भगवान बौधायन - एगो परिचय : डॉ जयकान्त सिंह 'जय'



आज जब हम ' भगवान बौधायन ' से रउरा सभे के परिचय करा रहल बानी जेकर सम्बन्ध महात्मा बुद्ध , उनका बौद्ध धर्म भा उनका पर लिखल कवनो प्रबंध काव्य से नइखे। आज हम अपना एह आलेख में भारत के ओह ऋषि , दार्शनिक आ गणितज्ञ ' भगवान बौधायन ' से परिचित करा रहल बानी जेकर जनम ईसा से ६२३ बरिस पहिले जनमल महात्मा बुद्ध से लगभग एक सौ सतहत्तर बरिस पहिल उत्तर बिहार के सीतामढ़ी जिला के बाजपट्टी प्रखंड बनगांव में पूस महीना के द्वादसी अंहरिया के भइल बतावल जाला।

दर्शन, धर्म, शास्त्र, गणित आ भासा के महान विद्वान बौधायन संस्कृत व्याकरण ' अष्टाध्यायी ' के रचयिता पाणिनि के दीक्षा गुरु रहलें। पाणिनि अपना अष्टाध्यायी में बौधायन के आपन गुरु मनले बाड़न। लगभग दू सौ ग्रंथन के रचना करनेवाला बौधायन के प्रमुख ग्रंथ बा - वेदवृत्ति, वेदांत, रत्नमंजूषा, धर्मसूत्र, गृहसूत्र, स्रोतसूत्र, द्वैधसूत्र , कर्मांत सूत्र आ शुल्बसूत्र। एह सब ग्रंथन के आइल ज्ञान, विज्ञान, अन्तर्ज्ञान, धर्म, दर्शन, वास्तुकला, यज्ञ आधारित कर्मकांड से सम्बन्धित अगाध ज्ञानागार के चर्चा ना करके उनका शुल्बसूत्र के रेखागणितीय भा ज्यामितीय गणित पर ध्यान केन्द्रित कइल ज्यादे जरूरी बुझाता।

बौधायन का शुल्ब सूत्र के सम्बन्ध गणित से आ खास करके रेखागणित आ ज्यामिति से बा। प्राचीन भारत के कई शुल्ब सूत्रन में बौधायन के शुल्ब सूत्र बहुते पुरान आ महत्व के बतावल गइल बा। 'शुल्ब सूत्र' में शुल्ब संस्कृत के सब्द ह जवना अर्थ होला ऊ सूता भा धागा, जवन नापे के कामे आवे आ इहाँ सूत्र के मतलब बा नियम भा तरीका। एह तरह से शुल्ब सूत्र माने सूता भा धागा से नापे के नियम भा सिद्धांत। आज एह शुल्ब सूत्र के तद्भव रूप हो गइल बा - शाहुल सुता। जवना के प्रयोग राजमिस्त्री आदि नापे का काम में करेला लोग। बौधायन गणित के प्रयोग धार्मिक अनुष्ठान सब में होखे वाला कर्मकांडन खातिर करत रहलें आ एही उद्देश्य खातिर ऊ शुल्ब सूत्र के रचना कइलें। एह शुल्ब सूत्र में यज्ञ के वेदी सब के सही तरीका से बनावे के कई गो फार्मूला आ नाप दिहल बा। वेदियन के नापल, ओकरा खातिर जगह के चुनाव कइल आ ओकरा के नियम का संगे बनावे के गणितीय विधि के बारे में विस्तार से बतावल बा। जवना से प्राचीन भारत के रेखागणितीय आ ज्यामितीय गणित के खोज के जानकारी मिलेला।

