खड़ी बोली - हिन्दी के ब्युत्पत्ति आ भासा के अर्थ में प्रयोग के परम्परा - डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'



' भासा के अर्थ में ' खड़ी बोली - हिन्दी ' के उमिर तीन-चार साल में सवा दू सौ बरिस के हो जाई। बाकिर हिन्दी भासा आ साहित्य के इतिहास लिखेवाला बिद्वान लोग सातवीं-आठवीं सदी का बौद्ध पंथी बज्रयानी सम्प्रदाय के सिद्ध आचार्य लोग का साहित्य के गिनती भी हिन्दी साहित्य का कूंड़ी में कर लेवेला। एह से कि ओह काल में खड़ी बोली हिन्दी के जनमे ना भइल रहे । एह से बंगाल के पच्छिम से लेके राजस्थान तक का तमाम भारतीय भासा का साहित्य के हिन्द के भासा हिन्दी आ ओकर साहित्य बताके बिदेसी साहित्य-संस्कृति वाला लोग से खुद के पुरान आ समृद्ध बतावे-जनावे के रहे। जवना पर ब्यंग्य करत आचार्य किशोरी दास वाजपेई अपना ग्रंथ ' हिन्दी शब्दानुशासन ' में लिखलें कि ' अवधी, राजस्थानी, कुर्मांचली आदि भासा सब के आपन आपन स्वतंत्र नियम आ बिधि-बिधान बा। जदि ये स्वतंत्र भासा सबके हिन्दी के बोलिए कहल जाए त फेर बंगला, मराठी, गुजरातियो आदि के हिन्दी के बोली कहे के होई। (पन्ना- १०)। ' हिन्दी साहित्य का इतिहास ' में आचार्य रामचंद्र शुक्ल खुद लिखले बारन कि ' खड़ी बोली पद्य के झंडा लेके स्व. बाबू अयोध्या प्रसाद खत्री चारो ओर घूम-घूम के कहत रहलें कि अबहीं हिन्दी में कविता भइल कहाँ? सूर, तुलसी, बिहारी आदि जवना में कविता कइले बारन, ऊ त भाखा ह हिन्दी ना। (पन्ना - ४१७)

उनइसवीं सदी का पहिले ' हिन्दी ' सब्द के प्रयोग हिन्द के मुसलमान, तलवार, मलमल चाहे हिन्द में बोलल जाए वाली कुल्ह भासा खातिर कइल जात रहे। छठी सदी का कुछ पहिले ईरान में संस्कृत भासा खातिर भी 'जबान-ए- हिन्दी' सब्द के प्रयोग होत रहे। अरबी-फारसी में एगो खास तरह के तलवार खातिर हिन्दी सब्द के प्रयोग भइल बा त फारसी में हिन्दी के अर्थ डाकू भी होला आ मिश्र में हिन्दी सब्द के प्रयोग 'मलमल ' खातिर भी कइल जाला।

भासा के अर्थ में 'खड़ी बोली' के जातकर्म आ खड़ी बोली के हिन्दी के रूप में भइल नामकरन संस्कार पर बिचार करे का पहिले एह भासा सबसे पुरान भासा 'हिन्दुस्तानी' के बिसय में जान-समुझ लिहल जरूरी बा। अइसे त हिन्द के मुसलमान लोग खातिर ' हिन्दी ' सब्द के प्रयोग बहुत पहिले से होत रहे। हिन्द का मुसलमान लोग के भासा खातिर 'जबान-ए-हिन्दी' सब्द के बेवहार के उल्लेख भी मिलेला। जवना के पुरान नाम हिन्दुई, हिन्दवी, हिन्दुस्तानी आदि बतावल जाला। अमीर खुसरो से लेके उनइसवीं सदी के इंशाअल्लाह खाँ तक हिन्दुई आ हिन्दवी सब्द के प्रयोग भासा खातिर करत बाड़ें। बाकिर जहाँ तक भासा के अर्थ में हिन्दुस्तानी सब्द का प्रयोग के बात बा त डॉ. भोलानाथ तिवारी यूरोपीय प्रवासियन का उल्लेख के हवाले से बतवले बारन कि ' हिन्दुस्तानी ( इन्दोस्तानी) सब्द के भासा के अर्थ में प्रयोग कम से कम सतरहवीं सदी का आरंभ में सुरू भइल।------- जे. जे. केटेलेयर (J. J. Ketelaer ) सन् १७१५ ई. में डच भासा में हिन्दुस्तानी भासा के सबसे पहिले यूरोपीय बेयाकरन लिखलें, जवना के लैटिन में अनुबाद हालैंड में लायडेन (Leyden) कइलें। लायडेन के अनुबाद सन् १७४३ ई. में छपल रहे। (हिन्दी भाषा का इतिहास , पन्ना - १७१)। मूल भारतीय सब्द हिन्दुस्थानी के फारसी उचारन वाला हिन्दुस्तानी सब्द के ब्युत्पत्ति आ ओकरा अर्थ पर बिचार करे से

