भोजपुरी मातृभासाई अस्मिता के खोज - डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'



'भाषा' के 'भासा' लिखल देख के बिदकी जन। भोजपुरी के उचारन के दिसाईं इहे सही बा। भोजपुरी में भाषा के भासा बोलल आ लिखल जाला। काहे कि ई बैदिक परम्परा से आइल देसी प्राकृत भासा ह। प्राकृत मतलब बोले भा उचारे के प्रकृति आ प्रवृत्ति के हिसाब से लिखाए वाली ना, लिखाए वाला भासा। कवनो भासा में लिंगो ओह भासा-भासी जनसमूह के बेवहार से तय होला जइसे- संस्कृत के पुलिंग 'आत्मा' हिन्दी में स्त्रीलिंग हो जाला। हिन्दी के स्त्रीलिंग 'चर्चा' आ 'धारा' उर्दू में पुलिंग हो जाला। खैर, इहाँ बात होत रहल ह भाषा आ भासा के, त ऋग्बेद के 7/7/4 आ 8/23/5 में 'अभिख्या भासा बृहदा ' क के प्रयोग भइल बा आ भाषा चाहे भासा ' भाष् ' चाहे ' भास् ' धातु से बनल बा। जवना के अर्थ होला- ब्यक्त वाक् मतलब समुझे-बूझे जोग बोलल। संस्कृतो में लिखल बा कि ' भास् व्यक्तायां वाचि।' एह से भोजपुरी में भाषा के भासा चली। अइसहूं भोजपुरी के उचारन में अकसरहाँ जुड़वा ब्यंजन के बेवहार ना होला चाहे होइबो करेला त संस्कृत आ हिन्दी के प्रभाव से होला, ओही तरह से भोजपुरी में ण, श आ ष के जगे न, स आ ख के उचारन होला। जवना के बारे में आगे बात राखल जाई। अबहीं असली मुद्दा मातृभासा के बा।

भोजपुरी हमार मातृभासा ह, मात्र भासा ना ह। मातृभासा मतलब हमरा आ हमरा मतारी द्वारा अपनावल हमरा पैतृक परिवार आ पड़ोस के कम से कम तीन-चार पीढ़ी के पारंपरिक संस्कार-पारिवारिक बेवहार के भासा। हमरा जिनगी के ऊ पहिल भासा,जवन हम अपना मतारी के गर्भ में पलात-पोसात छठे-सतवाँ महीना से सुभद्रा के अभिमन्यु जइसन महसूसे लगनीं आ जनम लिहला के बाद मतारी आ परिवार-पड़ोस के गोदी में तुतरात 'तूती' के रूप में पाके अबोध से सबोध भइनीं। सबोध भइला के बाद जिनगी के ओही पहिल भासा के जरिए आगे के जीवन सुखमय जीये खातिर आउर-आउर भासा के सिखनीं, पढ़नीं, लिखनीं आ अपनवनीं। एह तरह से बाद के अरजल हर उपयोगी भासा के मातृभासा भइल हमार भोजपुरी। एह तरह से हमरा खातिर भोजपुरी भासा हमरा अरजल हिन्दी, संस्कृत, अंगरेजी आदि हर भासा के मातृभासा बा।

साँच कहीं त पुरान भारतीय वाङ्मय में ' मातृभासा ' जइसन कवनो सब्द नइखे। ई अंगरेजी का 'मदरटंग' के हिन्दी अनुबाद ह। ऋग्वेद का एगो ऋचा में कहल गइल बा - ' इला सरस्वती मही तिस्त्रो देवीर्मयोभुव:। ' पच्छिम के बिद्वान एकर अंगरेजी में उल्था कइलें - ' वन शुड रेस्पेक्ट हिज मदरलैंड, हिज कल्चर एंड हिज मदरटंग, बिकौज दे आर गिभर्स ऑफ हैप्पिनेस।'( One should respect his motherland, his culture and his mothertongue, because they are givers of happiness. )

एह अनुबाद में ' सरस्वती ' मतलब ' बानी ' खातिर ' मदरटंग ' माने मातृभासा सब्द के पहिला बेर प्रयोग भइल। बच्चा का मतारी के भासा के मातृभासा कहल गइल। जवना से कई गो सवाल खड़ा हो गइल ; जइसे- जदि बच्चा के जनम देते ओकरा मतारी के मृत्यु हो जाए तब ओह बच्चा के मातृभासा का होई?, बच्चा का मतारी के मातृभासा ओकरा बिआह के पहिले ससुरार का परम्परागत पारिवारिक भासा से अलग होखी तब ओह बच्चा के मातृभासा का होई? आदि। तब पच्छिम के भासाविद् लोग कहल कि बच्चा के मतारी, बाप सहित ओकरा परिवार आ पड़ोस के परम्परागत बेवहारिक बोली भा भासा के ही ओह बच्चा के पहिल भासा, निज भासा, स्वभासा भा मातृभासा कहल जाई। जवना में ऊ बच्चा तुतरात अबोध से सबोध होखी आ ओही सीखल-अरजल पहिल पारिवारिक भासा के माध्यम से जीवन-जगत से जुड़ल जानकारी अउर दोसर भासा सबके बोले, पढ़े आ लिखे के काबिल बनेला। एह से ओह बच्चा के उहे परम्परागत पारिवारिक भासा ओकर मातृभासा कहाई। एकर पच्छिम के बिद्वान लोग अंगरेजी में कहल - " द टर्म ' मदरटंग ' शुड बी इंटरप्रेटेड टू मीन दैट इज दि लैंग्वेज ऑफ वन्स मदर। इन सम पैटर्नल सोसाइटीज, दि वाइफ मूव्स इन विथ द हस्बैंड एंड दस मेय हैव ए डिफरेंट फर्स्ट लैंग्वेज, ऑर डायलेक्ट, दैन द लोकल लैंग्वेज ऑफ द हस्बैंड, येट देयर चिल्ड्रेन यूजुअली वनली एस्पीक देयर लोकल लैंग्वेज। ऑनली ए फ्यू विल लर्न टू एस्पीक मदर्स लैंग्वेज लाइक नैटिव्स। मदर इन दिस कन्टेक्स्ट प्रोबेब्ली ओरिजनेटेड फ्रौम द डिफिनिशन ऑफ मदर एज सोर्स, ऑर ओरिजिन; एज इन मदर कन्ट्री ऑर लैंड।------ इन द वर्डिंग ऑफ द कोस्चन ऑन मदरटंग, द एक्सप्रेसन ' एट होम ' वाज एडेड टू एस्पेसिफाई द कान्टेक्स्ट इन विथ द इंडिविजुअल लर्न्ड द लैंग्वेज।"

