भोजपुरी कविता के विकास-यात्रा के पड़ताल करे वाला ग्रंथ ‘भोजपुरी कविता के इतिहास'- विष्णुदेव तिवारी

भोजपुरी कविता के विकास-यात्रा के पड़ताल करे वाला ग्रंथ ‘भोजपुरी कविता के इतिहास'
- विष्णुदेव तिवारी

‘भोजपुरी कविता के इतिहास' डा ब्रजभूषण मिश्र के शोध-ग्रंथ ह जे २०२४ में मैथिली-भोजपुरी अकादमी, दिल्ली से प्रकाशित भइल रहे। एह ग्रंथ के विशेषता के बारे में बात करत अकादमी के सचिव डा अरुण कुमार झा लिखत बाड़े कि–’हमरा समझ से भोजपुरी साहित्य के इतिहास जे अबतक लिखाइल बा, ओह सब के ग्रहण करे योग सामग्रियन के समेटत आ ओह सब के त्रुटियन के छोड़त एह इतिहास के अद्यतन करे के सफल कोशिश मिश्र जी कइले बानीं।’
नव अध्याय आ ४६८ पृष्ठ में फइलल एह ग्रंथ में भोजपुरी कविता के उत्पत्ति से लेके आजतक के इतिहास क्रमवार दर्ज बा।
इतिहास का ह? इतिहास दर्शन के मतलब का होला? भोजपुरी साहित्य के इतिहास लेखन के समस्या का बाड़ी स? भोजपुरी में इतिहास-लेखन के परंपरा का रहल बा? भोजपुरी काव्य के इतिहास के काल-विभाजन आ नामकरण के परंपरा का रहल बा?-- एह सब आवश्यक विषयन पर विवेक सम्मत ढंग से विचार करत इतिहास-लेखक कई-कई अन्य विद्वान लेखकनों के विचारन के उद्धृत करत बा, जे ओकरा गहिर अध्ययन, मनन आ अनुशीलन के परतोख बा।
दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह, पं गणेश चौबे, डा कृष्णदेव उपाध्याय, डा रिपुसूदन श्रीवास्तव, रासबिहारी पाण्डेय, डा रामाशीष प्रसाद, डा तैयब हुसैन ‘पीड़ित’, राजेश्वरी शांडिल्य आ नागेन्द्र प्रसाद सिंह जइसन विद्वानन के काल विभाजन के ऊपर बात करत डा मिश्र भोजपुरी कविता के जवन काल विभाजन करत बाड़े ऊ एहतरी बा-
१. सिद्ध आ नाथ काल– ७०० ई से ११०० ई
२. लोकगाथा-लोकगीत काल–११०० ई से १४०० ई
३. आध्यात्मिक काल– १४०१ ई से १९०० ई
४. देशभक्ति काल– १९०१ ई से १९४७ ई
५. रचनात्मक आंदोलन काल भा भाषायी जागरण काल
–१९४८ ई से १९७७ ई
६. विकास काल– १९७८ ई से २००० ई तक
७. समकालीन काल या विस्तार काल– २००१ ई से चल
रहल बा।
भोजपुरी कविता के प्रारंभ बतावे के क्रम में डा मिश्र सातवीं सदी के पूर्वार्द्ध में रहल सम्राट हर्षवर्धन के काल तक जा तारे आ उनका समकालीन महाकवि बाणभट्ट के ‘हर्षचरित’ में लिखल गइल दू कवियन ईसानचंद्र आ बेनी भारत के नाँव ले तारे जे भोजपुरी में कविता करत रहले। डा मिश्र के कहनाम बा कि ‘हर्षचरित’ के अनुसार ई दूनों कवि लोग संस्कृत आ प्राकृत से हट के ओह समय के गँवई बोली में कविता करत रहे। ई गँवई बोली भोजपुरिए होई काहें से कि ईसानचंद्र के गांँव बिहार राज्य के शाहाबाद जिला के पीरो भा पिअरो रहे, जे भोजपुरी क्षेत्र ह। ओह घरी एह क्षेत्र के ‘प्रीतिकूट’ कहल जात रहे।