बिसयांतर होखे के खतरा जादा बा। एह से अबहीं इहँवा फिलहाल एकरा भासा रूप आ बेयाकरन पर भइल कुछ काम के चर्चा कइल जरूरी बा। एकरा में दू मत नइखे कि हिन्दुस्तानी भासा में भारत का देसी भासा का तुलना में अरबी-फारसी का सब्द के अधिक प्रयोग होत रहे; जइसे - ' अयोध्या के बादसाह दसरथ की तीन-तीन बीबीयां थीं। मझली बेगम बहुत खूबसूरत और इल्म वाली थी। उनके बड़े सहजादे का नाम राम था। आदि-आदि।'

डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी साफ-साफ लिखले बारन कि ' हिन्दुस्थानी का फारसी रूप ह हिन्दुस्तानी। उर्दू हिन्दुस्तानी के अरबी-फारसी लिपि में लिखल रूप ह। फारसी खुद चार गो नया वर्ण बढ़ाके बनावल गइल अरबी लिपि ही ह। हिन्दुस्थानी के एह उर्दू रूप के सतरहवी सदी ई. के पहिले कवनो अस्तित्व ना रहे।( भारतीय आर्य भाषा और हिन्दी ; पन्ना-१७२)। डच बेवसाई जे. जे. केटेलेयर के बाद जान बार्थविक गिलक्रिस्ट के हिन्दुस्तानी भासा, सब्दकोस आ बेयाकरन सम्बन्धी काम बहुते महत्व के मानल जाला। कलकत्ता के फोर्ट विलियम कॉलेज के अस्थापना का पहिले गिलक्रिस्ट कलकत्ता में गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स द्वारा सन् १७८० ई. में अस्थापित मदरसा के नियुक्त होके ओकर देख-रेख करत रहलें। ओही दरम्यान ऊ हिन्दुस्तानी भासा से सम्बन्धित दूगो ग्रंथ सन् १७८७ ई. में ' हिन्दुस्तानी इंग्लिस डिक्सनरी ' आ सन् १७९६ ई. में ' हिन्दुस्तानी ग्रामर ' लिखलें। भारतीय भासा का अध्ययन आ अनुसंधान के प्रति उनकर रूझान देखके १० जुलाई, सन् १८०० ई. के कलकत्ता में अस्थापित फोर्ट विलियम कॉलेज के पहिल अध्यक्ष चार्ल्स आयर उनका भारतीय भासा आ खास करके हिन्दुस्तानी भासा बिभाग के प्रोफेसर, अध्यक्ष आ सुपरवाइजर बनवलें। फेर गिलक्रिस्ट अपना काम में सहयोग खातिर चार भाखा मुंसी - इंसाअल्लाह खां, लल्लू लाल, सदल मिसिर आ सदासुखलाल के नियुक्त कइलें। एही भाखा मुंसी लोग के माध्यम से जे. बी. गिलक्रिस्ट लोक बेवहार आ तत्कालीन साहित्यिक देसी भासा भा भाखा के कमजोर आ प्रभावहीन करे का उदेस से हिन्दुस्तानी भासा से अरबी-फारसी के सब्द निकाल के आ कुछ संस्कृत का तद्भव सब्दन के मिला के खड़ी बोली आ अरबी-फारसी प्रधान भासा उर्दू के रचना करत एही दू भासा के साहित्य रचे के फरमान जारी कइलें।

