सिद्ध साहित्य के अध्ययन - परम्परा - प्रो. (डॉ.) जयकान्त सिंह 'जय'

बौद्ध पंथ के वज्रयानी धारा का सिद्ध आचार्य लोग के अपना धारा के तांत्रिक सिद्धांत आ सिद्धियन से जुड़ल दोहा आ चर्यापदन के ' सिद्ध - साहित्य ' के संज्ञा दिहल बा। जवना के ओर सबसे पहिल धेयान महामहोपाध्याय हर प्रसाद शास्त्री के गइल। सन् १९०७ ई. में नेपाल यात्रा के दौरान शास्त्री जी का उहाँ बौद्ध तांत्रिक वज्रयानी सिद्ध लोग के कुछ दोहा आ चर्यापद मिलल रहे। जवना में उनका सिद्ध आचार्य सरहपा के ११२ छंदन के दोहा सहित आउर सिद्ध लोग के ५० पद, सिद्ध आचार्य कन्हपा के शिष्या मेखला के तइयार कइल 'मेखला' नाम के संस्कृत टीका के अलावे अद्वयवज्र के 'सहजाम्नाय पञ्जिका' भी मिलल रहे।

शास्त्री जी सिद्ध साहित्य से जुड़ल एह कुल्ह सामग्री आ टीकन के संपादित क के दस बरिस बाद 'बंगीय - साहित्य - परिषद्' से 'बौद्ध गान ओ दोहा' नाम से पुस्तक रूप में छपववलें। एकरा में सिद्ध आचार्य लोग बौद्ध तंत्र के तांत्रिक सिद्धियन में सिद्धि पावे खातिर करे जाए वाला योग - साधना का पद्धितन के प्रतीकात्मक भासा रूप में बरनन कइल गइल बा। एह 'बौद्ध गान ओ दोहा' में संग्रहित सामग्रियन का पांडुलिपि के ऊ बारहवीं सदी के होखे के अनुमान कइलें त 'श्रीकृष्ण सङ्कीर्तन' नाम के पुरान बंगला ग्रंथ के संपादक राखालदास बनर्जी 'बौद्ध गान ओ दोहा' में संकलित दोहा आ चर्यापद सबका भासा के तात्विक अध्ययन के आधार पर चउदहवीं सदी का पहिले के पांडुलिपि माने से इंकार करत अधिक से अधिक चउदहवीं सदी के होखे के अनुमान कइलें। शास्त्री जी द्वारा सिद्ध साहित्य सम्बन्धी सामग्रियन के सामने ले अइला के बादे देस - दुनिया के अध्येता विद्वान लोग के धेयान एकरा ओर गइल।

बंगाल क्षेत्र के मणीन्द्रमोहन बसु आ डा. शशिभूषण दास गुप्त जइसन विद्वान का एह 'बौद्ध गान ओ दोहा' का सामग्रियन के अध्ययन से जब ई तथ्य उभरल कि बंगाल के अनेक लोकप्रिय शैव, वैष्णव आ सूफी साहित्य का सम्प्रदायन पर एह सबके प्रभाव झलकऽता त ऊ लोग एकरा विषय-वस्तु के अध्ययन क के बंगाल में प्रचलित विविध साम्प्रदायिक साहित्यन पर एकरा प्रभाव के पड़ताल कइलें। एकरा बाद ' कलकत्ता - साहित्य - सिरीज ' से 'दोहाकोष' निकाले वाला डॉ. प्रबोध चन्द्र बागची आ उनका बाद उनका आ हर प्रसाद शास्त्री का संकलित सामग्रियन का पाठन के संशोधित क के ' मेखला टीका ' सहित ' दोहाकोष ' प्रकाशित करावे वाला डॉ. शाहिदुल्लाह, 'इंट्रोडक्शन टु तांत्रिक बुद्धिज्म' लेखक डॉ. शशिभूषण दासगुप्त, डॉ. विनय तोष भट्टाचार्य, डॉ. सुकुमार सेन, आचार्य नडपाद ( सिद्ध नारोपा ) के 'सेकोद्देश टीका' के संपादक डॉ. मेरियो कारेली, मणीन्द्रमोहन बसु आ महापंडित राहुल सांकृत्यायन आदि विद्वान एह दिसा में बहुत काम कइलें।