एह तरह से ‘भोजपुरी कविता के इतिहास’ के पहिला अध्याय ‘पूर्व पीठिका' समाप्त होता बा।
ग्रंथ के बाकी अध्यायन में काल विभाजन वाला क्रम के अनुसार भोजपुरी के कवि आ उनकरा काव्य के बारे में बात कइल गइल बा। एगो अध्याय कई उपशीर्सकन में बाँटल गइल बा। उदाहरण खातिर पाँचवा अध्याय–’देशभक्ति काल’ के लिहल जा सकता बा जेकरा भीतर ई सब उपशीर्षक बाड़न–‘उद्देश्य’, ‘पृष्ठभूमि’, ‘राजनीतिक हालत’, ‘आर्थिक हालत’, ‘सामाजिक हालत’, ‘धार्मिक सांस्कृतिक स्थिति’, ‘साहित्यिक स्थिति’, ‘राष्ट्रीय धारा के प्रमुख कवि आ कविता’, ‘भोजपुरी लोकगीतन में देश-भगती’, ‘समाज-सुधार, दलित विमर्श आ नारी विमर्श के कवि आ उनकर काव्य’, ‘पूर्ववर्ती धारा के विकास’ आ ‘सारांश’।
पाँचवाँ अध्याय के उपशीर्षक ‘पृष्ठभूमि’ में राष्ट्र के स्वरूप के स्पष्ट करे के क्रम में डा मिश्र डा सुनील कुमार पाठक के शोध-ग्रंथ ‘छवि और छाप’(राष्ट्रीयता के आलोक में भोजपुरी कविता का पाठ) से कथन उद्धृत करत बाड़े– “.... विभिन्न विद्वानों ने राष्ट्र के लिए कुछ सत्ताओं (विशेषताओं) की अनिवार्यता मानी है, जैसे देश सम्बन्धी एकता, धर्म की एकता, वर्ग की एकता तथा ऐतिहासिक पूर्वजों के प्रति गौरव की एकता। राष्ट्र में प्रमुख रूप से भौगौलिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक इकाइयाँ पूंजीभूत रहती हैं। इन तीन तत्वों के संकोच या विस्तार के अनुसार राष्ट्र का स्वरूप भी संकुचित या विस्तृत होता है।”
एह अध्याय के उपशीर्षक ‘राष्ट्रीय धारा के प्रमुख कवि आ कविता’ में नर्मदेश्वर प्रसाद सिंह ‘ईश’, शिवशरण पाठक, मदन मोहन सिंह, रघुवीर नारायण, मनोरंजन सिंह, गुंजेश्वरी मिश्र ‘सुजस’, छांगुर त्रिपाठी ‘जीवन’, सुंदर (कजरी गायिका), शायर मार्कंडेय, चंचरीक, सरदार हरिहर सिंह, दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह, राम विचार पाण्डेय, प्रसिद्ध नारायण सिंह, दूधनाथ सिंह आदि कवि लोग के जीवन आ उनकरा कवितन के उदाहरण दिहल गइल बा। अइसहीं ‘समाज सुधार, दलित विमर्श आ नारी विमर्श के कवि आ उनकर काव्य’ उपशीर्षक के अंतर्गत हीरा डोम, भिखारी ठाकुर, बलदेव प्रसाद श्रीवास्तव ‘ढीबरी लाल’, महेंद्र शास्त्री, राहुल सांकृत्यायन, विश्वनाथ प्रसाद शैदा आ रसूल मियां के जीवन-वृत्त आ कविता रखल गइल बा। महेन्द्र मिश्र, श्याम बिहारी तिवारी देहाती, लक्ष्मण शुक्ल ‘मादक’, बिसराम, मन्नन द्विवेदी गजपुरी, कृष्णदेव प्रसाद गौड़ ‘बेढब बनारसी’ जइसन लोग ‘अन्य तरह के कवि आ उनकर काव्य’ उपशीर्षक के अंतर्गत रखल गइल बाड़े।
