अघोर पंथ: सामान्य परिचय - डॉ जयकान्त सिंह 'जय'



सनातनी हिन्दू धर्म समय, समाज आ साधक लोग के ज्ञानानुभूति अउर तप-साधना के प्रभाव वश कई गो पंथ अथवा सम्प्रदाय के रूप में आकार लेत आइल बा। एकरा में 'पंथ' मतलब साधक भा सिद्ध संत लोग के बतावल साधना के मार्ग आ सम्प्रदाय मतलब ओह मार्ग का प्रवर्तक आ अनुयायी समूह द्वारा जन मानस खातिर सही मार्ग सुझावे वाला धार्मिक अथवा आध्यात्मिक संस्था। ई 'अघोर पंथ भा सम्प्रदाय' भी सनातनी हिन्दू धर्म का एगो खास तरह के तप-साधना के माध्यम से जीवन, जगत आ मृत्यु का रहस्य के भेद जाने आ मोक्ष पावे वाला साधकन के शाखा ह।

'अघोर पंथ' के साधक भा सिद्ध लोग के 'अघोरी' भा 'औघड़' कहल जाला। एह अघोरी लोग के अनुसार एह पंथ के प्रवर्तक भगवान शिव हवें। एकर संबंध शैवमत का पाशुपत भा कालामुख सम्प्रदाय से बतावल जाला। भगवान शिव के आ उनका अवतार के मानेवाला अनुयायी लोग शैव कहाला आ एह शैव मत के मानेवाला लोग के चार गो प्रमुख सम्प्रदाय- शैव, पाशुपत, कापालिक आ कालामुख में पाशुपत सबसे पुरान शाखा ह। उहँवे कालामुख सम्प्रदाय के अनुयायी लोग महाव्रतधारी कहल जालें। ई लोग नर-कपाल में ही भोजन, पानी, मदिरा आदि सबके सेवन करेलें।देह पर चिता का भस्म के लेप लगावेलें। एह शैवमत के मूल रूप ऋग्वेद में रूद्र के आराधना में बा। अथर्ववेद में शिव के भव, शर्व, पशुपति, भूपति आदि कहल गइल बा। वामन पुराण (पाशुपत, कापालिक, कालामुख आ लिंगायत शाखा), बसव पुराण आदि में शैव मत, ओकरा एह शाखा आ उप-शाखा- शाक्त, नाथ, दसनामी, भाग आदि के उल्लेख मिलेला। शैव साधु लोग के नाथ, अघोरी, औघड़, अवधूत, योगी, सिद्ध आदि कहे के पुरान परम्परा बा। शैव लोग खातिर बार-बार अघोरी भा औघड़ शब्द के प्रयोग आ अघोर पंथी लोग के शैव साधु लोग का संस्कारन से खात मेल एक दोसरा से जोड़ेला। एकरा में मुख्य संस्कार बा- एकेश्वरवादी भइल, सिर पर जटा धारन कइल, रात्रि आ निर्जन- अस्मसान में तांत्रिक अनुष्ठान कइल, हाथ में कमंडल, त्रिशूल भा चिमटा लिहल, देह पर चिता के भस्म रमावल आदि। शैव ग्रंथ 'श्वेताश्वतरोपनिषद्' में रूद्र का मूर्ति के 'अघोरा' कहल गइल बा।

