घाघ आ उनकर कहाउत (4): उमेश कुमार राय
बनिय क सखरच ठकुर क हीन।
बईद क पूत ब्याधि नहीं चीन्ह।।
पंडित चुपचुप बेसवा मईल ।
कहे घाघ पाँचो घर गईल।।
अर्थ - अगर बनिया के लईका शाहखर्च (अपव्ययी ) होखस, ठाकुर के लईका तेजहीन पतला- दुबला होखस, वैद्य के लईका रोग ना पहचानत होखस, पंडित चुप-चुप (मुँहदुबर ) होखस अउर वेश्या मईल होखस त घाघ कहेलन कि एह पाँचो के घर खतमें समुझीं।
नसकट खटिया दुलकन घोड़।
कहे घाघ यह विपति क ओर ।।
अर्थ - घाघ के अनुसार छोटहन खटिया जेकरा प लेटला प एंडी के नस पटिया प पड़त होखे जेकरा से ओहीजा के नस में पाटी गड़त होखे अउर दुलक के चले वाला घोड़ा विपत्ति के कारण होला ।
बाढ़े पूत पिता के धर्मे।
खेती उपजे अपने कर्मे।।
अर्थ - लईका बाबू के धरम से आगे बढेला आउर खेती आपन करम से उपजेला।
अगते खेती, अगते मार।
कहें घाघ ते कबहुं न हार।।
अर्थ - घाघ के कहे के मतलब बा कि जे सबसे पहिले खेती करेला अउर झगड़ा होखला प जे सबसे पहिले मारेला उ कबही ना हारेला ।
सम्प्रति:
उमेश कुमार राय ग्राम+पोस्ट- जमुआँव थाना- पिरो जिला- भोजपुर, आरा (बिहार) |
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें