भोजपुरी बिरोधी मंच क प्रोपगंडन के भंडाफोड़ - डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'



आर्यावर्त-भारत बहुभासी आ बहुसांस्कृतिक देस ह। ए. अब्बी के सम्पादन में छपल पुस्तक 'स्टडीज इन बाइलिंग्विलिज्म' के अपना आलेख में अन्नामलाई एह बहुभासिकता के बहुते तार्किक ढंग से 'भारत के स्नायु-बेवस्था कहले बारन। सन् १९७२ ई. में पी. बी. पंडित भारत के 'सोसियोलिंग्विस्टिक एरिया' में कहले बारन कि India is a Sociolinguistic glant.'

उनइसवीं सदी के अरजल आ आजादी का लड़ाई के दौर में देस के सम्पर्क भासा के रूप में प्रचलित भइल खड़ी बोली आधारित हिन्दी भासा के उत्तर भारत के मातृभासा बताके उत्तर भारत के कुल्ह स्वाभाविक मातृभासा भोजपुरी, मैथिली, मगही, अवधी, ब्रजभासा, राजस्थानी आदि के सङ्गे भारत सरकार लमहर खड्यंत्र कइल। आजुओ उत्तर भारत के कुल्ह मातृभासा सबका सङ्गे खड्यंत्रे हो रहल बा आ एह कुल्ह भासा के अधिकार आ बिकास के राह में तरह-तरह के प्रोपगंडा फइला के रोड़ा अँटकावल जा रहल बा। अंगरेजन का मानस-पुत्रन का रोब-रूतबा के भासा अंगरेजी के दबाव झेलत बेवहारिक रूप में दोयम दर्जा के राजकीय भासा हिन्दी के कट्टर हिमायती महानुभाव लोग अपना बर्चस्वबादी आ बिस्तारबादी सोच के तहत अंगरेजी का मार से उपटल दरद के निगार एह कुल्ह पुरान-पारंपरिक भासा पर निकाल रहल बा।

आज जबकि भारत एही प्राकृतिक भासा भोजपुरी, अवधी, ब्रजभासा, राजस्थानी आदि का भासा-भासी जन-समुदाय के बदौलत ई खड़ी बोली हिन्दी जनसंख्या के दिसाईं दुनिया के तिसरकी-चउथकी बन गइल बिआ। दुनिया के हर छठा आदमी हिन्दी भासी बा। दुनिया के १३२ देसन में एकर बिस्तार बढ़ल बा। युनेस्को के सात भासा सब में एगो एकरो खास जगह मिलल बा। संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिकारी भासा बने के एकर मजबूत दावेदारी बा। दुनिया के सबसे नवकी भासा होइयो के विश्वभासा के रूप में आपन रूतवा कायम कर चुकल बिआ। दुनिया का कई विश्वविद्यालयन में अध्ययन-अनुसंधान के बिसय बन चुकल बिआ। एह सब के बावजूद कुछ चरमपंथी हिन्दी के हिमायती भोजपुरी का बिकास में दिन-रात रोड़ा अँटका रहल बारन। एकरा संवैधानिक अधिकार पावे का रास्ता में कई तरह के प्रोपगंडा के माध्यम से अड़ंगा डाल रहल बारन। जवना के झाँसा में आके संवैधानिक अधिकार पावे जोग हर पात्रता के पूरा करेके बावजूद भोजपुरी अपना संवैधानिक अधिकार से बंचित बा। मातृभासाई अस्मिताबोध से हीन निहायत संवेदनहीन, असाहित्यिक आ असांस्कृतिक जनप्रतिनिधियन (ग्राम सभा से लेके लोकसभा आ राजसभा तक) का मातृभासाई अग्याँनता आ बिखराव के चलते हर तरह से सम्पन्न भोजपुरी भासा भारतीय संसद में राजनीतिक लड़ाई हार जात बा। देस का आउर भासा-भासी जइसन ई भासा अपना क्षेत्र के सम्मानित आ रोजगारपरक भासा नइखे बन पावत अउर भासिक-अनुसंधान, साहित्य-सृजन, क्षेत्रफल, जनसंख्या आदि के दिसाईं सबसे बड़ भासा भइला के बावजूद ई संवैधानिक अधिकार से बंचित बा। एकरा से छोट छोट भासा डागरी, संथाली, नेपाली, मैथिली, कोंकणी, मराठी आदि संवैधानिक अधिकार पाके अपना क्षेत्र के बिकास में आपन भरपूर जोगदान दे रहल बा। एह से भोजपुरी बिरोधी मंच का एक-एक प्रोपगंडन के भंडाफोड़ करके एह बर्चस्वबादी आ साम्राजबादी कट्टरपंथी महानुभाव लोग के उघार कइल जरूरी बा।

