सम्मान (भोजपुरी व्यंग्य): संगीत सुभाष

सम्मान (भोजपुरी व्यंग्य): संगीत सुभाष
संगीत सुभाष










आयोजक आ कवि घुरनाठ 'घुसपैठी' के बतकही लाउडस्पीकर जइसन ऊँच आवाज में होत रहे। बतकही का होत रहे, दुनू जने एक दूसरा की महतारी बहिन के एक तन के नव तन करत रहलें। एतना से काम ना चलल त फैटाफैटी होखे लागल। लड़ाई साँढ़ भँइसा के हो गइल रहे। देखवइया मजा लेत रहलें। केहू आयोजक के समर्थक त केहू कवि घुरनाठ 'घुसपैठी' के समर्थक हो गइल।
मंच पर दुनू जने के ई रौद्र रूप आ मारामारी देखि के मुख्य अतिथि कुछ लोग की सहायता से ढकेलि के कमरा में ले गइलें। कहलें - 'तहन लोग त साहित्यिक संस्था के सब इज्जत मटियामेट क दिहलऽ। आखिर, काहे खातिर ई तमाशा होत बा?'
कवि घुरनाठ 'घुसपैठी' कहलें -'साहित्यिक संस्था के इज्जत जाउ भाँड़ में। अपनी बात पर जे कायम ना रहेला ओकरा साथे हम इहे बेवहार करिले।'
'आखिर भइल का बा, घुसपैठी जी?'
'भइल त बहुत कुछ बा। ई हमसे अढ़ाई हजार रुपिया ई कहि के लिहलें कि हमरा आयोजन में राउर सम्मान कइल जाई। ए सम्मान में लगभग एगारह सइ रुपिया के शाल, स्मृति चिन्ह आ माला रउरा के दिआई। ई सब मिलि के पनरह सइ हो जाई। पाँच सइ रुपिया रउरा भोजन के लागी आ पाँच सइ रुपिया हम एतना बेवस्था करबि त हमरो के चाहीं नू। रउरा जँचे त रुपया जमा क के आ जाईं आ हमरी संस्था के ओर से सम्मानित होईं। हम त सम्मान के खोज में जंगल - झाड़, रेगिस्तान - पहाड़ कहीं जा सकत बानीं। त हम इहवों आ गइनीं। अब रउरे देखीं कि ई शाल एगारह सइ रुपिया के बा? थोक भाव में खरीदल जा त बाजार में दू सइ के रेट में मिलि जाई। हई माला आ स्मृति चिन्ह ह? अइसन माला आ स्मृति चिन्ह से हमार घर भरल बा। भले कुछ लगाइए के मिलल बा त का? ए बेइज्जती आ वादाखिलाफी पर रीसि बऽरी कि ना? - घुरनाठ 'घुसपैठी' एकसँसिए बोलि गइलें।
'अच्छा, जाए दीं। जवन हो गइल तवन हो गइल। ए ममिला के इहवें ओरवाईं सभे।' - मुख्य अतिथि जी समुझावत कहलें।
-'कइसे जाए दीं महराज? काहें ममिला के ओरवाईं? बड़ा मेहनत से रुपिया आवेला। रुपया कवनो फेंड़ पर ना फरेला। रउरा त पहिलहीं गिना लिहले बानीं तब आइल बानीं। हम त हिसाब बराबर कइए के जाएबि।' इहे कहत घुरनाठ 'घुसपैठी' आयोजक के कालर पकड़ि के रोकत-रोकत भर में दू - चार फैट अउरी लगा दिहलें।
मारे डर के आयोजक काँपे लगलें आ 'घुसपैठी' कहलें ओ तरे हिसाब क के बाकी रुपया लवटा दिहलें।
मुख्य अतिथि जी आयोजक से पूछलें -'फिनु से अइसन आयोजन ना नू करबऽ?'
आयोजक -'ना करबि? काहें? कवनो काम में कुछ अड़चन अइबे करेला। ई त हमार रोजी - रोटी ह। बन्द क देबि त खाइबि का?'
- 'आ तू हो घुरनाठ घुसपैठी?'
- 'हमरा सम्मान चाहीं चाहें जहाँ से मिले। केहू बोलाई त जइबे करबि। बाकी लेन देन में एक्के बेर एतना के अन्तर रही त इहे होई जवन इहाँ भइल ह।'
- संगीत सुभाष
(संगीत सुभाष जी के फेसबुक पेज से साभार)

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