'खड़ीबोली' सब्द के नामकरन :

' खड़ी बोली ' में प्रयुक्त 'खड़ी' सब्द के मूल रूप ह - ' खरी '। 'खरी' सब्द ' खरा ' सब्द के इस्त्रीबाची रूप ह। 'खरा' के अर्थ होला- निसोख भा सुद्ध। मतलब गिलक्राइस्ट के कहला पर फोर्ट विलियम कॉलेज के भाखामुंसी लोग उत्तर भारत के कथा-पुरान वाचन के भासा आ संत-भक्त कबि लोग का साहित्त के भासा 'भाखा' मतलब पूरबी बोली- भोजपुरी, अवधी, ब्रजी आदि के जगह पर हिन्दुस्तानी मुसलमान लोग के बेवहारिक आ साहित्यिक भासा हिन्दुई, हिन्दवी, हिन्दुस्तानी आदि से अरबी-फारसी का सब्दन के निकाल-बाछके कुरुक्षेत्र- मेरठ, पूरबी दिल्ली आ हरियाना आदि का बीच के बोली कौरवी-बांगरू का संगे कुछ संस्कृत का निसोख-सुद्ध मतलब खरा सब्दन के मिला के खरी बोली के सिरजना में जुटल। एह तरह से एह नवनिर्मित भासा-रूप के दिआइल 'खरी बोली'। मतलब सुद्ध बोली। 'बोली' इस्त्रीबाची सब्द ह। एह से 'बोली' का सङे 'खरा' सब्द के इस्त्रीबाची सब्द लागल 'खरी'। एही से गिलक्राइस्ट अपना ' इंग्लिस हिन्दुस्तानी डिक्सनरी ' में 'खरी बोली' खातिर 'प्योर स्टर्लिंग' सब्द के प्रयोग कइलें आ एह स्टर्लिंग (Sterling) के अर्थ स्टेंडर्ड ( Standard ) आ जेनुइन (Genuine) बतवलें। बाकिर चुकि एह भासा के आधार-भासा खड़ापन मतलब निरसता आ बेलसपन लिहले कौरवी-बांगरू रहे। एह से एकरा खातिर 'खरी बोली' के बदले 'खड़ी बोली' सब्द चल गइल। कुछ बिद्वान के इहो मत बा कि चुकि आउर देसी भाखा भा भासा में साहित्त रचे के परम्परा मंद पड़ गइल। एह से ऊ तमाम देसी भासा जस के तस लोक-बेवहार तक पड़ल रह के 'पड़ी बोली भा भासा' कहाइल आ ई भासा खड़ा होखे चल पड़ल एह से एकरा के 'खड़ी बोली' कहल गइल।