'हिन्दी बचाओ मंच' जइसन छद्म नाम से चर्चित 'भोजपुरी बिरोधी मंच' का बहुरूपियन के पहिलका प्रोपगंडा ई बा कि भोजपुरी के आपन लिपि नइखे।

जबकि खड़ी बोली हिन्दी का पैदाइस का पहिले से भोजपुरी भासा कैथी, महाजनी आ देवनागरी लिपि में लिखल जात रहल बा। कैथी लिपि के जन्मदाता आचार्य चाणक्य मानल जालें। ई कुटिल लिपि भा त्वरा लिपि मौर्य काल से आपन अस्तित्व बनवले बा। महाजनी लिपि के बेवहार भोजपुरी भासी क्षेत्र के बेवसायी बर्ग करत रहे। देवनागरी के जनम देवनगरी कासी के भोजपुरी-कासिका भासी पंडित जी लोग कइल। एह तरह से देवनागरी भोजपुरी के आपन लिपि ह। पहिले हिन्दुई, हिन्दवी, हिन्दुस्तानी अरबी-फारसी लिपि में लिखात रहे। उनइसवीं सदी में देवनागरी में लिखाये लागल। तब देवनागरी भोजपुरी के लिपि भइल कि हिन्दी के? अइसहूं जब देवनागरी लिपि के आधार पर नेपाली, संस्कृत, मराठी, संथाली, डोगरी आ मैथिली का सङ्गे हिन्दी का संवैधानिक मान्यता मिल सकऽता त भोजपुरी का सङ्गे सौतेला बेवहार काहे?

एह भोजपुरी बिरोधी 'हिन्दी बचाओ मंच' का प्रोपगंडी सबके दोसरका प्रोपगंडा बा कि भोजपुरी के आपन बेयाकरन आ सब्दकोस नइखे। जबकि भोजपुरी में बेआकरन आ सब्दकोस लिखे के बहुते पुरान आ पुरकस परम्परा रहल बा। कुछ के उलेख नमूना के रूप में प्रस्तुत बा -

'भोजपुरी बेयाकरन'

१. 'ए शार्ट ग्रामर ऑफ भोजपुरी'- एजा. एम. चाइल्ड ( सन् १९०४ )
२. 'भोजपुरी के ठेठ भासा ब्याकरन'- शिवदास ओझा ( सन् १९१५ )
३. 'भोजपुरी व्याकरण' - रास बिहारी राय शर्मा (सन् १९६५)
४. 'भोजपुरी और हिंदी' - डॉ. शुकदेव सिंह (सन् १९६७)
५. 'भोजपुरी शब्दानुशासन' - डॉ. रसिक बिहारी ओझा 'निर्भीक' (सन् १९७७)
६. 'भोजपुरी भाषा के बनावट' - डॉ. दयानंद श्रीवास्तव (सन् १९८३)
७. 'भोजपुरी व्याकरण' - आचार्य रामदेव त्रिपाठी (सन् १९८७)
८. 'मानक भोजपुरी वर्तनी' - आचार्य विश्वनाथ सिंह (सन् १९८८)
९. 'आदर्श भोजपुरी व्याकरण'- आचार्य श्रद्धानंद अवधूत
१०. 'भोजपुरी व्याकरण के रूपरेखा'- विंध्याचल प्रसाद श्रीवास्तव (सन् १९९९)
११. 'भोजपुरी शब्द परिचय -सप्रयोग'- डॉ. श्याम कुमारी श्रीवास्तव (सन् १९९९)
१२. 'भोजपुरी व्याकरण आ रचना'- डॉ. जयकान्त सिंह आ डा. शिवचन्द्र सिंह (सन् २००८)
१३. 'भोजपुरी भाषा व्याकरण रचना'- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सिंह (सन् २०११)
१४. 'मानक भोजपुरी भाषा व्याकरण आ रचना'- डॉ. जयकान्त सिंह 'जय' (सन् २०१३)
१५. 'भोजपुरी भाषा व्याकरण रचना'- डॉ. महामाया प्रसाद विनोद, डॉ. जीतेन्द्र वर्मा आदि।

भोजपुरी सब्दकोस :