'अघोर पंथ' के 'अघोर' शब्द 'घोर' शब्द में 'अ' उपसर्ग लगवला से बनल बा। 'घोर' के अर्थ होला- कठिन, अटल, असहज, जकड़ल आदि आ ओकरा में अ उपसर्ग जुड़ला से ओकर अर्थ हो जाला - सहज, सरल, आसान, स्वाभाविक, आदि। एह तरह से अघोर पंथ तप-साधना के स्वाभाविक, सहज आ सरल मार्ग वाला सम्प्रदाय ह। अघोर पंथी साधक लोग के अनुसार हर आदमी प्रकृति से सहज सरल होला। बालक जइसे जइसे सेयान होला ओकरा दुनियादारी से जुड़ल नीमन बेंजाय, अच्छा बुरा आ सही गलत में फरक करे सहजे आ जाला। बाकिर काया आ माया से जुड़ल भंवजाल में अझुराते ओकरा भीतर तरह तरह के विकार पैदा होखे लागेला आ तब ऊ सहज सरल आ स्वाभाविक ना रह के असहज, कठिन, अस्वाभाविक मतलब 'घोर' रूप में आ जाला। ओकर मूल प्रकृति अघोर मतलब सहज सरल ना रह जाए। अइसन स्थिति में सिद्ध अघोरी अपना तप साधना के जरिए फेर अघोर अवस्था के प्राप्त करेलें। जवन साधना मुख्य रूप से निर्जन स्थान, अस्मसान घाट पर, शव साधना के एगो खास क्रिया के जरिए कइल जाला। जवना के माध्यम से स्वयं का मूल अस्तित्व के भिन्न-भिन्न चरन का प्रतीकात्मक रूप में अनुभव कइल जाला।

कुछ विद्वान लोग के मत बा अघोर पंथ नाथ सम्प्रदाय का पहिले से अस्तित्व में रहे। बाकिर यूरोपीय विद्वान हेनरी बालफोर के अनुसार एह पंथ के प्रवर्तक योगी गोरखनाथ रहलें आ उनकर शिष्य मोतीनाथ एकरा प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभवलें। उहँवे विलियम क्रुक अघोर पंथ के सबसे पहिले राजपुताना राजस्थान के आबु पर्वत पर प्रवर्तित आ प्रचलित भइल फेर गुजरात, नेपाल आ समरकंद जइसन जगह तक फइलल। एह अघोर पंथ के अघोरी साधु शव साधना करेलें, मुर्दा के मांस खालें। मुर्दा का खोपड़ी में खाना खालें आ पानी-मदिरा पीयेलें। जवन इनका के शैव मत के कालामुख आ कापालिक लोग का परम्परा से जोड़ेला। एक ओर जहाँ भगवान शिव के अघोर पंथ के प्रवर्तक बतावल जाला उहँवे अवधूत दत्तात्रेय के शिव के अवतार मानल जाला जे अघोर पंथ के सिद्ध गुरु रहलें। बल्कि उनका के शिव सहित ब्रह्मा आ विष्णु के संयुक्त अवतार बतावल जाला। अघोर पंथी कीनाराम के अनुसार शिव स्वयं में सम्पूर्ण हवें आ समस्त जड़ चेतन में व्याप्त बाड़ें। एह देह आ मन के साध के जड़ चेतन आ सब स्थितियन के अनुभव क के मोक्ष पावल जा सकऽता।

अघोर मत के प्रचार-प्रसार में बाबा कीनाराम के बहुत बड़ भूमिका बा। एह से उनका बारे में विस्तार से चर्चा कइल जरूरी बा।

