भगजोगनी - डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'
अन्हेर से जूझत
जमीन से जुड़ल
भुकभुकात भगजोगनियन के
देख एके संग,
भइल बाड़ें स दंग
आकास के सितारा बेचारा।
सब सशंकित-भयभीत
करत बाड़न चिंतन
मनन-मंथन
का कवनो धरती के बेटा
खड़ा भइल
फेरू बान्ह के फेंटा
रचे चलल समानांतर सृष्टि
गजब बा एकनियों के दृष्टि
जवना के हमनीं हर बेर
कवनो ना कवनो
खडयंत्र के तहत
तूड़े-फोड़े-मरोड़े आ कुचले के
प्रयास करिले
हर तरह से
उदबास करिले
आ एगो ई बाड़ें से कि
पहिले से कुछ अधिके
जोर लगा के
उभर आवेलें।
अपना अस्मिता से
परिचित करावेलें।
अरे इयार,
एह दीन-हीन भकजोगनियन के
एकट्ठा भुकभुकात देख
आकास के नक्षत्रो
भयभीत हो रहल बाड़ें
एगो हमनीं के लोग बा
जे आपुस में अझुराके
आपन अस्तित्व खो रहल बाड़ें।
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