'सरभंग सम्प्रदाय' संत मत के एगो शाखा ह। जवना के सम्बन्ध कुछ विद्वान लोग अघोर पंथ से जोड़ले बा। कवनो मत भा पंथ से कोई शाखा तबे फूटेला, जब ओकरा व्यवहार, सिद्धांत आ आध्यात्मिक साधना के स्तर पर केहू विशेष प्रभावशाली प्रतिभा-सम्पन्न सिद्ध साधक अपना पारंपरिक व्यवस्था में बदलाव ले आवेला आ ओकर शिष्य जमात ओकरे राहे आगे बढ़ेला। कवनो मत, पंथ भा सम्प्रदाय में बदलाव आ बढ़ाव के ई सनातन स्वाभाविक प्रक्रिया ह। वैदिक, उत्तर वैदिक, जैन, बौद्ध, सिद्ध, नाथ आ निरगुन-सगुन मत सब के क्रमवार विकास एही क्रम से भइल बा। कवनो नया पंथ भा सम्प्रदाय अपना से पुरान मत का प्रासंगिकता तत्वन के अपना समय-समाज के हित में अपना तौर तरीका के हिसाब से अपनावत आ ओकरा अप्रासंगिक चीजन के दरकिनार भा विरोध करत एगो नया स्वरूप में सामने आवत जाला। हं, एकर प्रवर्तक केहू प्रभावशाली चमत्कारी व्यक्ति आ ओकर आचार-विचार जरूर होला। ओह पंथ का नामकरण के पीछे भी कवनो ना कवनो चमत्कारी व्यक्ति भा ओकरा सिद्धांत के आधार होला। सरभंग सम्प्रदायो से इहे सिद्धांत जुड़ल बा। 'सरभंग सम्प्रदाय' के नाम आ अर्थ के लेके विद्वान लोग राय अलग-अलग
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