द्रष्टव्य बा कि दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह अपना ग्रंथ ‘भोजपुरी के कवि और काव्य' में जे काल विभाजन कइले बाड़े ओह में सन् १९०० ई से १९५० ई तक के समय के आधुनिक काल(जेकर दोसर नाँव राष्ट्रीय काल आ विकास काल बा) कहल गइल बा आ एह अवधि में जवन कवि लोग भइल बाड़े ओह में ढेर जाना शृंगारोपरक कविता लिखले बा लोग। डा मिश्र के इतिहास ग्रंथ में एह काल के कई महत्वपूर्ण कवि लोग के नाँव नइखे आ पावल जे दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह के इतिहास ग्रंथ में प्रमुखता से आइल बा। डा मिश्र एह बात के जानते बाड़े, एकर पता उनका १०/०४/२०२५ के लिखल एगो फेस बुक पोस्ट से चलत बा। डा मिश्र के कहनाम बा कि– “कवनो भाषा का साहित्य के इतिहास ओकरा कविता के इतिहास के आधार पर लिखाला। जहाँ तक भोजपुरी भाषा का साहित्य के इतिहास के सवाल बा , बाबू दुर्गा शंकर प्रसाद सिंह नाथ के 'भोजपुरी के कवि और काव्य' खोज पूर्ण बा ।अपना दम भर सामग्री उहाँ का जुटवले बानी । सबसे बेसी उहाँ के मेहनत संत कवियन के बाद जवन श्रृंगारिक आ राष्ट्रप्रेम के कवियन के आ उनका कवितन के खोज बा , में लखार बा । एक से एक कवि आ कविता। अइसन कवियन में बीसू, महादेव, खलील, अब्दुल हबीब, बच्ची लाल, लालमणि, बिहारी, भैरो, ललर सिंह, रूपन, कैद, रसिक किशोरी आदि के नाम शामिल बा । परवर्ती इतिहास लेखक लोग एह में चूक कइले बा । हमहूंँ समय सीमा आ ग्रंथ का आयतन के धेयान राखत चाह के भी अइसन कई लोग के छोड़ देले बानी । बाकिर अइसन भुलाइल बिसरल लोग पर लिखहीं के पड़ी ‌। हम लिखब आ छूटल लोग पर लिखब।”
ग्रंथ के छठवाँ, सतवाँ आ अठवांँ अध्याय सुराज मिलला के बाद के कवि आ उनकरा कविता के लेके लिखाइल बा आ मजगर लिखाइल बा। डा मिश्र के कोशिश रहल बा कि हर ओह कवि के, जेकरा रचना से भोजपुरी साहित्य के कुछुओ हित सध रहल बा, अपना ग्रंथ में स्थान दिल जाउ। ई सद्भाव सामान्य इतिहास रचयिता खातिर ठीक बा। डा मिश्र के इतिहास सामान्य इतिहास ना ह, एह से एह में कुछ कवियन के उपस्थिति खटक सकत बा। अइसहीं, कुछ नीक-नीक कवियन के जवन कविता उद्धृत कइल गइल बा ऊ सामान्य कोटि के बा, ईहो बात खटक सकत बा।