एह तरह से खड़ी बोली दुनिया के सबसे नवीन आ बनावटी भा कृत्रिम अरजल भासा ह। ई परम्परा से लोक-बेवहार आ संस्कार से सिरजाइल भासा ना ह। एक त ई दुनिया के सबसे नवीन भासा ह। एकरा बाद अबहीं तक कवनो भासा के ब्युत्पत्ति नइखे भइल। दोसरे ई कृत्रिम भासा ह जवना के वजह से एकरा में पहिले गद्य रचाइल। ई सबसे पहिले अनुबाद के भासा के रूप में साहित्त जगत के सामने आइल। एकर पहिल लेखक बारन आगरा वाला लल्लू लाल मतलब लाल कबि। ऊ सन्१८०२-३ में भागवत पुरान के दसवाँ अध्याय के कृस्न लीला के एह भासा में अनुबाद कइलें। जवना पोथी के नाम रखलें- प्रेमसागर। जवना के अंगरजी में अनुबाद कइलें डब्लू होलिंग्स सन् १८४८ ई. में। लल्लू लाल खड़ी बोली में सिंहासन बत्तीसी, बैताल पच्चीसी, शंकुतला, माधवानय के अलावे ब्रजभासा ब्याकरन भी लिखलें। सदल मिसिर लल्लू लाल के प्रेमसागर के बाद यजुर्वेद के रिसि नचिकेता, जेकर उलेख कठोपनिषद आ पुरान में मिलेला, के अनुबाद रूप में नासिकेतोपाख्यान ( संबत् १८६०), 'आध्यात्म रामायण' के अनुबाद 'राम चरित' (सन् १८०६) आदि रचना देवनागरी लिपि में कइलें। लल्लू लाल का खड़ी बोली पर ब्रजी के प्रभाव बा त सदल मिसिर का लेखन पर भोजपुरी के। ओइसहीं सदासुखलाल 'श्रीमद्भागवत' के अनुबाद 'सुख सागर' के नाम से कइलें।

राजा लक्ष्मण सिंह (०९ अक्टूबर, १८२६ - १४ जुलाई, १८९६) सन् १८६३ ई. में कालिदास के ' अभिज्ञान शाकुन्तलम् ' के अनुबाद ' शाकुंतल नाटक, सन् १८७७ ई. में ' रघुवंशम् ' के अनुबाद ' रघुवंश ' महाकाब्य आ सन् १८८१ ई. में ' मेघदूतम्' का पूर्वार्ध के पद्यानुबाद आ सन् १८८३ ई. में ओकरा उत्तरार्ध के पद्यानुबाद कइलें। सन् १८६१ ई. में ' प्रजा हितैषी ' पत्र आगरा से निकललें। अइसहीं भारतेंदु हरिश्चंद के गुरु राजा शिवप्रसाद सितारेहिन्द सन् १८४५ ई. खड़ी बोली में ' बनारस अखबार ' निकललें। अरबी-फारसी मिलल हिन्दुस्तानी भासा आ फारसीलिपि के बदले अदालत में 'खड़ी बोली-हिन्दी' आ देवनागरी लिपि के प्रयोग खातिर एगो माँग-पत्र (लिपि सम्बन्धी प्रतिवेदन -  कोर्ट कैरेक्टर इन दी अपर प्रोविंसेज ऑफ इंडिया)  दिहलें। एकरा अनुसार भारतेंदु हरिश्चंद का पहिले खड़ी बोली खातिर हिन्दी सब्द के प्रयोग राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द कइलें आ सन् १८७३ ई. में भारतेंदु हरिश्चंद बड़ी जोर-सोर से खड़ी बोली हिन्दी के प्रचार-प्रसार अभियान के आगे बढ़वलें।

भारतेंदु हरिश्चंद द्वारा खड़ी बोली हिन्दी के प्रचार-प्रसार अभियान के बावजूद ओह समय तक जहाँ खड़ी बोली हिन्दी गद्य-भासा के रूप में प्रयुक्त होत रहे त पद्य आ काब्य के भासा के रूप में ब्रजभासा के बर्चस्व बनल रहे। खुद भारतेंदु हरिश्चंद ब्रजभासा के कविता लिखत रहलें आ उच्च सिक्छा खातिर अंगरेजी के वकालत करत रहलें। खड़ी बोली हिन्दी के पद्य के भासा बनावे खातिर अयोध्या प्रसाद खत्री 'खड़ी बोली आंदोलन ' चलावत रहलें। ऊ सन् १८८७ ई. में ' खड़ी बोली का पद्य ' भाग-०१ आ सन् १८८९ ई. में ' खड़ी बोली का पद्य ' भाग-०२ नाम के पुस्तक लिखलें। सन् १८८८ ई. में ' खड़ी बोली का आंदोलन ' नाम के पुस्तक लिखलें। बाद में ई खड़ी बोली हिन्दी भारतीय स्वाधीनता आंदोलन आ सामाजिक-सांस्कृतिक जागरन का सङे बिचार के भासा बनल। जवना से ई भासा साहित्य के अलावे एह देस के सम्पर्क भासा के रूप में बिकसित होत गइल। बाकिर देस के स्वाधीन होखे के बाद ई खड़ी बोली हिन्दी दिनेदिन देसी भासा सब से आउर दूर होत गइल आ अपना ऊपर कृत्रिमता लाद के जनता के दूर राजकाज के भासा बनत चल गइल। जवना वजह से आम जनता आ राज-बेवस्था का बीच के खालीपन के अंगरेजी भर रहल बा आ आजुओ खड़ी बोली हिन्दी राजकाज, न्यायालय, सचिवालय, बिश्वबिद्यालय आदि खातिर अनुबाद के भासा बनल बा।

