भासा के बैग्याँनिक अध्ययन के क्षेत्र में भारत के अवदान - डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'
भासा के बैग्याँनिक अध्ययन के दिसाईं दुनिया के तमाम देस सदियन से भारत के रिनि रहल बा। बाकिर पच्छिमी सिक्छा-बेवस्था में ढ़लल भारतीय भासाविद् जन ठीक एकरा उलट बिचार राखेलें। काहे कि भारत में उनइसवीं सदी का दूसरके दसक से पच्छिमी सिक्छा-पधति के जरिए ई पढ़ावल, बतावल आ जतावल जात रहल बा कि भासा-बिग्याँन पच्छिम के देन ह। फ्रांस के बिद्वान पादरी कोर्दो अपना भासा, संस्कृति, रिलिजन आ साहित्त के सबसे पुरान आ पोख्ता साबित करे का उदेस से भारत के संस्कृत भासा के हिकाह ताकत ओकरा अउर अपना ग्रीक, लैटिन आ फ्रेंच भासा के बीच तुलनात्मक अध्ययन कइलें। अइसे ओह फ्रांसीसी पादरी कोर्दो का भासा के ओही बैग्याँनिक तुलनात्मक अध्ययन में एह तथ्य के भान हो गइल कि भारत भासा, संस्कृति, साहित्त के सिरजने ना, अध्ययनों के दिखाईं यूरोप से बहुत आगे बा। एकरा बावजूद भारत पर पच्छिम का भासाविद् लोग का जरिए ई छाप छोड़ल गइल कि कोर्दो का भासा सम्बन्धी ओही तुलनात्मक बैग्याँनिक अध्ययन से भासा-बिग्याँन रूपी बिसय के जनम मानेला।
कोर्दो के बाद भासा-बिग्याँन के क्षेत्र में काम करे वाला यूरोपीय बिद्वान लोग में हालहेड, विलियम जोन्स, फ्रेडरिक श्लेगल, लासन, रोजन, बुर्नूफ, मैक्समूलर जान बीम्स आदि के नाम बड़ी सरधा से लिहल जाला। एह भासा-बैग्याँनिक लोग के नाम सरधा से लेवे से केहू भारतीय का कवनो सिकायत नइखे। बाकिर एह सब यूरोपीय बिद्वान का बहुत पहिले भारतीय आचार्य लोग द्वारा भासा के बैग्याँनिक अध्ययन-अनुसंधान के नजरअंदाज कइल चाहे उड़ंतू चर्चा भर कइल घोर आपत्तिजनक जरूर बा। डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी त जान बीम्स के भासा-बिग्याँन के संस्थापके मान लेले बारन।
आजुओ कुछ अंगरेजी आ हिन्दी के हिमायती भारतीय बिद्वान लोग का मुँहें सुनिले कि भासा-बिग्याँन के क्षेत्र में पच्छिम के एतना ना अतुलनीय काम बा कि भारत ओकरा पसङ्गोँ में नइखे। एही वजह से हम भासा, भासा-बिग्याँन आ भासा-बिग्याँन के क्षेत्र में भारतीय आचार्य लोग का अध्ययन-अनुसंधान पर क्रमवार आपन बिचार राखे का पहिले भारत के भासा-बैग्याँनिक अध्ययन-अनुसंधान कार्य के बिसय में पच्छिम का कुछ नामी- गिरामी भासा-बैग्याँनिक लोग के बिचार राख देवे के चाहत बानी।
यूरोपीय भासा-बैग्याँनिक जेस्पर्सन ' लैंग्वेज ' चैप्टर-१ का पन्ना- २० पर साफ साफ लिखले बारन कि 'भारत के बैयाकरने लोग ( आचार्ये लोग ) भासा बैग्याँनिक निरीक्छन आ बर्गीकरन में सबसे पहिल अधिकारी ब्यक्ति बा, ग्रीक के बिद्वान त एकरा तुलना में नामेमात्र के रहलें।'
Science presupposes careful observation and systematic classification of facts and of that in the old Greek Writers on language we find very littile. The earliest masters in Linguistic observations and classification were the old Indian Grammarians.'
डब्ल्यू एस एलेन त ' फोनेटिक्स इन एंसियेंट इंडिया ' में जेस्पर्सन से कई डेग आगे बढ़के भारतीय भासा-बैग्याँनिक अध्ययन-अनुसंधान कार्य आ भारतीय बैयाकरन पाणिनि आदि का काम के लैटिन बैयाकरन आ भासा अध्ययन का पच्छिमी परम्परा के तुच्छ बतावत लिखले बारन कि
' There are existence over a thousand different Sanskrit grammars, all inspired directly or indirectly by Panini's model. Besides such a concourse the thousand manuscripts of prisciaon's Latin grammar, the pride of our western tradition, are but a drop in the grammatical ocean. According to Burnell there were no less than sixty eight of these Pre-paninian grammars.'
एलेन त जोर देके कहलें कि पाणिनि के बेयाकरन एगो भासा-बैग्याँनिक के बेयाकरन बा। बैग्याँनिक बैयाकरन भी भासा सम्बन्धी तथ्यन के प्रति बहुत हद तक उहे नजरिया राखेला, जवन प्राकृतिक बैग्याँनिक प्रकृति का तथ्यन के प्रति राखेला। ( His work is a linguist's and not a language teacher's grammar.) । ऊ इहाँ ले कहले बारन कि ' संस्कृते का ध्वनि-बिग्याँन से पच्छिमी भासा-बैग्याँनिक अपना इहाँ ध्वनि-बिग्याँन के बहुतायत पारिभासिक सब्द आ बिभाग के निर्धारन लेले बारन।'( Our phonetic categories and terminology owe more than is perhaps generally realized to the influence of Sanskrit Phonetician.'--- ( Phonetics in Ancient India, Page-3)। ब्लूमफील्ड आ विलियम जोन्स भी एह तथ्यन के चीज के बहुते आदर का सङ्गे स्वीकार कइले बारन। एह तथ्यन के आउर बारीकी आ बिस्तार से जाने खातिर बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् पटना से छपल डॉ. रामदेव त्रिपाठी के ग्रंथ ' भाषाविज्ञान की भारतीय परम्परा और पाणिनि ' के अध्ययन कइल जा सकेला।
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