उड़ल सार सब: हरेश्वर राय

सियासी छेनी से कालिमा तरासल बिया
चांदनी हमरा घर से निकासल बिया।

भोर के आँख आदित डूबल बा धुंध में
साँझ बेवा के मांग जस उदासल बिया।

सुरसरी के बेदना बढ़ल बा कइ गुना
नीर क्षीर खाति माछरि भुखासल बिया।

कोंपलन पर जमल बा परत धुरि के
बून-बून खाति परती खखासल बिया।

खाली थोथा बचल बा उड़ल सार सब
जिंदगी रेत जइसन पियासल बिया।

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट

मुखिया जी: उमेश कुमार राय

मोरी मईया जी

जा ए भकचोन्हर: डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'

डॉ. बलभद्र: साहित्य के प्रवीन अध्येता - विष्णुदेव तिवारी

सरभंग सम्प्रदाय : सामान्य परिचय - डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'