कीनाराम के जनम चंदौली तहसील के बनारस जिला का रामगढ़ गाँव के क्षत्रिय रघुवंशी परिवार में संवत् १६८४ विक्रमाब्द में भइल रहे। बचपन से ही उनकर रूचि धार्मिक रहे। जहाँ रहस राम नाम के जप करत रहस। बारह बरिस के उमिर में उनकर बिआह हो गइल रहे। जहिया उनकर गवना होखे के रहे ओकरा एक दिन पहिले ऊ घर के लोग से दूध भात खाए के मँगलें। तब घर के लोग एकरा के अशुभ बतावल।तबो ऊ दूधे भात लेके खइलें आ कुछे छन बाद उनका पत्नी का मरे के खबर पहुँचल। एकरा बाद ऊ विरक्त होके घर से चलके गाजीपुर में रहे वाला रामानुज संप्रदाय के महात्मा शिवाराम जी के सेवा टहल में लाग के उपदेश देवे के आग्रह कइलें। शिवाराम जी गंगा नहाये चललें कीनाराम के आपन बाघाम्बर आ पूजा-पाठ के सामग्री देके आगे बढ़े के कहलें। कीनाराम गंगा किनारे पहुँच के गंगा जी के आगू आपन माथ नववलें त गंगा जी उनका पांव के पास पहुँच गइली। ई सब शिवाराम जी दूर से ही देखत रहलें। उनका समुझत देर ना लागल कि ई कीनाराम जनमजात महात्मा बा। ऊ कीनाराम के आपन गुरुमंत्र दिहलें। कुछ दिन के बाद शिवाराम जी का पत्नी के देहांत हो गइल आ ऊ दोसर बिआह करे के तय कइलें। एही बात पर उनकर कीनाराम से मतभेद हो गइल। फेर कीनाराम उहाँ से चल दिहलें। जब ऊ नैगडीह गाँव पहुँचले त उहाँ देखलें कि जमींदार के सिपाही गाँव के एगो गरीब बुढ़िया का बेटा के मामूली अपराध खातिर कैद करके कैदखाना में डाल दिहले बाड़ें। उनका के साधु-महात्मा जान के बुढ़िया अपना बेटा के छोड़वावे खातिर मिनती करे लागल। एह कीनाराम अपना तेज आ चमत्कार से प्रभावित करके ओह लरिका के जमींदार का कैद से मुक्त करा दिहलें। ओह बुढ़ औरत का खुशी के ठेकाना ना रहल आ ऊ अपना बेटा के कीनाराम के हवाले कर दिहल,जे बाद उनकर शिष्य अवधूत बिजाराम के नाम से जानल डालें।

एक बेर कीनाराम बिजाराम के नीचे रहे के कहके अपने गिरनार पर्वत पर तप करे चल गइलें। जहाँ उनका दत्तात्रेय जी से भेंट कालूराम के रूप में भइल। कीनाराम अपना ग्रंथ' विवेक साथ ' में एह चीज के उल्लेख कइले बाड़न। एकरा बाद कीनाराम आ बिजाराम जूनागढ़ पहुँचल लोग। कीनाराम बिजाराम से नगर में जाके भिक्षा माँग ले आवे के कहलें आ अपने बाहर आसन लगा के ध्यान में बइठ गइलें। जूनागढ़ के शासक मुसलमान रहलें। उनकर सिपाही नगर में घुसते बिजाराम के पकड़ के जेल में डाल दिहल। जब कीनाराम गइलें त उनको के जेल में डाल दिहल गइल आ सजाय के रूप में चक्की चलावे के मिलल। ऊ अपना डंटा से चक्की के मारत चले के कहलें आ चक्की अपने चले लागल। एह बात के जानकारी मिलते उहाँ के शासक कीनाराम से माफी माँगत दूनो जना के छोड़ दिहलें आ उपहार के रूप में काफी हीरा-जवाहरात भेंट कइलें। कीनाराम कुछ हीरा जवाहरात मुँह में डाल के थूकरत कहलें कि ई ना त मीठे लागऽता आ ना खट्टे लागऽता। फेर ई कवना काम के? तूं हम साधु के खाए खातिर ढ़ाई पाव पिसान दे दे। ई घटना संभवतः विक्रम संवत १७२४ के ह।

