चलो अब गांव चलें: हरेश्वर राय

क्या सोच रहा नादान
चलो अब गांव चलें
ये शहर हुआ बेईमान
चलो अब गांव चलें।

है यहां ना दाना-पानी
यहां हवा हुई तूफानी
अब सांसों पर पहरा है
सांसत में भरी जवानी
गठियाके सत्तू पिसान
चलो अब गांव चलें।

है दूर बहुत ही जाना
चप्पल है फटा पुराना
राह बहुत मुश्किल है
है भारी बोझ उठाना
ऊपर से जेठ जवान
चलो अब गांव चलें।

ना यदि पहुँच पायेंगे
तो राह में मर जाएंगे
बच भी यदि गए हम
ना लौट कभी आयेंगे
मान रे मनवा मान
चलो अब गांव चलें।

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