयन डारि कुस पात।
बसि तरु तर नित सहत हिम आतप बरषा बात ।। (2/211)
3. काम भा कार्य के अर्थ में बात शब्द के प्रयोग:
(क) मन पछताति सीय महतारी। बिधि अब संबरी बात बिगारी।। (1/270/7)
(ख) बड़े भाग बिधि बात बनाई। नयन अतिथि होइहहिं दोउ भाई।।(1/310/8)
4. सुझाव-सलाह भा कहा के अर्थ में बात शब्द के प्रयोग:
(क) जदपि अहइ असमंजस भारी। तदपि बात एक सुनहु हमारी।। (1/83/4)
(ख) सुनु मंथरा बात फुरि तोरी। दहिनि आँखि नित फरकई मोरी।। (2/20/5)
5. चीज - बतुस के अर्थ में बात शब्द के प्रयोग:
(क) एकहिं बात मोहि दुख लागा। बर दूसर असमंजस भागा।। (2/32/4)
6. सवाल भा कथन के अर्थ में बात शब्द के प्रयोग:
(क) एक बात नहिं मोहि सोहानी। जदपि मोह कहेउ भवानी।। (1/114/7)
7. चर्चा भा बिचार के अर्थ में बात शब्द के प्रयोग:
(क) बहन ज्ञान बिनु नारि नर कहहिं न दूसर बात।
कौड़ी लागि लोभ बस करहिं बिप्र गुरु घात ।। (7/99)
8. औकात भा बउसाव के अर्थ में बात शब्द के प्रयोग:
(क) केतिक बात प्रभु जातुधान की। रिपुहि जीति आनिबी जानकी।। (5/32/4)
भोजपुरी भासा में बहुअर्थी शब्दन के अनुचित अश्लील अर्थ में प्रयोग के दोष लगावल जाला। जबकि भोजपुरी-अवधी मिश्रित एह बहुअर्थी शब्दन के बारीक प्रयोग के चलते रामचरितमानस दुनिया के महान महाकाव्य आ गोस्वामी तुलसीदास विश्वकबि के रूप में सम्मानित होत आइल बाड़न।
- प्रो. (डॉ.) जयकान्त सिंह ' जय '
प्रोफेसर सह विभागाध्यक्ष , स्नातकोत्तर भोजपुरी
विभाग, बी आर अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय,
मुजफ्फरपुर ( बिहार )
पिनकोड - ८४२००१