बेयाकरन आ भासा-बिग्याँन - डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'




बेयाकरन आ भासा-बिग्याँन दूनों दू सब्द ह। दूनों के ब्युत्पत्ति दू कालखंड आ परिस्थिति में भइल बा। एकरा में बेयाकरन जेतने पुरान सब्द ह, भासा-बिग्याँन ओतने आधुनिक सब्द ह। अइसे एह दूनों के सम्बन्ध भासा का एक-एक अङ्ग-उपाङ्ग के बिधान-बिबेचन से बा। भासा का अध्ययन के दिसाईं दूनों एक दोसरा के पूरको बनल बाड़ें स। दूनों एक दोसरा खातिर सामग्री जुटावे में सहायक होलें स। बाकिर एह सब के बावजूद दूनों में कुछ बारीक अन्तर बा। जवना के जाने-समुझे खातिर तनी पीछे जाए के पड़ी। काहेकि भासा आ दुनिया के तमाम भासा-परिवार का जवना बिकास-यात्रा सहित ओकरा भासिक रूपन के बरनन, ब्याख्या-बिबेचन आ बनावट का आपसी मेल-बेमेल के तुलनात्मक अध्ययन के भासा-बिग्याँन के बिसय बनावल-बतावल जाला ओकरा अध्ययन के बहुते पोख्ता आ पुरान परम्परा भारत में आदि काल से रहल बा।

जवना कालखंड में संसार का आउर देसन में मानवीय सभ्यता के चर्चो ना रहे ओह समय में भारत मानवीय सभ्यता, संस्कृति, ग्याँन-बिग्याँन, अन्तर्ग्याँन, भासा आ साहित्त का ओह ऊँचाई से 'बेद' मतलब प्रवाहमान ग्याँन से मानव जगत में अँजोत फइलावत रहे। जेकरा बाङ्यम के पहिलके स्रोत ग्रंथ ' बेद ' होखे आ जवना के अरजे आ जीवन में उतारे वाला जन-समूह 'आर्य' मतलब सभ्य, सुसंस्कृत, सबल आ सम्पन्न होखे, ओकरा मानवीय जीवनमूल्यन के बारे में अंदाज लगावल सहज काम ना हो सके। मनु 'बेद' के लौकिक-अलौकिक समस्त ग्याँन के मूल बतावत कहले बाड़ें- 'सर्वज्ञानमयो हि स:'। बाकिर कालान्तर में जब तरह का परिस्थितियन के प्रभाव से बेद के भासा आ ग्याँन प्रभावित होखे लागल तब ओकरा साधु-स्वरूप के बचावे खातिर भारतीय रिसि-मुनि मतलब सांस्कृतिक, नैतिक आ सात्विक रूप से सक्रिय तत्कालीन ग्याँनी, अन्तर्ग्याँनी आ बिग्याँनी- भासा-बिग्याँनी सभे छव बेदाङ्गन के बिधान कइल- सिक्छा (शिक्षा), कल्प, बेयाकरन (व्याकरण), निरुक्त, छन्द आ जोतिस (ज्योतिष)। एह छवो बेदाङ्गन में सिक्छा अर्थात् ध्वनि-बिग्याँन, नियुक्त मतलब सब्द आ अर्थ-बिग्याँन, बेयाकरन मतलब ध्वनि, सब्द, अर्थ के अलावे भासा का मानक रूप के आउर अङ्ग-उपाङ्ग के बिधान आ छन्द मतलब भारतीय बाङ्गमय का पदात्मक संरचना पर बिचार करेवाला बिचार-बंध के सिरजल। जवना के अपना अध्ययन के बिसय बनाके अठारहवीं सदी का दूसरका दसक में पच्छिम के बिद्वान लोग आधुनिक नाम 'भासा-बिग्याँन' दिहल। इहाँ सिक्छा, निरुक्त, निरुक्त के उपाङ्ग निघंटु (बैदिक सब्दकोस) आ छन्द के बिसय में बतावल प्रासंगिक नइखे। काहे अबहीं बेयाकरन आ भासा-बिग्याँन के ब्युत्पत्ति, अर्थ, परिभासा आ प्रयोग के प्रभाव आ काम करे का पधति पर बिचार करेके बा।

बेयाकरन :