(" The term ' Mothertongue ' should be interpreted to mean that is the language of one's mother. In some paternal societies, the wife moves in with the husband and thus may have a different first language, or dielect, than the local language of the husband, yet their children usually only speak their local language. Only a few will learn to speak mother's language like natives. Mother in this context probebly originated from the deffinition of mother as sourse, or origin; as in mother country or land -----. In the wording of the question on Mothertongue, the expression ' at home ' was added to specify the context in with the individual learned the language. "

एने आके मातृभासा से जुड़ल हमरा एगो संस्कृत अस्लोक पढ़े के मिलल -

' मातृभाषा परित्यज्य येऽन्यभाषामुपासते।
तत्र यान्ति हि ते सर्वे यत्र सूर्यो न भासते।।'

मतलब, जे अपना मातृभासा के छोड़ के रोजी-रोजगार, रोब-रुतबा भा आउर उपलब्धि खातिर दोसरा के भासा अपनावेला, ओकर आपन पहचान मिट जाला। ओकर दोसर भासा-भासी सम्मान ना करस। भले ऊ आर्थिक रूप से केतनो समृद्ध काहे ना हो जास।

" एही चीज के मोती बी ए लिखले बारन-
अपना चिजुइया के जे नाहीं बूझी,
ओकरा के दुनिया में केहू नाहीं पूछी।
अपने चिजुइया से अपने बेगाना,
चारो ओरिया ढ़ूँढ़ अइबऽ पइबऽ ना ठेकाना।"

हमरा खातिर हमार मातृभासा भोजपुरी हमार आँख ह आ जरूरत आ रूचि के दिसाईं बाद के अरजल आउर दोसर भासा सब ओह आँख पर चढ़ल चस्मा। अपने आप में जमीनी आ पारिवारिक संस्कार समेटले मातृभासा रूपी आँख बा त कतनो कीमत के फ्रेम आ कतनो पावर के सीसा वाला चस्मा कामे आई आ ना त सब बिना काम के साबित होई। अपना पुरखन द्वारा एही मातृभासा रूपी आँख में अपना परिवार, पड़ोस आ परिवेस के पहचान, ओकरा अस्तित्व के प्रति अस्मिता के बोध, परम्परागत ग्यान, संस्कार आ संस्कृति, बेदना-सम्बेदना, लोक साहित्त आदि सब संगिरहा कइल गइल बा। ई खतम तब सब खतम। हमार राउर पहचान खतम। हम अपना निजी सुख-सुविधा आ आधुनिक समृद्धि खातिर एह कुल्ह के गँवा के सवारथ ला आन भासा आ ओकरा संस्कार- संस्कृति में आपन अस्तित्व बिलीन ना कर सकीं आ केहू एहसानमंद मनई के अइसन ना करे के चाहीं। जइसे जनम देके पालत-पोसत दुनियादारी के बोध करे जुगुत बनावे वाली माई जदि गरीब आ लुगरी में होई त केहू राजकुमार के माई ओह माई के जगह ना नू ले ली, भले ऊ जरूरत आ बेवस्था के हिसाब हमनी उनका के रानिए माई काहे ना कहीं। ग्यान, बिग्यान आ अन्तर्ग्यान के दिसाईं सम्पन्न भइला के बाद हमार आ ओह सब संस्कारी पूत के दायित्व बन ता कि अपना अरजल एह हर सम्पदा से अपना मातृभासा रूपी माई के सम्पन्न बना के अपनहूँ गौरवान्वित होखीं। आदमी का जिनगी जीए ला जरूरी दुनिया के अधिक से अधिक भासा सीख- जान के आ पढ़-लिख के ओकरा से मिलल हर ग्यान-सम्पदन के अपना मातृभासा में ढ़ाल के अपना समाज आ क्षेत्र के लाभान्वित करे के चाहीं।

मातृभासा, निजभासा आ स्वभासा एके चीज ह। एह निज भासा आ सउँसे देस के सम्पर्क भासा, राजभासा आ राष्ट्रभासा के आपन-आपन मोल- महातम आ मान- मरजाद बा, बाकिर कवनो निसोख मनई का मन-मिजाज आ दिल-दिमाग में पेहम होके जवन भासा बेदना- सम्बेदना के अस्तर पर अपना निजपन के पहचान देत आत्मीय परिवार, पड़ोस आ परिवेस के एक जीवन सूत्र में बान्हेला ऊ आउर कवनो भासा, चाहे ऊ केतनो बरिआर, असरदार भा सरकारी रोजी-रोजगार वाला काहे ना होखे, ओकर बराबरी ना कर सके। एकरे के बिद्यापति कहले रहस - 'देसिल बयना सब जन मिट्ठा' आ एही से भोजपुरी के पहिल आधुनिक कबि भारतेंदु हरिश्चन्द कहलें - ' निज भासा उन्नति अहे, सब उन्नति के मूल। बिन निज भासा ग्यान के मिटत ना हिय के सूल।।' एह से तमाम तरह का सुख- सुबिधा के समर्थ साधन भइला के बादो कवनो आन भासा, राजभासा, सम्पर्क भासा भा राष्ट्रभासा निज भासा मतलब मातृभासा के जगह ना ले सके। जइसे देसे ना, दुनिया का हर भासा के अपनाइयो के हम अपना स्वभासा के ना तेज सकीं, ओइसहीं अपना मातृभासा के कीमत दुनिये ना, अपना देसो के कवनो भासा के ना अपना सकीं। देस-दुनिया हमरा मातृभासा के सम्मान, मान्यता आ अधिकार देवो त हमरो से आउर कवनो भासा के सम्मान, मान्यता आ अधिकार के बात करो। जइसे स्वराज्य ( Self Rule ) के पिआस दोसरा के सुराज ( Good Rule ) उत्तम राज से ना बूझ सके, ओइसहीं मातृभासा के पिआस कवनो दोसर भासा से नइखे बुझावल जा सकत।