विकास काल (१९७७-२०००) के उपशीर्षक ‘नवकी कविता’ पर बात करत डा मिश्र लिखत बाड़े– “एह काल में नया-नया बोध आ सोच के कवितो खूब उजिआइल आ ओकरा विकास में पुस्तक प्रकाशन आ पत्रिका सब के योगदान रहल। शशिभूषण लाल के ‘कुछ खास किसिम के आवाज’ एह कालावधि के सबसे पहिला नवबोधी काव्य संग्रह रहे। छंद से छुटकारा आ बौद्धिकता के बात। दूसर संग्रह सम्पादित रहे ‘आगे-आगे’ जवना में लगभग अठारह कवियन के मुक्तछन्द के कविता रहे आ सोच आ शैली से ई सब कवि मुक्तछन्दी नवबोधी कविता के धारा के पोढ़ बनवलें। बहुत कवि लोग अपना-अपना कविता संग्रह में गीत-गजल के साथ मुक्तछन्द के कवितन के जगह दिहले रहलें। महेन्द्र गोस्वामी के ‘एगो मेहरारू‘ आ प्रकाश उदय के ‘बेटी मरे त मरे कुंवार’ पूरा क पूरा मुक्तछन्द में रहे, बाकिर लयात्मक रहे।”
जइसन पहिले से चलत आइल बा, एहू इतिहास ग्रंथ में पहिले कवि लोग के बारे में एगो परिचयात्मक टिप्पणी बा आ तब उनकरा एगो अथवा एगो से अधिका कविता के उदाहरण। कवि लोग के परिचय में यथावश्यक किफायत से काम लिहल गइल बा।
डा ब्रजभूषण मिश्र के ‘भोजपुरी कविता के इतिहास’ विशुद्ध रूप से कृतिकार के अपना श्रम आ मेधा के फल ह। डा अर्जुन तिवारी भी ‘भोजपुरी साहित्य के इतिहास’ लिखले बाड़े। बड़हन कलेवर में विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी से छपल ई इतिहास भानुमती के पेटार्ही ह, जेकरा में पन्ना के पन्ना आने के रचना से उड़ावल गइल बा। एगो अन्य इतिहास डा कृष्णदेव उपाध्याय के बा जे इतिहास त ह, बाकिर ओमे विचार तनिक बेसी बा, व्यवहार तनिक कम। रास बिहारी पाण्डेय के ‘भोजपुरी भाषा के इतिहास’ जइसन कि एकरा नांँवें से जनात बा, भाषा के इतिहास ह, साहित्य के ना। नागेन्द्र प्रसाद सिंह आ डा तैयब हुसैन ‘पीड़ित’अपना इतिहास- पुस्तकन में, कथ्य के लेहाज़े समदर्शी नइखन रह सकल लोग। ‘पीड़ित’ के इतिहास-पुस्तक ‘भोजपुरी साहित्य के संक्षिप्त रूपरेखा’ (२००४) ४७ पृष्ठन में भोजपुरी साहित्य के प्रमुख विधा सब के ऊपर लिखल गइल तत्कालीन आलेखन के एगो संग्रह ह जेमें कविता के इतिहास (भोजपुरी काव्य: उद्भव आ विकास) पर मात्र सात पृष्ठ (१२ से १८) बा। अइसन आलेख भोजपुरी साहित्य-लेखन में थोक के भाव से लिखल गइल बाड़े।
दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह के कालजयी इतिहास ग्रंथ १९५८ में छपल रहे। बाद के इतिहास-लेखक लोग अपना समय के साथ चलत अपना समझ आ दृष्टि के सहारे इतिहास-लेखन कइल। डा मिश्र के इतिहास में प्रायः २०१९ के पहिले के सामग्री शामिल बा। कुछ लोगन के एह ग्रंथ में एके बतिया के दोहराव आ दोसरा के कहलका के उद्धरण के बहुलता से अनस बर सकत बा। सभ्य, सुशिक्षित आ वैज्ञानिक विवेक से भरल लोगन के समाज से लगाइत एगो जिज्ञासु पाठक तक एके तहेदिल से पसन करिहें, एमें संदेह करे के कवनों गुंजाइश नइखे जनात।
- विष्णुदेव तिवारी
बक्सर (बिहार)

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