गउआँ की ओर - उमेश कुमार राय

मनवा रे! चल गउआँ की ओर।
जहवाँ बा सादगी चहु ओर।।

ना बा कहवों हल्लागुल्ला,
नाहीं करखानवा के शोर।
ना बा 
कहवों धूआँधुकूर,
नाहीं गड़ियन के बा शोर।

जहवाँ  ना भीड़भाड़ के जोर।
मनवा रे! चल गउआँ की ओर।

बाग-बगईचा ताल-तलईया
,
अउर चिरईंयन के मधुर शोर।
सिंदुरी लिहले भोरे किरिनिया,
देख के होला मनवा विभोर।

शहर बेगाना बा 
गउआँ चितचोर।
मनवा रे! चल गउआँ की ओर।

एकर गहना हरियाली बा,
नयना आहर-पोखर के छोर।
बिंदी त गाँव के गरिमा बा,
पेड़-रुख एकर नवल किशोर।

एकर  गोदिया भईनी आत्मविभोर।
मनवा रे! चल गउआँ की ओर।

एकर आँगनवा खेल मैदानवा बा,
विद्यालय ह एकर अकिल बेजोड़।
पड़ोसी एकर जवारन के घर बा,
गउआँ के लोग परिवार बेजोड़।

अगराई पकड़s एकर आँचर के कोर।
मनवा रे! चल गउआँ की ओर।
सम्प्रति:
उमेश कुमार राय
ग्राम+पोस्ट - जमुआँव
थाना- पीरो, जिला- भोजपुर (बिहार)



 



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