मुखिअई लड़ीं

 नोकरी सोकरी कइलीं नाहीं
कइलीं ना कमाई, मुखिअई लड़ीं
पियवा तबे छूटी जिनिगी के काई, मुखिअई लड़ीं।

नइहर के साया साड़िन से अब तक दिन कटाईल जी
कतना फागुन अइले गइले गलिया ना चिकनाईल जी
पिया भाग रउरो अबकी अजमाईं, मुखिअई लड़ीं।

मुखिआ देवरा के मउगी रोजहीं बदले ओठलाली जी
पांच बरीस से रोज मनत बा ओकरा घरे दीवाली जी
बा मोहाल एने लकठो के मिठाई, मुखिअई लड़ीं।

काठा कठुली बेंचि के राजा माल थोरे गठिया लीं जी
दू -चार चोर लफंगन के रउरा बलमा पोटिया लीं जी
लेइके घूमीं रावा बगली में सलाई, मुखिअई लड़ीं।

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