' हिन्दी ' सब्द के ब्युत्पत्ति आ भासा के अर्थ में प्रयोग :

‌हिन्दी भासा के बिद्वान लोग के एह ' हिन्दी ' सब्द के ब्युत्पत्ति आ नामकरन से जुड़ल ई सामान्य मत रहल बा कि ' हिन्दी ' के अर्थ ह - ' हिन्द के '। ई मूल रूप से फारसी के सब्द ह, जवना के सुरू में अर्थ रहे - हिन्द में इस्लाम धर्म के माने वाला मुसलमान लोग। बाकिर १९ वीं सदी आवत-आवत ई हिन्दी सब्द कवनो खास भासा के त ना, बल्कि भासा- समूह के वाचक जरूर हो गइल। एह ' हिन्दी ' सब्द के ब्युत्पत्ति आ नामकरन के बिसय में परम्परागत मान्यता ई बा कि ईरान के लोग, पारसी लोग, अवेस्ता वाला लोग आ चाहे फारसी बोले वाला लोग 'स ' के उचारन ' ह ' होत रहे। अवेस्ता में महाप्रान ध्वनि ना होखे।एह से ' ध ' के ' द ' हो गइल। एही से ऊ अवेस्ता भा फारसी बोले वाला पारसी- ईरानी लोग ' सिन्धु ' नदी के उचारन 'हिन्दू' आ ' सिन्ध ' के ' हिन्द ' करत रहे। ओह लोग के उचारन के मुताबिक एगो नदी के वाचक हिन्दू सब्द ओकरा किनारे,पास आ पार रहेवालन के हिन्दू आ ओह अस्थान के हिन्द कहे लागल। बाद में हिन्द सब्द में ईरानी के बिसेसनार्थक प्रत्यय ' ईक ' लगवला से 'हिन्दीक' हो गइल। जवना के अर्थ रहे - ' हिन्द के'। हिन्दियो सब्द के अर्थ उहे रहे - हिन्द के। एही अर्थ में हिन्दी सब्द के प्रयोग मध्यकालीन फारसी आ अरबी भासा में कई जगह भइल बा।

‌ ई ' हिन्दीक ' सब्द ग्रीक भासा में 'इन्दिक' आ 'इन्दिका', लैटिन में 'इन्दिया', अंगरेजी में 'इंडिया' आ चाइनीज में 'इन्दिको' हो गइल। फेर हिन्दीक का ' क ' के लोप भइला से ' हिन्दी ' सब्द बनल बा। बाकिर जदि अवेस्ता, पारसी आ फारसी के लोग 'स' के जगह 'ह' के उचारन करत रहे तो ऊ लोग 'अवेस्ता' के 'अवेह्ता', ' पारसी के पारही, फारसी के ' फारही ' आ संस्कृत के हंह्कृत काहे ना कहलन। खुद अवेस्ता में 'ह' के उचारन कई जगह ' ज ' काहे हो गइल बा- वराह-वराज, असुर-अजुर, नमस्-नमज, हिरण्य- जरन्य आदि। फारसी में 'स' से उचरित सब्द सरकार, सिपाही, सुरमा, सितम, सादगी, साज, सख्त, सखुन, सिफारिस, साया, समान, सागर, साल आदि काहे रहे। फारसी से अरबी में आइल सब्द सफर, सिफर, सतर, सान, सराय साकिन, साहिल आदि में ' स ' के उचारन कइसे होत रहे आ आजुओ कइसे हो रहल बा। एही से डॉ. राम विलास शर्मा ' भाषा और समाज' में लिखलें कि 'एहसे सिन्ध के हिन्द ईरान में बनल आ कि भारत में- एह समस्या पर अँजोर फइलल । '