जइसे देस-दुनिया का हर भासा-भासी के आपन एगो निजभासा मतलब मातृभासा होखेला ओइसहीं हमरो आपन निजभासा मतलब मातृभासा बा भोजपुरी। बिआ ना होके बा एह से कि ई पुरखन का पौरुष से अरजल परम्परागत पौरुषेय भासा अर्थात् मैस्कुलिन लैंग्वेज ह। पुलिंग प्रधान भासा ह। एकरा में इस्त्रीबाची लिंग बिधान खाली गोटाह जीवधारी तक सिमटल होला। एह से लिंग बिधान के ममला में खड़ी बोली हिन्दी के नकल करते भासा के मिजाज आ सवाद दूनो गबड़ा जाला।

खड़ी बोली हिन्दी एह देस के सबसे मजबूत सम्पर्क भासा ह। जवना के आजादी मिलला के बाद भारतीय संबिधान के जरिए राजकाज के भासा मतलब राजभासा के अधिकार दिआइल। आ देस छोड़ के जात अंगरेजन के प्रसन्न करे आउर आंग्ल भारतीय ( एंग्लो इंडियन्स ) के प्रति तुष्टिकरन का नीति के तहत अंगरेजी के पहिले दस बरिस खातिर अउर फेर आगहूं खातिर सहायक राजभासा बनाके खड़ी बोली हिन्दी के माथ पर बइठा दिआइल। तब से संबिधान में बिआ राजभासा खड़ी बोली हिन्दी आ बिधान में बिआ अंगरेजी। जवना के चलते अंगरेजी दबावेले खड़ी बोली हिन्दी के आ खड़ी बोली हिन्दी उहे बरताव करेले आउर भारत का राष्ट्रीय भासा सब का साथे। जवना के चलते एह देस में जब ना तब भासाबाद के लफड़ा लागत रहेला। जदि ई हिन्दी खाली कौरवी-बांगरू भासा आधारित खड़ी बोली के जगहा देस के तमाम भासा सब से रस लेके सउँसे देस के एक रससूत्र में बान्ह पाइत, जवन महात्मा गाँधी के सपना रहे आ संबिधान का आठवीं अनुसूची के बिधानो हिन्दी के समृद्धे करे का उदेस से बनल रहे। बाकिर ओपर अमल ना होके सरकार उत्तर भारत का तमाम मातृभासा सब के गरदन दबावत खड़ी बोली हिन्दी के उत्तर भारत के मातृभासा बता के संख्या गिना रहल बिआ, उत्तर भारत का तमाम मातृभसन का बिकास आ अधिकार के राह में रोड़ा बनल बिआ आ ओने दक्खिन भारत खड़ी बोली हिन्दी के उत्तर भारत के मातृभासा समझ के राष्ट्रभासा के, के कहो राजोभासा नइखे मानत। एह से सरकार आ समाज का एह मातृभासा वाला मामला सुलझा के हिन्दी के स्वाभाविक राजभासा आ राष्ट्रभासा बनावे के दिसाईं ईमानदार पहल करे के चाहीं।

भोजपुरी भारत के लगभग पचास हजार बर्गमील से भी बड़ भू-भाग में निवास करेवाला जन-समुदाय के मातृभाषा ह। ई पचास हजार बर्गमील वाला भू-भाग ' भोजपुरी-पट्टी ' के नाम से जानल जाला। जवन पूर्बी उत्तर प्रदेस ( प्रयाग से पूरब ), पच्छिमी बिहार ( तिरहुता- मैथिली आ मगही क्षेत्र के पच्छिम ) के अलावे झारखंड, मध्य प्रदेस, छत्तीसगढ़ आ नेपाल का कुछ हिस्सन में बिस्तार लेले बा। जवना के भारत आ दुनिया के सबसे नवीन भासा हिन्दी ( खड़ी बोली ) के क्षेत्रफल आ मातृभासी जनसंख्या के बड़ बिस्तार देखावे का उदेस से ' हिन्दी-पट्टी ' बताके भोजपुरी भासी जन-समुदाय का संगे अन्याय कइल जाला। साँच कहीं त हिन्दी भारत के कई मातृभासा सब का समन्वय से अरजल एगो देस अस्तरीय सम्पर्क भासा ह आ एही जमीनी सम्पर्क-बिस्तार के ध्यान में रखके एकरा के भारतीय संबिधान में एह महान गणराज्य के राजभासा बनावल गइल। राष्ट्रभासा एह से ना बनावल गइल काहे कि देस के स्वाधीन होखे के कुछ समय पहिले पचास का दसक से कुछ हिन्दी सेवी साहित्यकार आ स्वाधीनता आंदोलन के सेनानी लोग उत्तर भारत के बहुते बड़ भू-भाग के हिन्दी-पट्टी आ हिन्दी के ओह पट्टी के मातृभासा कहे लागल रहे। जवना से दक्खिन में बिरोध के स्वर उभरे लागल कि उत्तर भारत के मातृभासा हिन्दी दक्खिन के राष्ट्रभासा आ राजभासा कइसे होई? एह से एक त हिन्दी राष्ट्रभासा ना बन सकल आ दोसरे एकरा संगे-संगे अंगरेजी के सह राजभासा बनाके देस का माथा पर बइठा दिहल गइल। आगहूं जबले भोजपुरी-पट्टी के हिन्दी-पट्टी आ भोजपुरी मातृभासाई क्षेत्र के मातृभासा हिन्दी के क्षेत्र बतावल जात रही तबले चाहे ' हिन्दी ' दुनिया के चउथी भासा भा तीसरी-दूसरी भासा भलहीं हो जाए, भारत के राष्ट्रभासा आ एकबागा राजभासा ना बन पाई।