कीनाराम जूनागढ़ से बनारस के अघोरी कालूराम से मिले उनका मठ केदारनाथ अस्मसान घाट पहुँचलें। कालूराम मुर्दा का खोपड़ी सब के बोला के चना खिआवत रहलें। ऊ कीनाराम से आपन परिचय देवे के कहलें त ऊ कालूराम का एह काम के रोक दिहलें। अब मुर्दा के कवनो खोपड़ी चना खाए अइबे ना करे। तब कालूराम ध्यान लगा के जान गइलें कि कीनाराम हवें। ऊ कीनाराम से मछरी मँगले आ कीनाराम गंगा से मछरी मँगलें। मछरी पानी से बाहर किनार पर आ गइल। तीनों जना मछरी पकाके खइलन। फेर एकरा बाद ऊ कालूराम के कहला पर नदी में दाहात एगो लास के जिन्दा कर दिहलें। जे आगे चलके उनकर शिष्य राम जिआवन राम भइलें। एह घटना के समय वि. स. 1754 बतावल जाला। एह तरह के कई गो परीक्षा पास कइला के बाद कालूराम कीनाराम के अघोर पंथ के गुरुमंत्र दिहलें आ अपने लुप्त हो गइलें। अघोर पंथ में ई विस्वास जतावल जाला कि खुद भगवान दत्तात्रेय कालूराम बनके कीनाराम के अघोर पंथ के गुरुमंत्र दिहलें। कालूराम के द्वारा कीनाराम के गुरुमंत्र देके लुप्त हो जाए के संकेत विद्वान लोग एह बानी से बतावेला -

'कीना कीना सब कहे, कालू कहे ना कोय।
कालू कीना एक भये, राम करे से होय।।'

एकरा बाद कीनाराम कासी के कृमिकुंड में रह के तपस्या करे लगलें आ कबो कबो रामगढ़ जास। भगवान दत्तात्रेय के बाद कीनाराम अघोर पंथ के आगे बढ़वलें। छंदशास्त्र के जानकार कीनाराम के चार गो प्रमुख पुस्तक बा- विवेक सार, राम गीता, राम रसाल आ गीतावली। ऊ विवेक सार के रचना उज्जैन के क्षिप्रा नदी के किनारे कइले रहलें जवना में ऊ आत्माराम के वंदना आ आत्मानुभव के चर्चा कइले बाड़न। उनका अनुसार सत्य भा निरंजन सर्वव्यापक आ सहज रूप अस्तित्व में बाड़ें। विवेक सार में ओह सब अंग के भी चर्चा बा जवना में से पहिला तीन गो में सृष्टि रहस्य, काया परिचय, पिंड ब्रह्मांड, अनाहत नाद आ निरंजन के चर्चा बा। अगिला तीन गो में योग, साधना, निरावलंब के अवस्था, आत्म विचार, सहज समाधि आदि के उल्लेख बा आ बाकी दूगो में सउँसे विश्व के आत्म स्वरूप होखे आ आत्म स्थिति खातिर दया, विवेक आदि के अनुसार चले का बारे में बतावल गइल बा। कीनाराम के मृत्यु सन् 1826ई. में भइल रहे।

कीनाराम के शिष्य परम्परा में आवे वाला शिष्यन में प्रमुख नांव बा - जय नारायण राम, बिजाराम, राम स्वरूप राम, राम जिआवन राम आदि। जूनागढ़ में कीनाराम के दोसर मठ बा। इनका मत में अलख पंथी, नागा संन्यासी आ नागा अवधूतिन भी होखेली। इनका मत में मदिरा के प्रयोग ना होत रहे। एकरा अलावे इनकर आउर कई गो मठ बनल बा।

निरबानी आ घरबारी जीवन शैली के आधार पर अघोर पंथ के दू भाग हो गइल। जे आपन घर-परिवार ना बसा के अपना तप साधना में रत रहत रहे ऊ निरबानी कहाइल आ जे गिरहस्त रूप में घर-परिवार के बीच रह के साधना के बदौलत सिद्धि पवलस ऊ घरबारी कहाइल। बतावल जाला कि कीनाराम आ भिनक राम निरबानी संत रहे लोग।

विद्वान लोग के अनुसार अघोर पंथ के तीन गो शाखा बँट गइल- अघोर, घुर आ सरभंग सम्प्रदाय। एकरा में सरभंग सम्प्रदाय के प्रमुख केन्द्र बिहार के चम्पारन, सारन, मुजफ्फरपुर आ नेपाल के तराई क्षेत्र बा।
सम्प्रति:
डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'
प्रताप भवन, महाराणा प्रताप नगर,
मार्ग सं- 1(सी), भिखनपुरा,
मुजफ्फरपुर (बिहार)
पिन कोड - 842001

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