१. 'ए कम्पेरेटिव डिक्शनरी ऑफ बिहारी लैंग्वेज' - हार्नले आ ग्रियर्सन (सन् १८८५)
२. 'बिहार पिजेंट लाइफ'- डॉ. ए. जे. ग्रियर्सन (सन् १९२५)
३. 'भोजपुरी शब्दकोश'- एल. सेंट सोजेफ (सन् १९४०)
४. 'कृषि कोश'- वैद्यनाथ प्रसाद (सन् १९५९)
५. 'कृषि कोश'- श्रुतिदेव शास्त्री (सन् १९६६)
६. 'भोजपुरी शब्द कोश'- प्रो. बृजबिहारी प्रसाद (सन् १९७८)
७. 'भोजपुरी शब्द सम्पदा'- डॉ. हरदेव बाहरी (सन् १९८१)
८. 'भोजपुरी शब्द सागर'- सर्वेन्द्र पति त्रिपाठी
९. 'भोजपुरी हिन्दी शब्दकोश' - पं. गणेश चौबे
१०. 'भोजपुरी हिन्दी इंग्लिश लोक कोश'- प्रो. अरविन्द कुमार (सन् २००९)
११. 'भोजपुरी हिन्दी अँग्रेजी शब्द कोश'- डॉ. अरुणेश नीरन (सन् १९१८) आदि।

'हिन्दी बचाओ मंच' के प्रोपगंडाबाजी लोग के तिसरका प्रोपगंडा बा कि भोजपुरी भासा के कवनो भासा-बैग्याँनिक अध्ययन नइखे भइल। जबकि हमरा जानकारी के मुताबिक भारतीय संविधान के आठवीं अनुसूची में सामिल दू-तीन भासा के छोड़ के भोजपुरी जतना भासा-बैग्याँनिक अध्ययन-अनुसंधान आउर कवनो भासा के नइखे भइल। कुछ प्रमुख अध्ययन-अनुसंधान के उदाहरन बा-

१. 'सेवेन ग्रामर्स ऑफ द डायलेक्ट्स एंड सब डायलेक्ट्स ऑफ बिहारी लैंग्वेजेज' - डॉ. ग्रियर्सन (सन् १८८७)
२. 'लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया' (जिल्द- ५ भाग- २) - डॉ. ग्रियर्सन
३. 'बिहार पिजेंट लाइफ' संस्करण-२ (सन् १९२५) - डॉ. ग्रियर्सन
४.  द स्टोरी ऑफ सीत बसंत' - ई. डेविड  सन् १८९१-९२)
५.  फोकलोर फ्राम इस्टर्न गोरखपुर'- फ्रेजर (सन् १८८८)
६. 'नोट ऑन ए मैंजिकल क्यूरेटिव प्रैक्टिस इन इयूज एट बनारस'- डब्लू एल हिलवर्ग
७. 'सदानी ए भोजपुरी डायलेक्ट स्पोकेन इन छोटा नागपुर'- हार्स्टमैन जार्डन आ मोनिका (सन् १९६९)
८. 'मारिसस की भोजपुरी में प्रचलित लोकाक्तियां, मुहावरे और पहेलियां'- दिमलाला मोहित (सन् १९७९)
९. 'रिचुअल सांग्स एंड फोक सांग्स ऑफ ए हिन्दुज इन सुरीनाम'- यूं. आर्य (सन्१९६८)

ई कुछ बिसय उदाहरन भर बा। भारत आ भारत का बाहर का अध्येता आ अनुसंधानकर्ता के नाम गिनाईं त कई सौ के पार जाई। फिलहाल भंडाफोड़ आउर प्रोपगंडन के करेके बा। एह लोग के इहो कहे के बा कि जदि भोजपुरी के संवैधानिक मान्यता दे दिआई त भोजपुरी भासी के संख्या कम हो जाई आ हिन्दी जनसंख्या के आधार पर संयुक्त राष्ट्र संघ के आधिकारिक भासा ना बन पाई। इहो एगो लमहर झूठ बा।

