घाघ आ उनकर कहाउत (3): उमेश कुमार राय
घाघ के कहाउत:
उधार काढ़ि ब्योहार चलावे।
छप्पर डारे तारो।।
सारे के संग बहिनी पठवे।
तीनिउ के मुँह कारो।।
अर्थ - जे उधार लेके करज देला, जे घास-फूस के घर में ताला लगावेला, अउर जे साले के साथे बहीन के भेजेला, घाघ कहेलन कि तीनो के मुँह करिया होखेला।
आलस नींद किसाने नासे।
चोरे नासे खाँसी।।
आँखिया लीबर बेसवे नासे।
बाबे नासे दासी।।
अर्थ- आलस अउर नींद किसान के, खाँसी चोर के, कींची वाली आँख वेश्या के अउर दासी साधु के नाश करे खातिर काफी होला ।
फूटे से बहि जातु है ढोल, गंवार, अंगार।
फूटे से बन जातु है फूट, कपास, अनार।।
अर्थ- ढोल, गंवार अउर अंगार ई तीनों फूटला से नष्ट हो जाला।बाकी ककड़ी, कपास अउर अनार फूटला से बन जाला यानि महत्वपूर्ण हो जाला।
माते पूत पिता ते घोड़।
ना बहुतो त थोरो थोर।।
अर्थ - माई के गुन बेटा में आवेला अउर पिता के गुन घोड़ा में आवेला। ढेर ना आई त थोरका सा त जरूर आई।
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