सब बूझ-समुझियो के जे लोग मउनी बाबा बनल ' दुलहवो के भाई आ कनियवो के भाई ' बनल रहेला, ओह लोग के आँखि के ढेढर खोले खातिर इहाँ हिन्दी के कुछ बिद्वान लोग के बयान परोसे के चाहत बानी जे हिन्दी के भारत का कवनो हिस्सा के मातृभासा ना मानके सउँसे भारत के सम्पर्क आ राजकीय भासा साबित कइले बारन। भारत के राष्ट्रकवि, हिन्दी सेवी राजसभा सदस्य रामधारी सिंह दिनकर अपना इतिहासिक ग्रंथ ' संस्कृति के चार अध्याय ' का भूमिके में साफ-साफ लिखलें कि ' खाली हिन्दिये एगो अइसन भासा ह जे सही माने में किसी क्षेत्र के मातृभासा ना ह। कदाचित इहे वजह बा कि सउँसे देस ओकरा के अपना भासा के रूप में अपना रहल बा।( पन्ना - ४० )। हिन्दी के बहुत बड़ बिद्वान आचार्य आ आलोचक डॉ. नामवर सिंह हिन्दी अकादमी, दिल्ली के ' भारतीय भाषाएं और राष्ट्रीय अस्मिता ' बिसयक संगोष्ठी में बेबाकी से बोललें कि ' इहँवो जबकि सबलोग हिन्दी बोल रहल बा, जदि प्रदेस आ भासा के नाम ना बतावल जाइत तबो उनका हिन्दी के उचारन से अपने सब पहचान सकत रहीं कि उनकर मातृभासा का बा।'( भारतीय भाषाएं और राष्ट्रीय अस्मिता , पन्ना - पन्ना-५३ )। डॉ. अशोक चक्रधर ( हिन्दी अकादमी, दिल्ली के पूर्व अध्यक्ष ) हिन्दी दिवस के अवसर पर १४ सितंबर, २०११ के दिहल अपना बयान में साफ कहलें कि ' आप इसे ( हिन्दी को ) मातृभाषा कहिए तो कुछ लोग विरोध करेंगे कि मातृभाषा तो कुछ और है। आप इसे सम्पर्क भाषा कहिए, इसमें कोई दो राय नहीं है कि हिन्दी से अलग, हिन्दी से इतर कोई सम्पर्क भाषा देश में नहीं है।'

एह तरह से आज तक सरकारी अस्तर पर लगातार ई सबसे लमहर झूठ फइलावल आ पढ़ावल जात रहल बा कि ' हिन्दी उत्तर भारत के मातृभासा ह आ सउँसे उत्तर भारत हिन्दी पट्टी ह।' हमार ई अटल मत बा कि सउँसे देस के समर्थ सम्पर्क भासा होखे के नाते सउँसे हिन्दुस्तान हिन्दी-पट्टी ह आ उत्तर, दक्खिन, पूरब, पच्छिम आ मध्य भारत के हर भासा हिन्दी ह। हिन्दुस्तानी भासा ह। जबकि उनइसवीं सदी में जवना खड़ी बोली के गढ़ के हिन्दी नाम दिआइल, ओकर आयु दू-सवा दू सौ बरिस से अधिक के नइखे। दू- सवा दू सौ बरिस पहिले उत्तर भारत के साहित्यिक भासा ब्रजभासा, अवधी, भोजपुरी , मैथिली आदि रहे जवना के भाखा, भासा, पूर्बी बोली, तिरहुता, अवहट्ट आदि नाम से सम्बोधित कइल जात रहे। ओहू से पहिले भोजपुरी आ अवधी के समन्वित भासा कोसली लगभग पन्द्रह सौ साल तक भोजपुरी-अवधी क्षेत्र के सम्पर्क, संबाद आ राजकाज के भासा रहे। कोसल राज के बिस्तार आ प्रसिद्ध के चलते भोजपुरी कोसली कहाए लागल रहे। महात्मा बुद्ध के पहिले आ उनका बाद ले कोसली के चलन रहे जवना के ' पूर्बी बोली ' भी बिद्वान कहले बा आ ऊ लोग पूर्बी क्षेत्र के रेखांकित भी कइले बा। डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी के अनुसार बुद्ध एही कोसली आ पूर्बी बोली में आपन उपदेस कइलें जवना के बाद में पालि भासा में अनुवाद कइल गइल। एकरा पहिले भोजपुरी के नाम ' भोजी ' आ ' कारुसी ' भी रहे। तब एह भासा के नाम भोजी आ कारुसी बैदिक आ पौरानिक भोज लोग के क्षेत्र नाम भोजकट आ मनु के पुत्र करुस के नाम पर करुस आ अस्थली प्रदेस नाम का चलते प्रसिद्ध भइल रहे। अइसे एह भोजी, कारुसी, कोसली आ भोजपुरी भासा के बहुतायत भासिक प्रकृति-प्रवृति आ सब्द के दरसन बैदिक वाङ्मय में अनायासे मिल जाला। जवना से ई साबित होला कि ई भोजपुरी भासा बैदिक काल से श्रुति आ अस्मृति परम्परा के जरिए एगो छिनकाय प्राकृतिक नदी के रूप में आज तक बहत-रहत आइल बा जवन लोक बेवहार के बोली-भासा त रहे बाकिर एकरा कवनो काल में राजाश्रय के लाभ नइखे मिलल।

' भोजपुरी ' सब्द के भासा के अर्थ में प्रयोग के परम्परा भलहीं बैदिक काल, उत्तर बैदिक काल भा बुद्ध काल में ना होखे। ई भासा भलहीं बैदिक काल के गण भासा भा जनभासा , उत्तर बैदिक काल के भोजी, पाणिनि-पतंजलि काल के कारूसी, बुद्ध काल के कोसली आ ऐतिहासिक भोज काल के भोजपुरी भासा कहात होखे। बाकिर एकर भासाई अस्मिता हर काल में रहल बा। अइसन थोड़े कहल जा सकेला कि जब गैलेलीयो का धरती के गुरुत्वाकर्सन सक्ति के भान-ग्यान भइल तबहीं से धरती में ऊ सक्ति आ गइल। धरती में ऊ सक्ति त पहिलहीं से रहे। ओकर ग्यान गैलेलीयो का बाद में भइल। ओइसहीं भोजपुरी भासा बहुत पहिले से रहे ओकर नाम बुद्ध काल के बाद रखाइल। जदि अइसन ना रहित त एकर भासिक रूप बैदिक भासा आ ओकरा बाद के भासा सब में कइसे भेंटाइत। बैदिक भासा के ध्वनियन का रागात्मक तत्व, सुराघात मतलब ध्वनि राग, बलाघात, स्वरांतता, लयात्मकता आदि भोजपुरी में कइसे मिल पाइत।