महामहोपाध्याय हर प्रसाद शास्त्री, डॉ. शशिभूषण दासगुप्त आदि विद्वान सिद्ध साहित्य का उपलब्ध सामग्रियन के भासा पुरान बंगला होखे के बात कइलें आ सिद्ध लोग के भासा बहुत स्पष्ट ना हो के प्रतीकात्मक रूप में होखे का चलते कई एक विद्वान सिद्ध साहित्य के भासा के 'संध्या भासा' कहलें। ऊ लोग 'संध्या भासा' एह से कहल कि जइसे साँझ के समय ना खूब साफे नजर आवेला आ ना खूब अन्हारे महसूस होला, ओइसहीं सिद्ध साहित्य के दोहा आ चर्यापद सबमें उल्लेखित बौद्ध तांत्रिक सम्बन्धित तंत्र आधारित योग - साधना, ओकर सिद्धांत आ काव्य - विषय के भासा स्पष्ट ना हो पावत रहे। बाद में महापंडित राहुल सांकृत्यायन तिब्बत आ नेपाल से सिद्ध साहित्य के बहुत लमहर खेप भारत ले अइलें आ ओकर भासा नालंदा आ विक्रमशिला के बिहारी वर्ग के मगही बतवलें जवन मागधी अपभ्रंस से निकलल बतावल जाला। काशी प्रसाद जायसवाल भी राहुल जी का मत के समर्थन करत सरहपा आदि सिद्ध लोग के भासा मगही ही मनलें त उहँवे 'बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्' से प्रकाशित अपना संपादित ग्रंथ 'भोजपुरी के कवि और काव्य' में दुर्गा शंकर सिंह सरहपा, भुसुकपा, डोम्भिपा, कुक्कुरिपा आदि अनेक सिद्ध आचार्य लोग का दोहन में प्रयुक्त भोजपुरी के क्रियापद, उपसर्ग, प्रत्यय, परसर्ग, विशेषण आदि सब्दन के आधार पर भोजपुरी के साहित्य मनलें। एह तरह से सिद्ध साहित्य में बंगला, मगही, भोजपुरी आदि बिहार, बंगाल आ उड़िसा प्रांत के कई भासा के प्रयोग पावल जाला।

सिद्ध साहित्य का विद्वान लोग के अधिका समय आ श्रम ओकरा भासिक गुथ्थियन के सझुरावहीं में लाग गइल जवना से ओकरा सिद्धांत आ काव्य-पक्ष पर धेयान बहुत कम जा सकल। सिद्ध साहित्य का सिद्धांत- पक्ष के सबसे पहिले परिचय डॉ. शशिभूषण दासगुप्त देवे के प्रयास करें। बाकिर ओकरा से ओकर सांगोपांग रूप सामने ना आ सकल। ऊ वज्रयानी तांत्रिक पद्धतियन में सहज - पद्धति के स्थान, तत्व-दर्शन, साधना, पूर्वागत बौद्ध परम्परा से लिहल गइल तत्व आदि पर विचार ढंग्गर ना कर सकलें। बाद में नाथ अउर संत सम्प्रदाय का साहित्य के अध्ययन के दौरान एह सिद्ध साहित्य का सिद्धांत आ काव्य - पक्ष पर विचार कइल गइल। फेर डॉ. धर्मवीर भारती अपना पी - एच्. डी. के उपाधि खातिर जब अनुसंधान - कार्य कइलें त बहुत हद तक सिद्ध साहित्य से जुड़ल कई पक्षन पर गम्भीरता से विचार कइल गइल। जवना के अध्ययन के बिना नाथ सम्प्रदाय आ कबीर आदि निर्गुनिया संत लोग का साहित्य के नइखे समुझल जा सकत।
सम्प्रति:


डॉ. जयकान्त सिंह 'जय'
प्रताप भवन, महाराणा प्रताप नगर,
मार्ग सं- 1(सी), भिखनपुरा,
मुजफ्फरपुर (बिहार)
पिन कोड - 842001


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