भारत के पुरान भासा भोजपुरी में सहित तमाम भारतीय भासा सब जइसन हकार प्रेम जगजाहिर बा। कई ध्वनियन के बदले 'ह' के हरसट्ठे उचारन होला ; जइसे - मस्जिद के महजिद, दसाईं के दहाईं, दसला के दहला, निश्चिंत के निहचिंत, पाषाण के पाहन, पुष्प के पुहुप, कृष्न के कन्हइया, केशरी के केहरी, वधु के बहू, मुख के मुँह, नख के नोह, गंभीर के गम्भीर, वाला के बदले- बेटावाला के बेटहा, बेटीवाला के बेटिहा, भूतवाला के भूतहा, टेंट वाला के टेंटिहा आदि।

भारतीय भासा सब का हकार प्रेम के बिस्तार से बतावत डॉ राम विलास शर्मा 'भाषा और समाज' अनेक उदाहरन देले बारन; जिसे अस्मद् से अहम् आ अहम् से हम, एकादस के एगारह, द्वादस के बारह, कस्मीरी में शरद् के हरुद्, शाक के हाख, मूसल के मूहल, सांकल के हांकल आदि। एह तरह से ई हिन्दू, हिन्द आ हिन्दी आदि कवनो बिदेसी भासा-भासी आ खास करके अवेस्ता आ फारसी के उचारन पधति के फल ना ह। ई बहुत पुरान सब्द हवें स।

‌ डॉ. भोलानाथ तिवारी के मुताबिक छठी सदी के पहिलहीं से ईरान के लोग हिन्दुस्थान के भासा संस्कृत खातिर ' जबान-ए-हिन्दी ' सब्द के प्रयोग करे लागल रहे। तिवारी जी लिखलें बारन कि सन् १४२४ ई. तक बिदेसन में संस्कृत खातिर हिन्दी सब्द के प्रयोग होत रहे। भासा के अर्थ में हिन्दी सब्द के पहिले बिदेसी सन् १३३३ ई. में इब्त बतूता अपना ' रेहला बाज अलजदरात बिल हिन्दी ' मतलब कुछ दीवारन पर हिन्दी में लिखल रहे, में प्रयोग कइले बारन। जबकि ई 'हिन्दी' सब्द आज के ' खड़ी बोली ' खातिर ना होके ' संस्कृत ' खातिर बा। तैमूरलंग का पोता के समय ( सन् १४२४ ई. ) में शर्फुद्दीन यज्दी तैमूरलंग आ ओकरा परिवार के बारे में ' जफरनामा ' नाम के एगो किताब लिखलस। जवना में एक जगे लिखल बा कि 'राव' सब्द हिन्दी के ह। बिदेस में भारतीय भासा खातिर हिन्दी सब्द के संभवतः ई पहिलके प्रयोग बा।' (हिन्दी भाषा का इतिहास; पन्ना - ५४-५५)।

भारत का भासा के अर्थ में हिन्दी सब्द के पहिल भारतीय प्रयोग इस्लामिक कबि नूर मुहम्मद सन् १७७३ ई. में लिखलें- ' हिन्दू मग पर पांव न राख्यौ। का जौ बहुतै हिन्दी भाख्यौ।' बाकिर इहंवो ई हिन्दी सब्द हिन्दुस्थान में रहे वाला मुसलमान लोग खातिर कइल गइल बा। आगे चलके भारतीय भासा के रूप में बेवहार होखे वाला अरबी-फारसी, संस्कृत आ आउर देसी भारतीय भासा से हिन्दू लोग का संस्कृत सहित आउर भासा के सब्द आदि निकाल के अरबी-फारसी के आधार पर उर्दू भासा के नेंव दिआइल। सन् १८०० ई. के आसपास मुरादशाह लिखलें -

