रोटी: हरेश्वर राय

इक रोटी मुझसे करने लगी
सवाल रे सांवरिया
वो पड़ी हुई थी पटरी ऊपर
निढाल रे सांवरिया।

कहां गया वो भोलाभाला
मैं जिसका पकवान थी
स्वप्नपरी थी मैं जिसकी
मैं ही जिसका भगवान थी
वो कहां गया मेरा प्यारा
गोपाल रे सांवरिया।

मुझको पाने की खातिर वो
दिन भर स्वेद बहाता था
मैं जब उसको मिल जाती
वो फूला नहीं समाता था
मुझको रखता था वो बहुत
संभाल रे सांवरिया।

वो मानस की था चौपाई
वो गीता की पाठशाला था
कहां गया वह कर्मवीर जो
बहुत बड़ा दिलवाला था
बोल नहीं तो ला दूंगी
भूचाल रे सांवरिया।

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