ना रे रे बाबा ना बाबा: हरेश्वर राय
मति छोड़ के जइहs गांव, ना रे रे बाबा ना बाबा
केहू दहीने मिली ना बांव, ना रे रे बाबा ना बाबा।
बाग - बगइचा सब छुट जइहें, छूटिहें खेत बधार
बर्हम बाबा के छूटी चउतरा, छूटिहें छठ -एतवार
नाहिं धाम मिली ना छांव, ना रे रे बाबा ना बाबा।
मालिक से तू बन जइबs, ए सुगवा तू मजदूर
ओठ झुराई, देंह सुखाई, आरे हो जइब अमचूर
मटिया में मिल जाइ नांव, ना रे रे बाबा ना बाबा।
तरकूल के अंठिली अस होइहें दिनहीं रात पेराई
सुस्ताए के समय ना मिली, रहि रहि छूटी रोवाई
लगिहें रोज घाव कुठांव, ना रे रे बाबा ना बाबा।
भोर दिखी ना सांझ दिखी, ना लउकी तारा तरई
दूध- दही सपना होइ जाई, खइब तू सूखल मुरई
रोजे याद परी तोहे गांव, ना रे रे बाबा ना बाबा।
केहू दहीने मिली ना बांव, ना रे रे बाबा ना बाबा।
बाग - बगइचा सब छुट जइहें, छूटिहें खेत बधार
बर्हम बाबा के छूटी चउतरा, छूटिहें छठ -एतवार
नाहिं धाम मिली ना छांव, ना रे रे बाबा ना बाबा।
मालिक से तू बन जइबs, ए सुगवा तू मजदूर
ओठ झुराई, देंह सुखाई, आरे हो जइब अमचूर
मटिया में मिल जाइ नांव, ना रे रे बाबा ना बाबा।
तरकूल के अंठिली अस होइहें दिनहीं रात पेराई
सुस्ताए के समय ना मिली, रहि रहि छूटी रोवाई
लगिहें रोज घाव कुठांव, ना रे रे बाबा ना बाबा।
भोर दिखी ना सांझ दिखी, ना लउकी तारा तरई
दूध- दही सपना होइ जाई, खइब तू सूखल मुरई
रोजे याद परी तोहे गांव, ना रे रे बाबा ना बाबा।