' झिंझोड़ा फारसी के उस्तख्वाँ को
किया पुर मग्ज तब हिन्दी जबाँ को
फसाहत फारसी से जब निकाली
लताफत शेर में हिन्दी के डाली।।'

' हिन्दी सब्द के बेवहार एकरा बिरूद्ध सामान्य अर्थ में लगभग १९वीं सदी के मध्य तक मिलेला। (हिन्दी भाषा का इतिहास; पन्ना- ५९)

१९वीं सदी से पहिले भारत के मूल सनातनी निवासी लोग खातिर ' हिन्दू ' सब्द आ हिन्दू लोग का मूल निवास अस्थान में 'हिन्दुस्थान' कहल जात रहे। जवना के उचारन डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी के अनुसार ईरानी लोग ' हिन्दुस्तान' करत रहे। इस्लामिक देसन के लोग भारत में बस गइल मुसलमान लोग के ' हिन्दी ' आ ओह लोग का भासा के ' जबान-ए- हिन्दी ' हिन्द का मुसलमान लोग के जबान कहत रहे । अमीर खुसरो फारसी, अरबी, हिन्दवी आ भाखा के कबि रहलें। हिन्दवी आ भाखा में एह से लिखत रहलें कि उनकर मतारी अरबी-फारसी ना समुझत रहली। खुसरो अपना के हिन्दुस्तानी तुर्क कहत रहलें - 'तुर्क हिन्दुस्तानियन मन हिन्दवी गोयम जवाब।' मतलब- 'हम हिन्दुस्तानी तुर्क हईं, हिन्दवी में जबाब दीहिले।' बाकिर ऊ अपना ग्रंथ 'नुहसिपर' में इहाँ का एगारह भासा के नाम गिनवले बारन ओकरा में हिन्दवी आ हिन्दी के उलेख नइखे। अबुल फजल अपना 'आइने अकबरी ' में बारह भासा के नाम गिनवले बारन ओहू में हिन्दवी आ हिन्दी के चर्चा नइखे। अमीर खुसरो के बहुत बाद में एगो 'खुसरोशाह' नाम के कबि भइल रहस। उनका ग्रंथ ' खालिक बारी ' में हिन्दी सब्द आइल बा। जवना में हिन्दी के 'काना' सब्द एक आँख वाला आ फारसी में 'कोर' सब्द आन्हर खातिर प्रयुक्त होखे के उलेख बतावल जाला। कुछ बिद्वान शाही मिराजी के ' यों देखत हिन्दी बोल ' (सन्१४७५ई.), शाह बुरहानुद्दीन के ईर्शादनामा में आइल ' ऐब न राखे हिन्दी बोल ' (सन्१५८२ई.) आ सूफी नूर मुहम्मद के ' हिन्दू मग में पाँव न राख्यों। का जो बहुते हिन्दी भाख्यों। ( सन् १७७३ ई.)' के आधार लेके हिन्दी भासा का पुरान परम्परा के उलेख करेला। बाकिर एह सब लोग में ' हिन्दी ' सब्द भासा के बाचक ना होके हिन्द के मुसलमान आ ओह लोग का अरबी-फारसी मिलल हिन्दवी भा हिन्दुई बोल खातिर आइल बा।

' हिन्दी ' सब्द के बर्तमान अर्थ में सबसे पहिल लिखल प्रयोग कैप्टेन टेलर सन् १८१२ ई. में फोर्ट विलियम कॉलेज का बार्सिक बिबरन में कइलें- ' हम खाली हिन्दुस्तानी चाहे रेख़्ता के जिक्र कर रहल बानी, जवन फारसी लिपि में लिखल जाला।---- हम हिन्दी के जिक्र नइखीं कर रहल, जवना के आपन लिपि बा।' (Imperial Records, Vol- 4, Page -276-77)