भोजपुरी के एगो वाक्य देखीं- ऊ जानऽता। एह जानऽता का न पर बलाघात हो जाए से एकर अर्थ खड़ी बोली हिन्दी वाला हो जाता - जानता है। ओइसहीं आवऽता ( आता है ), नहवावऽता ( नहलवाता है ) आदि। खड़ी बोली हिन्दी के सहायक क्रिया के काम भोजपुरी में बलाघात से हो जाला। ऋग्वेद के एगो उदाहरन देखीं - ' जानऽता सङ्गमें महि। ' गीता में देखीं - अजानऽता महिमानं।' भोजपुरी में देखीं - ईमान जनि बोड़ऽ, खेत खूब कोड़ऽ, आपन पंच बदऽ, तूं इनकर देनदारी गछऽ आदि में स्वरांत आ स्वराघात। अब बैदिक आ उत्तर बैदिक भासा में स्वरांत आ स्वराघात के प्रयोग देखीं - सत्यं वदऽ, धर्मं चरऽ, मातृदेवो भवऽ, पितृ देवो भवऽ, आचार्य देवो भवऽ आदि। मतलब एह सब पर बल भा जोर देवे के बा।

ऋग्वेद के भासा रूप आ भोजपुरी के भासा रूप के समानता देखीं - सायं करत (ऋग्वेद) - संंझा करत ( भोजपुरी ), करदारे ( ऋग्वेद ) - कर तारे ( भोजपुरी में संधि बिच्छेद के बाद द के उचारन त), ईहे ह मनसा ( ऋग्वेद ) - ईहे ह मनसा ( भोजपुरी), ह भोजा (ऋग्वेद) - ह भोज ( भोजपुरी ), सविता करत ( अथर्ववेद ) - करत ( भोजपुरी क्रिया ) आदि। अइसहीं केनोपनिषद के एगो मंतर देखीं- 'यज्ञचो ह वाच स उ प्राणस्य प्राण:' में ह, स आ उ भोजपुरी के भी प्रयोग बा चाहे ह के अर्थ में होला। एगो आउर अस्लोक ' सा नो में खले मतिन आ धेहि ' के आ भोजपुरी के और अर्थ में बा। बैदिक भासा के सब्द अक्सरहां ओही अर्थ में चाहे कुछ अर्थ बिस्तार, अर्थ संकोच आ अर्थ परिवर्तन का सङे भोजपुरी में आजुओ प्रचलित बा; जइसे - जन, जनि, इह, इहर, एहर, मूस (मूष), चरु (चरु चाहे घट), चरुई (चरुई चाहे हाँड़ी), तितऊ ( तीत ), करीष ( करसी ), परुत ( परु साल ), लघु ( लहुरा देवर मतलब छोट देवर ) द्विवर ( देवर ), दुलम्ह

मतलब आसानी से प्राप्त ना होखे वाला दुलहावर भा दुल्हा। पतुखी मतलब पत्ता के बनल दोना यानि पात्र,जवना से भोजपुरी में सब्द बनल पतुकी ( माटी के बनल छोट हाँड़ी ), वृक्ष से बनल रूख ( पेड़ ) आ रूख से बनल रूखी ( रूख पर चढ़े वाली गिलहरी), रूख से बनल रूखर, निम्न से नीमन ( अर्थ परिवर्तन होके अधम से उत्तम ), कुकुर, निस्तार, निहसि, वानर के बानर, महिष के भइंस, धावऽ ( दउड़ऽ), पाजी ( बलवान बाकिर मंदबुद्धि), कुइला ( कु के इला मतलब जल के देबी), इन्द्रागार मतलब इन्द्र ( जल ) के आगार (भंडार) इनार, गगर्रिका ( गगरी ) आदि जइसन अनगिनत सब्द बाड़ें स।( आउर उदाहरन खातिर पढ़ीं हमार पुस्तक - भारतीय आर्यभाषा आ भोजपुरी )

अइसहीं कोसली, पालि आ अवधी के प्रधान ध्वनि-प्रकृति न, र आ स भोजपुरी में मिलेला जवना के बिपरीत उचारन भोजपुरी का पूरब आ पच्छिम का भासा सब ण, ल आ श भा ष हो जाला। जइसे ऋग्वेद के य यजुर्वेद में ज आ ऋग्वेद के ष यजुर्वेद में ख के रूप में उचरेला ओइसहीं भोजपुरी में यज्ञ के जग्य, युगल कू जुगल, यजमान के जजमान आदि आ वर्षा के बरखा, हर्ष के हरख, धनुष के धनुख आदि उचारल जाला। ऋग्वेद में जइसे ङ के प्रयोग बा- प्रत्यङ, कीदृङ आदि ओइसहीं भोजपुरी में अङ, ढ़ङ सङ, तङ आदि के उचारन होला।बाकिर खड़ी बोली हिन्दी के प्रभाव में लिखाला- अंग, ढ़ंग, संग, तंग आदि। अइसन अनेक भासाई उदाहरन भोजपुरी भासा का अस्तित्व के बहुत पहिले से होखे के सबूत देवेला। जवना में केहू भोजपुरी भासा में आपन मातृभासाई अस्मिता के खोज कर सकेला। भोजपुरी में अइसन असंख भासिक प्रकृति-प्रवृति के उदाहरन बाड़ें स जवन एकरा के मागधी, अर्द्ध मागधी, शौरसेनी, कौरवी, आ खड़ी बोली हिन्दी से पुरान आ अलग स्वतंत्र अस्तित्व के भासा साबित करेलन स।

