डराने-सी लगी है: हरेश्वर राय

मुझको शहनाई भी डराने-सी लगी है
अपनी परछाईं भी डराने-सी लगी है।

घर की खिड़की मेरे खुली नहीं तबसे
जबसे पुरवाई भी डराने-सी लगी है।

दौरे- पाबंदी का चलन हुआ है जबसे
अपनी चारपाई भी डराने-सी लगी है।

दर्द-ए दिल अपना अब बयां करुं कैसे
मुझको रोशनाई भी डराने-सी लगी है।

जिनके बिन पल भी मुझे बरस सा लगे
उनकी अंगड़ाई भी डराने-सी लगी है।

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