सन् १८२४ ई. में फोर्ट विलियम कॉलेज के हिन्दी के प्रोफेसर विलियम प्राइस हिन्दी के लगभग सब सब्दन के संस्कृत होखे के बात कहलें आ हिन्दुस्तानी का सब्दन के अरबी-फारसी होखे के। एह तरह से हिन्दी आ हिन्दुस्तानी दूनों दू भासा-रूप के बाचक रहे। तबे त सन् १९३६ ई का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेसन में महात्मा गाँधी का कहला पर ई प्रस्ताव पारित कइल गइल रहे कि आज से आ अबहीं से कांग्रेस के कार्यवाही हिन्दी चाहे हिन्दुस्तानी में सम्पादित होई। मतलब ओह समय तक हिन्दी आ हिन्दुस्तानी दूनों दूगो भासा रहे आ गाँधी जी के सुरूआती झुकाव हिन्दुस्तानी मतलब अरबी-फारसी सहित तमाम भारतीय भासा सब का मेल से बनल भासा-रूप के ओर रहे। ताकि ऊ सउँसे देस के सम्पर्क भासा बने आ देस के एकता का डोर से जोड़े। बाकिर ओकरा में अरबी-फारसी के बर्चस्व-बहुलता के देखके भारत के सनातनी बहुसंख्यक बर्ग स्वीकार ना कइल आ हिन्दी के खड़ी बोली वाला भासा-रूप प्रचलित हो गइल।

एह तरह से जे बिद्वान लोग १९वीं सदी का पहिले के उत्तर भारतीय भासा सब का साहित्त के हिन्दी के साहित्त बतावेला। ऊ दरअसल हिन्दी के साहित्त ना होके भाखा भा भासा के रूप में प्रचारित ब्रजभासा, राजस्थानी, गुजराती, पंजाबी, भोजपुरी-अवधी, मैथिली आदि के साहित्त हवें स। हिन्दी भासा के पुरान आ ब्यापक बतावे का उदेस से उत्तर भारत के सब भासा का साहित्त के हिन्दी के साहित्त बता दिहल गइल। अइसन इस्थिति में उत्तरे भारत के काहे सउँसे भारत का भासा सब के हिन्दी-परिवार के भासा मान लेवे के चाहीं। काहे कि सउँसे भारत हिन्द भा हिन्दुस्तान ह आ इहाँ के हर बोली-भासा के प्रतिनिधि भासा भा सम्पर्क भासा हिन्दी ह। बाकिर अइसन ना हो सकल। जवना के चलते भासा आ मातृभासा के लेके उत्तर भारत में आजुओ अराजक भ्रम के इस्थित बनल बा आ उत्तर भारत के तमाम मातृभासा आ भासा खड़ी बोली- हिन्दी आ ओह हिन्दी के बर्चस्वबादी हिमायती लोग का साम्राजबादी सोच आ खोंच के सिकार होके अपना अधिकार से बंचित हो रहल बा।

सउँसे संसार में खड़ी बोली-हिन्दिए एगो अइसन भासा बा जवन सबसे पहिले गद के भासा के रूप में आपन पहचान बनावल, ना त संसार के हर भासा में पहिले पद साहित्त लिखाइल। भले बेवहार में ओकर गद रूप रहल होखे। खड़ी बोली हिन्दी पहिले अनुबाद के भासा बनल फेर संबाद के। मौलिक साहित्त आ ओहू में पद साहित्त के भासा बहुते बाद में बनल। एकरा बिकास में भोजपुरी क्षेत्र का साहित्तकारन के अलावे गैर हिन्दी भासी क्षेत्र का साहित्तकार आ देस का आजादी के लड़ाई में लागल देसवासी लोग के बहुते बड़ जोगदान बा।
सम्प्रति:
डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'
प्रताप भवन, महाराणा प्रताप नगर,
मार्ग सं- 1(सी), भिखनपुरा,
मुजफ्फरपुर (बिहार)
पिन कोड - 842001

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