अब भोजपुरी के कुछ खास खूबियन के जानल जाव जवन एकरा के खड़ी बोली हिन्दी से अलग आ स्वतंत्र भासा के रूप में परिचय कराई। भोजपुरी के आपन पुरान सब्द हवें स - पद, गद, उलेख, उदेस, उचारन, पधति, बुधि आदि आ खड़ी बोली हिन्दी में एकर कौरवी-बांगरू के संयुक्ताक्षर वाला रूप हो जाला- पद्य, गद्य, उल्लेख, उद्देश्य, उच्चारण, पद्धति, बुद्धि आदि।

आईं कुछ ध्वनि-प्रकृति आ भाव-प्रकृति का भेद के आधार पर पूरबी भासा-भोजपुरी के खड़ी बोली-हिन्दी सहित कुछ आउर मागधी आ कौरवी-बांगरू, हरियानवी- पंजाबी, राजस्थानी भासा सबसे इतर आ स्वतंत्र अस्तित्व के पहचान कइल जाव -

* भोजपुरी ' ग, ङ, ज, ञ, न, ब, र, स, ख आदि ध्वनि उचार प्रधान भासा ह। बाकिर एकरा से ई अभिप्राय ना निकाले के चाहीं कि एकरा में आउर ध्वनियन के उचारने ना होखे। होला, बाकिर मागधी से निकसल भासा नियन, आ खड़ी बोली-हिन्दी, पंजाबी, राजस्थानी आदि नियन ण, श आ ष के उचारन ना होखे। कुछ ध्वनि उचार के उदाहरन - साग, लोग, अङ्, ढ़ङ्, भङ्, अङ्ना, कङ्गना, जुगल, जजमान, जातरा, संजुक्त, चाञ्, काञ्, भुइञा, टुइञा, गनेस, आदरनीय, प्रनाम, बेग, बार,ब्रत, परब, जबाब, पीपर, हर, फर, पिपिरी, महेस, दिनेस, खत्रिय, खेत, आखर आदि (भोजपुरी) आ शाक, लोक, अंग, ढंग, भंग, अंगना, कंगना, युगल, यजमान, यात्रा, संयुक्त, चांय, कांय, भुइयां, टुइयां, गणेश, आदरणीय, प्रणाम, वेग, वार, व्रत, जवाब पीपल, हल, फल, पिपिलिका, महेश, दिनेश, क्षत्रिय, क्षेत्र, अक्षर आदि (खड़ी बोली-हिन्दी आदि भासा)।

* खड़ी बोली-हिन्दी, पंजाबी, राजस्थानी आदि के ष, क्ष आ ज्ञ के भोजपुरी में ख, स चाहे ह, ख चाहे क्छ आ ग्यँ के ध्वनि उचार हो जाला; उदाहरन- वर्षा- बरखा चाहे बरसा, हर्ष- हरख, लषण- लखन, पाषाण- पाहन, झष- झख (झख मारल, झाँखी) अक्षर- अक्छर चाहे आखर, क्षेत्र- खेत, भिक्षा- भीख, शिक्षा- सिक्छा चाहे सीख, अक्षि- आँख, ज्ञान- ग्याँन आदि।

अब सवाल उठ सकऽता कि दू तरह के बर्तनी; जइसे- बरसा आ बरखा, पुष्कर-पोखर, अक्छर आ आखर, सिक्छा आ सीख आदि में कवन सही मानल जाई त दूनो सही मानल जाई आ भोजपुरी ध्वनि उचारन पधति से इतर खड़ी बोली-हिन्दी के प्रभाव में वर्षा, अक्षर, शिक्षा आदि लिखाई उहो सही मानल जाई। अइसने एके अर्थ खातिर अनेक बर्तनी बेवहार के उदाहरन संस्कृतो में मिलेला; जइसे - पृथ्वी आ पृथिवी, नारिकेल आ नारिकेर, अवनि आ अवनी, वाग्हरि: आ वाग्घरि: आदि।

* भोजपुरी में जुड़वा ( संजुक्त ) ब्यंजन वाला सब्द के उचारन में पहिले स्वर उचर जाला; जइसे - स्कूल के इस्कूल, ग्यारह के एगारह, स्टेशन के इस्टेसन आदि। अइसन खड़ी बोली हिन्दी में ना होखे आ जदि होता त समझीं जे भोजपुरी के प्रभाव बा। अंगरेजी में त कुछ वर्ड (सब्द) का आगे कि लेटर (अक्छर) गूङ् हो जाला; जइसे- Knowledge के K आ D - नालेज, Write के W - राइट, Weight के W - राइट, Psychology के P - साइकोलॉजी आदि।

* भोजपुरी में अनुस्वार के जगह पर अनुनासिक के बर्चस्व बा। जवन खड़ी बोली हिन्दी में ना पावल जाए। आ जदि पावल जाता त बूझीं जे ओकरा पर भोजपुरी के ध्वनि उचारन पधति हाबी बा; जइसे -

पंक्ति के पाँति, अंत्र के आँत, यंत्र के जाँत, वंश के बाँस आदि।

* भोजपुरी में बिसर्ग के बिधान नइखे।

* भोजपुरी में खड़ी बोली हिन्दी के ण के अनुनासिक उचारन होला; जइसे - दण्ड के डाँड़, बण्ड के बाँड़, खण्ड के खाँड़, चण्ड के चाँड़ आदि।

* भोजपुरी में खड़ी बोली हिन्दी के ध आ य के जुड़वा प्रयोग के उचारन झ हो जाला; जइसे - संध्या के साँझ, बंध्या के बाँझ, मध्य के माँझ आदि।

* भोजपुरी ह ध्वनि प्रधान भासा ह; जइसे - मुख- मुँह, दधि- दही, आखेट - अहेर, बधिर - बहिर, गम्भीर- गँहिर, साधु- साहू, दुर्लभ- दुल्ह, सौभाग्य- सोहाग, मस्जिद - महजिद, आभीर- अहीर, पीघर (पिया के घर)- पीहर, माइघर(माई के घर)- मइहर/नइहर, रास्ता- राह/राहता, इधर- इहर/एहर, उधर- ओहर, पुष्प-पुहुप, केसरी-केहरी, कृष्ण-कान्हा आदि। एही ह ध्वनि- प्रेम के चलते बैदिक भोज के बंसज सिन्धु के हिन्दू, सिन्ध के हिन्द, सिन्धुस्थान के हिन्दुस्थान आ सिन्धी के हिन्दी बोलल होइहें। जवना से हिन्दू, हिन्द, हिन्दुस्थान आ हिन्दी सब्द अस्तित्व में आइल होई।