आचार्य किशोरी दास वाजपेई बेयाकरन ( स्कृत भासा-रूप व्याकरण  के अर्थ होला - ब्याकृति ; कवनो सब्द के बिछेद क के ओकरा आकृति के साङ्गोपाङ्ग ग्याँन करावल। ऊ एह तथ के समझावत बतवले बारन कि जइसे कि एके धातु पीतर के प्रयोग के अनुरूप कएगो रूप - छीपा, थरिआ, लोटा, गिलास हो जाला, ओइसहीं संस्कृत के एके गो ' पठ् ' धातु में ति, सि आदि प्रत्यय लगाके रूप बन जाला आ ओकरा प्रयोग-भेद से अर्थ-भेद हो जाला। इहाँ पठ् धातु में जवन ति आ सि प्रत्यय लागल बा, ओकरा के बिभक्ति कहल जाला काहे कि एही प्रत्यय सब के माध्यम से 'पठ्' के बिबिध कर्ता के पुरुस, बचन आ काल के हिसाब से बिबिध रूपन में बिभक्त कइल जाला। एह 'पठ्' धातु आ ति भा सि प्रत्यय के के बीचे एगो 'अ' के आगम हो गइल बा, जवना के 'बिकिरन' कहल जाला। एही धातु, प्रत्यय आ बिकिरन आदि के बिधान आ बिछेद भा ब्याकृति बेयाकरन ह। पतंजलि अपना महाभाष्य में एकरा के 'शब्दानुशासन' कहले बारन उहँवे भारत के महान बैयाकरन कस्मीरी आचार्य कैयट के अनुसार ई सब्दानुसासन नाम बेयाकरन के अन्वर्थ ह, काहे कि ई ओह सब्दन का प्रयोग-पधति के अनुसासित चाहे अन्वाख्यान करेला।

'बेयाकरन' के ब्युत्पत्ति बतावत कहल गइल बा कि 'व्याक्रियन्ते विविच्यन्ते शब्दा:, प्रकृतिप्रत्ययादयो वा, येन तद् व्याकरणम्', अर्थात् बेयाकरन के अर्थ होला- ब्याकृत कइल, बिबेचन कइल। एकरा माध्यम से प्रकृति आ प्रत्यय के ब्याख्या कइल। पतंजलि का 'लक्ष्य लक्षणे व्याकरणम्' के मुताबिक भासा-संरचना के नियम आ उदाहरन का समुदाय के बेयाकरन कहल जाला। एगो कालखंड में प्रचलित भासा-रूपन का मान्य साधु रूप का बिधान के आख्यान ह बेयाकरन। एकरा में भासा का रूप-तत्व आ अर्थ-तत्व के ब्याख्या पावल जाला। एही से कहल गइल - 'व्याक्रियन्ते व्युत्पाद्यन्ते शब्दा: अनेन इति।' महाभारतो में इहे कहल गइल कि 'तन्मूलतो व्याकरणं व्याकरोति तत्तथा।' कहे के अभिप्राय ई कि सब्द आ सब्द का रूपन के ब्याकृति करेवाला बेयाकरन ह।

बिकास आ रूप में बदलाव हर भासा के प्रकृति ह आ ओह बिकास अउर रूप-परिवर्तन के एगो स्वाभाविक प्रक्रिया होला। कवनो भासा में होत एह रूप परिवर्तन के पहिले आ परिवर्तित रूपन के साधुता- सुद्धता के खेयाल करत ओकरा के मानक आ मर्यादित करे आ रखे के काम बेयाकरन के ह। एकरा में पद के आकृति आ रचना-तत्व के संजोग से सब्द के स्वरूप आ ओकरा अर्थ के ब्याख्या-बिबेचन कइल जाला। हर भासा के प्रकृति-प्रवृति के अनुरूप ओकर बेयाकरन बनेला। बेयाकरन के महत्ता बतावत कहल गइल बा- 'मुखं व्याकरणं स्मृतम्।' ई बेयाकरन भासा के पोढ़ आ थिराइल रूप के बिधान करेला। ई भासा का साधु-असाधु प्रयोग के ग्याँन करावेला। एही से भर्तृहरि का कहे के पड़ल कि 'साधुत्व ज्ञान विषया सैषा व्याकरण स्मृति।' एक तरह से बेयाकरन अपना मूल स्वभाव में प्राचीनताबादी आ रूढ़िबादी होला आ भासा का प्राञ्जल रूप के अनुगमन करत ओकरा रूपन के नियम-बिधान करत ओकरा के उदाहरन के कसउटी पर राखेला अउर जवन ओकरा बिधान के बाहर रह जाला ओकरा के अपवाद का खाना में डाल देला। एह बेयाकरन के माध्यम से कवनो भासा के नियमबद्ध रूप से जानल आ जनावल जाला। एह तरह से बेयाकरन के रचना एगो खास कालखंड का कवनो भासा के प्रकृति-प्रवृति आ प्रयोग के आधार पर होला। एकरा बाद ओह भासा के भासिक-संरचना थिराए का सङ्गहीं एक सीमारेखा में सिमट जाला। बेयाकरन के मर्यादा में ओकर साधुता त बरकरार रहेला बाकिर ओकर बिकास बाधित होखे लागेला; जइसे पाणिनि के अष्टाध्यायी के मर्यादा में साधुता के प्राप्त संस्कृत भासा एगो सीमारेखा में सिमट गइल आ ओकर बिकासधारा अवरूध हो गइल। जवना के संत कबीर कहलें - 'संसकीरत हव कूप जल, भाखा बहता नीर।'