बौधायन का एह सूत्रन के बौधायन के प्रमेय कहल जाला। इनकर कई गो प्रमेय ५८० ईसा पूर्व से ५७२ ईसा पूर्व यूनान में जनमल गणितज्ञ आ दार्शनिक पाइथागोरस का प्रमेयन से मिलेला। चुकि पाइथागोरस के पिता मनेसार्चस टायर आ रत्न के व्यापारी रहस आ ऊ सीरिया, मिश्र, शल्डिया, मिल्टस आदि कई देसन में व्यापार के उद्देश्य से जास आ उनका एह काम में पाइथागोरसो हाथ बंटावस। ऊ जहाँ जास ओहिजा के विद्वान, गणितज्ञ, अंतरिक्ष वैज्ञानिक, खगोल शास्त्री, दार्शनिक आदि से मिलके ज्ञान अर्जित करस। संभव बा कि ऊ भारतो आइल होखस चाहे भारतीय बौधायन के शुल्ब सूत्र ओह देसन में पहुँचल होई, जहाँ उनका बौधायन का प्रमेयन के जाने के मौका मिलल होई।

परतंत्रता काल में जब भारतीय शिक्षा पर यूरोपीय शिक्षा लदात रहे ओह समय अनेक भारतीय विद्या आ शिक्षा सिद्धांतन के यूरोपीय बताके पढ़ावे के परम्परा चलल। जवना के नमूना बा पाइथागोरस से ढ़ाई साल पहिले जनमल भारतीय गणितज्ञ बौधायन के कई गो प्रमेय। जवन अबहीं तक पाइथागोरस के प्रमेय बताके पढ़ावल जाला। नमूना के रूप में बौधायन के एक-दूगो प्रमेय प्रस्तुत बा - ' एगो आयत के विकर्ण ओतने क्षेत्र एकट्ठा बनावेला जेतना ओकर लम्बाई आ चौड़ाई अलग-अलग बनावेलें। पाइथागोरस के प्रमेय में इहे सूत्र बा। अइसहीं बौधायन के सूत्र बा कि समकोण त्रिभुज के आधार आ लम्ब एक दोसरा के संगे नब्बे डिग्री के कोण बनावेलें। एह से बौधायन का प्रमेय के अनुसार कर्ण के वर्ग आधार आ लम्ब का वर्ग का योग के बराबर होला। पाइथागोरसो के प्रमेय इहे कहऽता। इहाँ प्रमेय मतलब अइसन कथन, जवना के प्रमाण का साथे सिद्ध कइल जा सके। एकरा के साध्य भी कहल जाला। एह सब साध्य भा प्रमेय भा सूत्र के शुल्ब सूत्र में संस्कृत में लिखल बा।

बौधायन के कुछ आउर प्रमेयन के देखल जाव -

कवनो आयत के विकर्ण एक दोसरा के समद्विभाजित करेला, समचतुर्भुज के विकर्ण एक दोसरा के समकोण पर समद्विभाजित करेला, कवनो वर्ग का भुजा सब के बीच का विन्दुअन के मिलावे से बनल वर्ग के क्षेत्रफल मूल वर्ग का क्षेत्रफल के आधा होला, कवनो आयत का भुजा सब का मध्य विन्दुअन के मिलावे से बनल समचतुर्भुज के क्षेत्रफल मूल आयत का क्षेत्रफल के आधा होला आदि। सबसे बड़ बात कि दू का वर्गमूल के मान जवन बौधायन बतवलें रहस उहे पाइथागोरसो बतवले। आज जरूरत बा अपना अतीत का उपलब्धियन के खोज खोज के सामने ले आवे के। सीतामढ़ी का बाजपट्टी के लोग आजुओ बिहार आ भारत सरकार से अपेक्षा राखऽता कि बौधायन का तपोभूमि के उद्धार कइल जाए। बनगांव में सन् उनइस सौ अंठावन में बौधायन मंदिर के निर्माण भइल रहे जवना के उद्घाटन कइले रहस संत देवराहा बाबा आ ओकर आजो संचालन अयोध्या के सार्वभौमिक आश्रम करेला।
सम्प्रति:
डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'
प्रताप भवन, महाराणा प्रताप नगर,
मार्ग सं- 1(सी), भिखनपुरा,
मुजफ्फरपुर (बिहार)
पिन कोड - 842001

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