आज संयुक्त राष्ट्र के छव गो आधिकारिक भासा बा - अंगरेजी, फ्रेंच/फ्रांसीसी, रूसी, स्पेनिश, चीनी आ अरबी। बाकिर एकरा में अंगरेजी आ फ्रेंच/फ्रांसीसी के ही संचालन के भासा मानल जाला। पहिले चारे गो भासा स्वीकृत रहे- चीनी, अंगरेजी, फ्रांसीसी आ रूसी। सन् १९७३ ई. में अरबी आ स्पेनिश जुटल। संयुक्त राष्ट्र संघ में कवनो भासा के आधिकारिक भासा के रूप में मान्यता देवे खातिर जनसंख्या चाहे आउर कवनो खास मानदंड/मापदंड तय नइखे। एकरा खातिर संघ के महासभा में साधारन बहुमत के जरिए एगो संकल्प के स्वीकार करे आ कुल सदस्यता के दू तिहाई बहुमत मतलब १२९ देसन के समर्थन से ओकरा के अंतिम रूप में पारित करे के होला। दुनिया के सबसे बड़ आ पुरान लोकतंत्र आ आर्थिक सक्ति के रूप में उभरत एतना बिसाल जनसंख्या वाला देस के भासा हिन्दी के आज ना त काल्ह संयुक्त राष्ट्र संघ के आधिकारिक भासा के रूप में मान्यता त मिलहीं के बा। बाकिर फिलहाल हिन्दी के मान्यता ना मिले के असली वजह ई बा कि एने संघ के ई नियम बाधक बनल बा कि कवनो बिदेसी भासा के मान्यता देवे खातिर जवन-जवन देस ओकरा पक्ष में मतदान करी, बाद में ओह सब देसन का ओह भासा के लागू करे में होखे वाला खर्च-लागत के भी वहन करे के पड़ी। जवना खातिर कई देस तइयार नइखे। इहे वजह बा कि संघ के दू तिहाई देस मतलब १२९ देस का समर्थन के बावजूद हिन्दी आधिकारिक भासा नइखे बन पावत। ई समस्या हिन्दिए ना जापानी आ जर्मन भासा का सङ्गे भी पैदा भइल रहे। एने भारत सरकार एह नियम में सुधार के प्रस्ताव देले बा कि हिन्दी का मान्यता मिले आ ओकरा के लागू करे में जवन खर्च-लागत आई ऊ भारत सरकार खुद वहन करी। एह से जनसंख्या के कम चाहे अधिका भइला से हिन्दी के ' संयुक्त राष्ट्र संघ ' के आधिकारिक भासा बने में आवे वाला बाधा के बात भ्रामक आ अतार्किक बा। अइसहूँ हिन्दी बोले वालन के संख्या रूसी, स्पेनिश, अरबी आ फ्रांसीसी से बहुत अधिक बा। देस में जवन राजनीति भोजपुरी का सङ्गे हो रहल बा, संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दियो ओकरे सिकार लागत बिआ।

एह प्रोपगंडी गिरोह का ओर से इहो लिखके सरकार के गुमराह कइल गइल बा कि भोजपुरी के पास शिष्ट आ आधुनिक साहित्य के अभाव बा। भोजपुरी में एगो कहाउत चलेला- 'दू दिन के छउँरी आ माई राम नाम।' उनइसवीं सदी में आकार लेवे वाली अनुबाद के भासा खड़ी बोली हिन्दी के साहित्त समृद्ध हो गइल आ पूरबी बोली भोजपुरी में साहित्ते नइखे। छठी-सातवीं सदी के भोजपुरी कबि वाण्भट्ट के मित्र इसानचंद आ बेनीभारत ( बर्नकबि ), सिद्ध आचार्य सरहप्पा, सबरप्पा, भुसुकप्पा, डोम्भिप्पा, चौरंगीप्पा/चौरंगीनाथ, नाथ पंथ के गोरखनाथ, भरथरी, चोपिचंद, कबीर, रैदास, तुलसी आदि का साहित्त के अलग राखियो दिआव त संत दरियादास, धरनीदास, शिवनारायण, कीनाराम, भिनक राम, सरभंग सम्प्रदाय के भीखम राम, टेकमन राम, धवला राम , कर्ता राम, लक्ष्मी सखी आदि के बाद भारतेंदु हरिश्चंद, तेग अली तेग, रामकृष्ण वर्मा बलवीर, महेन्दर मिसिर, भिखारी ठाकुर, हीरा डोम आदि से लेके असंख आधुनिक कबि के नाम गिनावल जा सकेला। ओइसहीं गद साहित्त के रूप में दामोदर पंडित के 'उक्ति व्यक्ति प्रकरण' गोरखनाथ के गोरखसार, रविदत्त शुक्ल, रामगरीब चौबे के नाटक आदि के नाम नाहियो लिहल जाए त राहुल सांकृत्यायन, शिवपूजन सहाय, महेंद्र शास्त्री, दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह, रघुवंश नारायण सिंह, रामेश्वर सिंह काश्यप, पाण्डेय कपिल, रामनाथ पाण्डेय, रामाज्ञा प्रसाद सिंह'विकल', डॉ. नर्वदेश्वर राय, डॉ.रामदेव शुक्ल, डॉ.अशोक द्विवेदी, डॉ.ब्रजभूषण मिश्र आदि का साहित्त के कवनो समृद्ध साहित्त वाला भासा के सोझा राखल जा सकऽता।
सम्प्रति:
डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'
प्रताप भवन, महाराणा प्रताप नगर,
मार्ग सं- 1(सी), भिखनपुरा,
मुजफ्फरपुर (बिहार)
पिन कोड - 842001


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