भासा-बिग्याँन :

आज कल भासा के अध्ययन-अनुसंधान आ बारीक ग्याँन खातिर 'भासा- बिग्याँन' नाम बहुते लोकप्रिय आ प्रचलन में बा। अठारहवीं सदी के बाद जब पच्छिम के प्रभाव में भासा-अध्ययन के क्षेत्र में ई नाम के प्रसिद्ध भइल त पच्छिम के अनुसरन करत भारतो में एकर परिभासा गढ़ाये लागल। संस्कृत में एकर परिभासा दिआइल - 'भाषाया: विज्ञानम् - भाषा - विज्ञानम्। विशिष्टं ज्ञानम् - विज्ञानम्।' अर्थात् भासा के बिसेस बिबेचनपरक ग्याँन के भासा-बिग्याँन कहल जाला। यूरोप में एकरा के 'साइंस ऑफ लैंग्वेज'(Science Of Language) कहल गइल बा। भासा- बिग्याँन खातिर सन् १३८६ ई. में सबसे पहिले फिलोलाजी (Philology) सब्द के प्रयोग भइल। ई फिलोलाजी सब्द ग्रीक भासा के फिलोस (Philos) माने प्रिय चाहे प्रेमी आ लोगियो ( Logia ) आ लैटिन भासा के लोगिया (Logia) माने ग्याँन के साखा चाहे बिग्याँन सब्द से मिल के बनल बा। बाकिर भासा-बिग्याँन का अर्थ में एकर बेवहार अठारहवीं सदी का दूसरका दसक से मिलेला। दुनिया के भासा सब के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर एह भासाई अध्ययन आ अनुसंधान के सिरी गनेस सबसे पहिले सन् १७६७ ई. में फ्रांस के बिद्वान पादरी कोर्दो ग्रीक, लैटिन आ फ्रेंच के भारतीय भासा संस्कृत का सङ्गे तुलनात्मक अध्ययन के रूप में कइलें। एह तरह से भासा अध्ययन का एह बैग्याँनिक पधति के पैदाइस एही भारत का धरती पर तब भइल जब यूरोपीय बिद्वान लोग का भारत के समृद्ध भासा संस्कृत आ ओकरा ग्याँनागार के बोध भइल। ऊ लोग इहाँ के भासा-पंडित लोग का मदद से अपना भासा-परिवार से इहाँ के भासा-परिवार के सङ्गे तुलनात्मक अध्ययन कइल प्रारम्भ कइल।

