नर्मदेश्वर प्रसाद सिंह ' ईस ' के भोजपुरी रचना - प्रो. ( डॉ. ) जयकान्त सिंह 'जय'



नर्मदेश्वर प्रसाद सिंह 'ईस' संस्कृत, अरबी, फारसी, उर्दू, हिन्दी आदि के बिद्वान आ भोजपुरी - हिन्दी के सिद्ध कवि रहलें। इनकर जनम विक्रम संवत् १८९६ मतलब सन् १८३९ ई. का कुआर पुर्नवाँसी के बिहार के भोजपुर जिला के जगदीशपुर में सन् १८५७ का स्वाधीनता आंदोलन के अमर सेनानी बीर बांकुड़ा बाबू कुँवर का परिवार में भइल रहे। ईश जी के परदादा बाबू रणबहादुर सिंह आ बाबू कुँवर सिंह के दादा बाबू उमराँव सिंह सहोदर भाई रहे लोग। भोजपुरी भासा, संस्कृति, समाज आ साहित्य के समर्पित ब्यक्तित्व बाबू दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह 'नाथ' उनकर पोता रहलें। दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह नाथ का साहित्यिक संस्कार उनका दादा ईस जी से मिलल रहे। ईस जी पचहत्तर बरिस के यशस्वी जीवन जी के सन् १९१५ ई. में दिवंगत भइल रहस। सन् १८५७ के स्वाधीनता आंदोलन के समय अठारह बरिस के उमिर में लिखल उनकर कुछ भोजपुरी रचना भोजपुरी साहित्य जगत के अमूल्य धरोहर बा। जवना के बाबू दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह 'नाथ' अपना इतिहासिक ग्रन्थ 'भोजपुरी के कवि और काव्य' के अन्तर्गत 'लेखक की अपनी बात' में प्रस्तुत कइले बाड़न। ईस जी आगे प्रस्तुत भोजपुरी कवितन के अध्ययन के आधार पर उनका काव्य - प्रतिभा आ मातृभासा - प्रेम के परिचय मिल सकेला। उनकर कवितन के कुछ बानगी प्रस्तुत बा -
१. सपथ आ प्रतिग्या
देसी आ बिदेसी के फरक केहू राखल नाहीं,
लड़ि लड़ि अपने में बिदेसी के जितवले बा।
गोरा सिक्ख सेना ले निडर जो चढ़ल आवे,
घर के बिभीखन भेद ऊहे नू बतवले बा।
तबो ना चिन्ता इचिको देस-प्रेम जागल बा,
हिन्दू मुसलमान संग भारत मिलवले बा।
सपथ सिवा के बा प्रताप के प्रतिग्या 'ईस'
प्रन बा आजादी किरिया खङ्ग के खिअवले बा।

२. हाथ में दुधारी धारीं
आगे बढ़ीं आगे बढ़ीं देखीं ना एने-ओने,
एके लच्छ एके टेक एके मन राखीं ख्याल।
हाथ में दुधारी धारीं लम्बा लम्बा डेग डालीं,
हर-हर बम्म बोलीं घूसि चलीं जइसे ब्याल।
पैंतरा पर दउड़े लागीं खेदि खेदि सत्रु काटीं,
सत्रु तोप नाल पैठि गोला काढ़ि लाईं ज्वाल।
रवि-रथ रोकि लीहीं जमराज डाँटि- हाँकि,
डाकिनी के खप्पर में 'ईस' भरीं रकत लाल।

३. बसन्त - बरनन
प्रेम प्रगटाइल रंग - राग लहराइल,
मैन बान बगराइल नैन रूप में लोभाइल बा।
जाड़ा बिलाइल चाँद चाँदनी तनाइल,
मान मानिनी मिटाइल पीत बसन सोहाइल बा।
' ईस ' रस - राज मनमानी सरसाइल,
बन बगिया लहलहाइल सुख देत मधुआइल बा।
बिरही दुखाइल मन मनमथ जगाइल,
संजोगी उमगाइल ई बसन्त सरसाइल बा।
सम्प्रति:
डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'
प्रताप भवन, महाराणा प्रताप नगर,
मार्ग सं- 1(सी), भिखनपुरा,
मुजफ्फरपुर (बिहार)
पिन कोड - 842001

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