मनवे में रहि गइल मन के अरमनवा: हरेश्वर राय

मनवे में रहि गइल मन के अरमनवा
ज़िनिगी में आगी लगवनी सजनवा।

कांछत कीच हमरी बितली जवनिया
अंखियो से देखनी ना रेल रजधनिया
चाभे के मिलल ना एको बीड़ा पनवा।

कुल्लुए घुमवनी ना मनलिए घुमवनी
गोवा के बीचवो ना आजुले देखवनी
हम प मारेला ठाठा देवरा दुसमनवा।

हमरी जिनिगी कबे फागुन ना अइले
ओठवा पर हंसी के फूल ना फुलइले
हड़वा में जड़वा बनवलस मकनवा।
हरेश्वर राय, सतना, म.प्र.

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