आकार ले रहा नव जहान: हरेश्वर राय

काल बहुत बलवान सखे!
सच काल बहुत बलवान।

दृश्य नया, परिदृश्य नया
प्रसंग और परिप्रेक्ष्य नया
असमंजस में रंगमंच है
खलनायक अदृश्य नया
खड़ा गा रहा ध्वंस गान।

कुसुमाकर के कुसुम उदास
अभिशप्त सब अमलतास
दुविधा में संसार समूचा
भोग रहा अब कारावास
जड़ीभूत ज्ञान - विज्ञान।

छिन्न-भिन्न संबंध हुए सब
शक्तिहीन उपबंध हुए सब
मूल्यों ने खो दिए अर्थ हैं
अर्थहीन अनुबंध हुए सब
निष्फल सारे प्रावधान।

व्यवहार की भाषा बदल गई
त्योहार की भाषा बदल गई
बदल गई सब परम्परायें
परिभाषाएं बदल गईं
आकार ले रहा नव जहान।

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