नरको में अब ठेलम ठेल।

सरग मरग के छोड़ीं बात
नरको में अब ठेलम ठेल।

बाटे बांस ना बाजे बंसुरी
ना बांचल दीयवा में तेल।

आगे नाथ ना पाछे पगहा
तबो संवरुआ खेले खेल।

बुढ़उ के बा पानी उतरत
रोजहीं बचवा धरे नकेल।

कतनो खर्चा पानी कइनी
तब्बो पप्पू भइलन फेल।

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट

मुखिया जी: उमेश कुमार राय

मोरी मईया जी

डॉ रंजन विकास के फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया - विष्णुदेव तिवारी

डॉ. बलभद्र: साहित्य के प्रवीन अध्येता - विष्णुदेव तिवारी

सरभंग सम्प्रदाय : सामान्य परिचय - डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'