बुढ़उती के दरद: हरेश्वर राय

मार उमिर के अब त सहात नइखे
साँच कहीं बुढ़उती ढोआत नइखे।

ओढ़े आ पेन्हे के सवख ना बाँचल
फटफटी के किकवा मरात नइखे।

बाँचल नरेटी में इच्को ना दम बा
गरजल त छोड़ दीं रोवात नइखे।

भूख प्यास उन्घी कपूरी भइल सब
हमसे तिकछ दवाई घोंटात नइखे।

लोगवन के नजरी में भइनी बेसुरा
गीत गज़ल सचमुच गवात नइखे।

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