* कबो कबो तत्सम सब्द के म ध्वनि भोजपुरी में व उचर जाला; जइसे- ग्राम के गाँव, कुमार के कुंवारी, श्यामल के साँवर आदि।

* भोजपुरी में अनुनासिक के प्रयोग से अर्थ में बहुत अन्तर आ जाला। जवन खड़ी बोली हिन्दी में ना पावल जाए; जइसे - तागा ( सूता ) आ ताँगा ( एक्का ), बिधना ( बिधाता ) आ बिँधना ( छेदल ), बाध ( रस्सी ) आ बाँध ( नदी के बान्ह ), खाटी ( चारपाई ) आ खाँटी ( खारा, असली ), गाज ( फेन ) आ गाँज ( ढ़ेर ), पूछ ( पूछल ) आ पूँछ ( पोंछ ), गोड़ ( पाँव ) आ गोँड़ ( एगो खास जाति ), भाग ( हिस्सा ) आ भाँग ( एक तरह के पौधा ) आदि।

* भोजपुरी में अनुनासिक पहिला स्वर पर होला; जइसे- अँइठ, आँखि, पाँखि, झाँकी, माँखी, गाँव, ठाँव, साँवर आदि।

* भोजपुरी में रेफ के र चाहे आकार के मात्रा आ त्र के तर चाहे त ध्वनि-उचार होला; जइसे - गर्म- गरम/घाम, चर्म- चरम/चाम, धर्म - धरम/ धाम, पर्ण- परम/पान, कर्म- करम/ काम, गर्भ- गरभ/गाभ, पत्र- पतर/पात, गात्र - गतर/गात, क्षत्र - छतर/छात/छाता, सूत्र- सूत, मूत्र - मूत, पुत्र - पूत, तंत्र- तंतर, मंत्र- मंतर, यंत्र- जंतर आदि।

* भोजपुरी में अनुस्वार के उचारन आ सुनाई स्वर के बाद में होला चाहे पड़ेला आ अनुनासिक के उचारन आ सुनाई स्वर के बाद होला चाहे पड़ेला; जइसे- अंग में अनुस्वार के उचारन अ के बाद में होता अँगुठी में अनुनासिक के उचारन अ का सङे होता।

* भोजपुरी में ह्रस्व मात्रा के उचारन बिलम्बित आ दीर्घनूमा होला; जइसे- अच्छा-आछा, कतना- काताना, हाताना आदि।

* भोजपुरी में अ के उचारन हलुका गोलाई वाला ( ईषद् बर्तुल ) होला त बंगला में एक दम गोल ओ जइसन आ पच्छिम के भासा में तनिको गोल ना होखे।

* भोजपुरी में कबो कबो आदि ब्यंजन के आबृति होला; जइसे- घोरल- घघोरल ( लगातार घोरल), मोड़ल- ममोड़ल, भोरल- भभोरल, झोड़ल- झझोड़ल, फाइल-फफाइल, धाइल-धधाइल आदि।

* खड़ी बोली हिन्दी के क्रिया-रूप के अंत में आवेवाला ना भोजपुरी में इल, वल चाहे ल में बदल जाला; जइसे- आना-आइल, खाना-खाइल, जाना- गइल, होना- भइल, पढ़ना-पढ़ल, सोना- सूतल, रोना- रोवल आदि।

* प्राचीन भोजपुरी के जो आ सो के बदले आज के भोजपुरी में जे आ से अउर ओकरा सङे ह लगावे के प्रबृत्ति बढ़ल बा; जइसे - जेह चाहे जेहि आ सेह चाहे सेहि।

* भोजपुरी में जुड़वा ब्यंजन र् ह, ल्ह, म्ह आ न्ह के उचारन पावल जाला।

* भोजपुरी के खड़ी बोली हिन्दी के "

' नहीं है ' के बदले एगो खास क्रिया-रूप बा - नइखे । जवना में सहायक क्रिया लगावे के जरूरते ना पड़े।

* भोजपुरी में खड़ी बोली हिन्दी के भी आ ही खातिर नाम चाहे सर्बनाम में ओ (अपि) अउर ए (इव) प्रत्यय लागेला; जइसे - राम भी जायेगा- रामो जइहें, राम ही जायेगा - रामे जइहें आदि।

* खड़ी बोली हिन्दी के कर्ता में ने परसर्ग आ सर्बनाम में ने बिभक्ति लागेला; जइसे- राम ने, उसने आदि। बाकिर भोजपुरी कर्ता में ने परसर्ग ना लागे। राम ने कहा- राम कहलें। हिन्दी के कर्म कारक में को परसर्ग लागेला त पूरब का भोजपुरी का नाम कर्म में के आ पुनरूक्ति के हालत में पहिले वाला कर्म में का फेर बाद वाला का सङे के के प्रयोग होला। उँहवे पच्छिम का भोजपुरी में के, क आ कबो कबो का अउर की परसर्ग लागेला। भोजपुरी के करन कारक में से, सम्प्रदाय में ला, ले, लागी, वास्ते, नवरती, खातिर, बदे आदि, अपादान में से, सम्बन्ध कारक में के, का, क, की ( पच्छिम के भोजपुरी में शौरसेनी के प्रभाव से), अधिकरन कारक में में, पर, प परसर्ग लागेला।

* भोजपुरी के एगो खास आदरार्थक सम्बन्ध सूचक सब्द बा- राउर। अइसने सब्द खड़ी बोली हिन्दी का पाले नइखे।

* भोजपुरी नाम भा क्रिया-रूपन में लिंग के अलगाव खड़ी बोली हिन्दी के प्रभाव में आइल बा।( भोजपुरी भाषा और साहित्य- डॉ. उदय नारायण तिवारी, पन्ना- १८५ ) । ना त पोथी जर गइल आ घर जर गइल, बड़ घोड़ा आ बड़ घोड़ी, बड़ बेटा, बड़ बेटी आदि।