पच्छिम के बिद्वान सबसे पहिले एकरा खातिर कम्पेरेटिव ग्रामर (Comparative Grammar) सब्द के आ फेर कम्पेरेटिव फिलालाजी (Comparative Philology) सब्द के प्रयोग कइल। कम्पेरेटिव फिलालाजी मतलब तुलनात्मक भासा-बिग्याँन। उनइसवीं सदी आवत-आवत एकरा खातिर 'फिलोलाजी' सब्द रूढ़ हो गइल। यूरोप के आधुनिक बिद्वान लोग फिलोलाजी का सङ्गे कम्पेरेटिव सब्द के जोड़ल पसन्द ना करे। सन् १८१७ ई. में यूरोपीय बिद्वान डेवीज भासा-बिग्याँन खातिर ग्लोसोलाजी (Glossology) आ सन् १८४१ ई. में प्रियर्ड ग्लोटोलाजी (Glottology) सब्द के चलावे के प्रयत्न कइलें, बाकिर ई दूनों सब्द चल ना सकल। जब भासा-बिग्याँन खातिर ग्रीक-लैटिन नाम फिलोलाजी (Philology) खातिर अंगरेजी में 'साइंस ऑफ लैंग्वेज' जइसन भारी-भड़खम नाम चलावल गइल त अंगरेजी बिद्वान लोग ओकरा खातिर छोट सब्द लिंग्विस्टिक (Linguistics) का प्रयोग के प्राथमिकता दिहल। ई 'लिंग्विस्टिक' सब्द लैटिन के लिंगुआ (Lingua माने जीभ) से बनल बा। फ्रांस में आजुओ लिंग्विस्टिक (Linguistique) सब्द के प्रयोग भासा-बिग्याँन के अर्थ में कइल जाला। उहँवे उनइसवीं सदी में इहे सब्द लिंग्विस्टिक अंगरेजी में लिंग्विस्टिक्स में बदल गइल। जवना खातिर जर्मन में 'स्प्राखविस्सेनशाफ्ट'(Sprachwissenschaft) आ रूसी भासा में ' याजिकाज्नानिये ' सब्द के प्रयोग होला। रूसी भासा में 'यजक' के अर्थ होला- भासा आ 'ज्नानिये' के अर्थ होला- बिग्याँन।

बेयाकरन आ भासा-बिग्याँन दूनों के सम्बन्ध भासा के बिधान आ ओकरा ब्याख्या-बिबेचन से बा। बाकिर दूनों में कुछ बिसेस मौलिक अन्तर बा; जइसे -

१. बेयाकरन भासा का प्राञ्जल रूप का मानक बिधान के बेवस्थित करेला त भासा-बिग्याँन प्राञ्जल भासा के अलावे साहित्तिक भासा, सम्पर्क भासा, उपभासा, बोली, उपबोली आदि हर भासा का एक एक पक्ष पर बैग्याँनिक पधति से बिचार करेला।

२. बेयाकरन एगो खास काल में प्रचलित भासा का ध्वनि-प्रकृति आ भाव-प्रकृति के आधार पर नियमन के सूची बनावेला आ जवन चीज ओकरा नियमन का खाना में ना बइठे ओकरा के अपवाद का कोटि डाल देवेला उहँवे भासा- बिग्याँन नियम त ना बनावे, बाकिर बनल नियमन के कारन आ दिसा के ब्याख्या - बिबेचन करत ई सुझाव देवेला कि एकर नियम अइसे हो सकेला आ अपवाद हे कारन से नियम में नइखे फिट बइठत।

३. बेयाकरन लोक-बेवहार के आधार पर मान्य भासा-रूप का नियम के रेघियावत ओकरा पर बल देवेला उहँवे भासा-बिग्याँन भासा भा बोली का वास्तविक आ बेवहारिक प्रयोग के पक्ष में आपन बिचार राखत ओकरा कारन के उजागर करेला। ऊ बेयाकरन सम्मत प्रयोग के अलावे ओकरा से छूट गइल असाधु, असिद्ध, अमानक आ उपेक्षित भासा रूप आ उपभासा, बोली आदि सबके महत्व देत सब पर बिचार करेला।

४. बेयाकरन भासा के बर्तमान रूप के अनुगामी होला उहँवे भासा-बिग्याँन ओकरा अतीत आ बर्तमान का प्रयोग के अलावे ओकरा पर आउर भासा का भासिक तत्वन के पड़त प्रभाव के अध्ययन करत आपन बिबेचन प्रस्तुत करेला।

५. बेयाकरन कवनो मानक चाहे प्राञ्जल भासा का नियमन के दिखाईं प्राचीनताबादी आ रूढ़िबादी होला उहँवे भासा-बिग्याँन नवीनताबादी आ प्रगतिबादी होला। भासा-बिग्याँन भासा में हो रहल बदलाव के बिकासमूलक मान के ओकरा कारन आ दिसा पर बिचार करेला।