* भोजपुरी कर्तृवाच्य प्रधान भासा ह।( भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिन्दी- डॉ. राम विलास शर्मा, पन्ना- १८९ )। जवना भासा में कृदन्तन के बेवहार अधिका होला, ओकरा में कर्मवाच्य के प्रबृत्तियो अधिका पावल जाला; उदाहरन- हमरा घर से ओकर घर देखल जाला आ दूध में भेँई के रोटी खाइल जाला में कर्म के अनुसार कृदन्त के रूप नइखे बदलत, पुलिंग घर आ इस्त्रीलिंग रोटी खातिर एके कृदन्त देखल जाला आ खाइल जाला प्रयुक्त बा। खड़ी बोली हिन्दी जइसन देखा जाता है आ खाई जाती है ना होई।

* डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सिंह अक्सर भोजपुरी आ खड़ी बोली हिन्दी के अन्तर बतावत रंग खातिर प्रयुक्त सब्दन के उदाहरन देलन कि हिन्दी में प्रायः जहाँ रंग खातिर काला, पीला, नीला, उजला, मटमैला आदि सब्द के अंत में ला ला अक्छर लागेला त संस्कृत में पीत, श्वेत शौणित, हरित आदि सब्दन में त त जुड़ेला उँहवे भोजपुरी में हरियर, पीयर, उजर, भूअर, गोर, साँवर, झाँवर आदि में र र जुड़ेला।

अइसहीं असंख उदाहरन बा ध्वनि-प्रकृति आ भाव-प्रकृति के, जवना के आधार लेके डॉ. ग्रियर्सन, डॉ. उदय नारायण तिवारी, डॉ. विश्वनाथ प्रसाद, आचार्य किशोरी दास वाजपेई आदि बिद्वान भोजपुरी के खड़ी बोली हिन्दी से बहुते पुरान, जीवन्त आ स्वतंत्र भासा साबित कइले बारन। आचार्य किशोरी दास वाजपेई साफ साफ कहले बारन कि हिन्दी के बिद्वान जे भोजपुरी के ओकर बोली कहेलन उनका के भोजपुरी के पाँच गो वाक्य दे तानी। ऊ ओकर हिन्दी में अर्थ बता देस त हम मानीं। जेकर मातृभासा भोजपुरी ना होई ऊ ना बता पाई। भोजपुरी हिन्दी आ संस्कृत के दासी, चेरी भा मुँहदेखू भासा ना ह। एह से एकरा पर हिन्दी भासा के बेयाकरन ना लादे के चाहीं। ' अवधी , राजस्थानी, कुर्माञ्चली आदि भासा सबके आपन आपन स्वतंत्र नियम आ बिधि-बिधान बा। जदि ई लोग एह स्वतंत्र भासा सबके हिन्दी के बोलिए कहे, त फेर बंगला, मराठी, गुजरातियो आदि के हिन्दी के बोली कहे के पड़ी।' ( हिन्दी शब्दानुशासन, पन्ना- १०)।

आचार्य किशोरी दास वाजपेई अपना हिन्दी शब्दानुशासन में साफ साफ लिखले बारन कि भोजपुरी संस्कृत आ हिन्दी जइसन कृदन्त ना, तिङन्त प्रधान भासा ह। उदीच्य पधति कृदन्त पधति ह आ मध्यदेसीय पधति तिङन्त पधति ह। गद सब्द पुरान ह कि गद्य, पद सब्द पुरान ह कि पद्य। य प्रेम बाद के पसंद ह। ई मेरठी खड़ी बोली के प्रभाव ह। ' अवधी में आवा भूतकाल के क्रिया ह आ भोजपुरी ( कासिका ) में आवा आग्या आ आमंत्रन ह। तनी आवा - जरा आइए।( हिन्दी शब्दानुशासन, पन्ना-१० )। बहुत पहिले भोजपुरी में साहित्त के कमी के चलते जे कुछ लोग एकरा के भासा माने से इंकार करत रहे, ओह लोग पर तंज कसत लिखले रहस कि ' जवना थरिआ (छीपा) में रोज भोजन के रोटी-दाल रखल गइल आ खीर ना परोसल गइल, त का ओकरा के थरिआ (छीपा) ना कहाई? कवनो भासा में साहित्त नइखे बनत त का ऊ भसे ना ह?' अब त अध्ययन आ अनुसंधान के जरिए छठी-सातवीं सदी के इसानचन्द, बेनीभारत भा बेनी कबी से लेके आधुनिक कबी-साहित्तकारन का साहित्त-साधना से भोजपुरी बहुते धनिक भासा के रूप में आपन अन्तर्राष्ट्रीय भासा के रूप में पहचान बढ़ा रहल बा। दुनिया का हर भासा के आँखि में आँखि डाल के पंजा लड़ा रहल बा। ई मैस्कुलिन लैंग्वेज हर इस्त्रीलिंग भसन के पछाड़े के कुबत राखऽता। डॉ. भोलानाथ तिवारी के अनुसार ' भोजपुरी के पूरबी कहल जाला। भोजपुरी खातिर नागरी, कैथी आ बही खाता ला महाजनी लिपि में प्रयोग होत रहे।( हिन्दी भाषा का इतिहास, पन्ना- १०२-१०३)। डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी के अनुसार, महात्मा बुद्ध से लेके सम्राट अशोक के काल के बाद ले पूरबी भासा के बेवहार होत रहे। एही पूरबी, कोसली, कारुसी आदि मध्यदेसीय भासा के बर्तमान नाम भोजपुरी बा। जवन भासा-बैग्यानिक अध्ययन, बैयाकरनिक संरचना, सब्दकोस, लिपि, साहित्त लिखे आ छपवावे आदि के दिसाईं भारते ना दुनिया के कवनो देस का भासा-साहित्त से पीछे नइखे। जवना में से कुछ उलेख आगे उदाहरन खातिर कइल जाई।
सम्प्रति:
डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'
प्रताप भवन, महाराणा प्रताप नगर,
मार्ग सं- 1(सी), भिखनपुरा,
मुजफ्फरपुर (बिहार)
पिन कोड - 842001

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