६. बेयाकरन भासा का जवना प्रयोग के असाधु भा बिकृत मान के छोड़ देवेला, भासा-बिग्याँन ओकरो बिबेचन करत ओकर कारन बतावेला।

७. बेयाकरन का नियमन में बन्हाइल भासा में जड़ता आ जाला आ भासा-बिग्याँन के ब्याख्या आ बिबेचन से भासा प्रगतिसील बन जाला। संस्कृत में पहिले मिट्टी पर गमन करेवाला हर जानवर के मृग कहल जात रहे जवन बाद में एगो खास जानवर का अर्थ में रूढ़ हो गइल। बेयाकरन एकर कारन ना बताई। बाकिर भासा-बिग्याँन ई बतावे के उद्यम करी कि आखिर ई कब से आ केकरा प्रभाव से हो गइल।

८. बेयाकरन पहिले भासा के प्रचलित स्वरूप के आधार पर नियम तय कर देवेला तब भासा-बिग्याँन भासा के ऊ सब्द कइसे बनल?, कहँवा से आइल?, ओकरा अर्थ में बदलाव कवना कारन से आइल? आ ओकरा पर कवना भासा के प्रभाव बा? एह सब के पड़ताल करत ओकर कारन प्रस्तुत करी।

९. बेयाकरन भासा के नियम सम्बन्धी 'का' सवाल के जबाब देके चुपा जाई। ऊ नियम काहे बनल, कइसे आ कब लागू भइल आदि सवाल के बिबेचन भासा-बिग्याँन करी।

एह तरह से बेयाकरन में बरनन के प्रधानता होला आ भासा-बिग्याँन में ब्याख्या आ बिबेचन के। कवनो भासा के नियम आ उदाहरन जाने खातिर बेयाकरन के जरूरत होला आ ओह नियम के तार्किक बिबेचन खातिर भासा-बिग्याँन के। एह से भासा-बिग्याँन के बेयाकरन के बेयाकरन कहल जाला। हिन्दी में 'आय' सब्द इस्त्रीलिंग आ 'ब्यय' सब्द पुलिंग होला- ई बात बेयाकरन बताई। बाकिर ई 'आय' इस्त्रीलिंग आ 'व्यय' पुलिंग काहे हो गइल, एकर कारन खोजत भासा-बिग्याँन बताई कि हिन्दी के 'आय' सब्द फारसी का इस्त्रीलिंग सब्द 'आमद' के प्रभाव से इस्त्रीलिंग हो गइल बा। बेयाकरन के सम्बन्ध भासा के ओह मानक से होला जवन तय करेला कि कहँवा कवन प्रयोग होई, बाकिर भासा-बिग्याँन ओह मानक आ प्रयोग के पीछे ना जाके खाली अतने जाने के चाहेला कि कब, कहाँ आ कइसन प्रयोग होला। बेयाकरन कवनो भासा के खाली रूप देके चुप हो जाई; जइसे - हम जा तानी, हम चल देनी आ हम गइनीं। बेयाकरन ई ना बताई कि एके गो 'जाए' के अर्थ खातिर जा, चल आ गइनीं तीन गो क्रिया के रूप काहे भइल। ई भासा-बिग्याँन बताई कि संस्कृत में 'जाए' का अर्थ खातिर तीन गो धातु 'या, चल् आ गम्' चलेला। 'या' के 'जा' हो गइल जवना से भोजपुरी में जा तानी, आ चल् से चल तानी आ गम् धातु से गइनीं रूप बन गइल।

एह तरह से भासा के बिधान आ बिबेचन से जुड़ल रहला के बावजूद बेयाकरन के क्षेत्र सीमित बा उहँवे भासा-बिग्याँन के क्षेत्र बहुते बिस्तार लेले बा। बेयाकरन कवनो एक भासा के नियम प्रस्तुत करेला उहँवे भासा-बिग्याँन दुनिया के हर भासा के इतिहास, बिकास-परम्परा, अनेक भासा के तुलनात्मक अध्ययन आदि प्रस्तुत करेला।
सम्प्रति:
डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'
प्रताप भवन, महाराणा प्रताप नगर,
मार्ग सं- 1(सी), भिखनपुरा,
मुजफ्फरपुर (बिहार)
पिन कोड - 842001

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