डॉ प्रमोद कुमार तिवारी के 'भोजपुरियत के थाती' के समीक्षा: विष्णुदेव तिवारी

रघुवीर नारायण के 'बटोहिया' पर भोजपुरी आ हिन्दी आदि अन्य भाषा में बढ़िया बात भइल बा। डॉ प्रमोद कुमार तिवारी भी अपना क़िताब 'भोजपुरियत के थाती' में एह पर सुंदर आ मौलिक ढँग से विचार कइले बाड़े आ बड़ा सलीका से आपन बात कहत बाड़े। अपना आलोचनात्मक आलेख 'भारत देसवा के अमर गायक रघुवीर नारायण' में ऊ एह गीत के एगो बहुत बड़ ख़ासियत का ओर हमनी के ध्यान खींचत कहत बाड़े- "रघुवीर नारायण के पूरा 'बटोहिया' कविता रउआ पढ़ जाईं, एह गीत में एको बार भोजपुर, भोजपुरी, बिहार भा आरा, सिवान जइसन शब्द ना मिली। अगर एकरा भाषा के केहू बदल देबे त' ढेर लोग के ई पते ना चली कि एकर लिखवइया कवनो भोजपुरिया रहे। एह गीत के सबसे बड़ ताकत ह' कि ई गीत सब केहू के मिला के चले के, अपना बारे में ना, दोसरा के बारे में सोचे के संदेश देबे ले।"

कहे के ज़रुरत नइखे कि प्रमोद कुमार तिवारी भारत के एकात्म भाव के ऊपर सकारात्मकता के साथ आपन बात रखत ई कहत बाड़े कि 'बटोहिया' सबके सँगे-साथ मिल के चले के बात कहत बा। ईहे भारतीयता ह, इहे आर्ष परंपरा आ संस्कृति ह- 'संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।'

प्रमोद कुमार तिवारी के अनुसार- "अपना समय आ देश के नब्ज के पकड़ला के अलावा एह गीत में रघुवीर नारायण भोजपुरी समाज के मूल संवेदना के पकड़ले बानीं। प्रवास, भोजपुरिया समाज के स्थाई भाव भा कहीं कि मूल चरित्र बन गइल बा। तरह-तरह के प्रवास, अपना देश से दूसरा देश में प्रवास, अपना इलाका से कोलकाता, मुंबई, सूरत, दिल्ली में प्रवास, लइकिन के बियाह के बाद के प्रवास, तरह-तरह के प्रवास...अइसन बुझाला जइसे ई समाज अभिशप्त बा कि लोग छोड़ के चल जाई आ फेर लवट के कबो तकबो ना करी।"

अपना बात के आगे बढ़ावत डॉ तिवारी कहत बाड़े कि रघुवीर नारायण भोजपुरिया समाज के विरह-भाव के बड़ा नगीचे से अनुभव कइले बाड़े एही से ऊ लिखत बाड़े- 'कामिनी विरह राग गावे रे बटोहिया।'

डॉ तिवारी के विचार बा कि ई गीत रघुवीर नारायण अापन देश छोड़ के प्रवासी बन गइल लोगन के उद्बोधित करे ख़ातिर लिखले बाड़े। एह गीत के माध्यम से ऊ बहरवाँसू बन गइल लोगन के अपना देश के परंपरा, प्रकृति आ संस्कृति के मन परावत कहत बाड़े कि तुहन लोग बटोही बन गइल बाड़' जा, बाकिर अपना देश के भुला मत जा लोग, ओकरा के याद रख' जा।

ई उत्तम सोच-समझ बा। बहुत लोग ई मानेना आ ई साँचो हो सकत बा कि रघुवीर नारायण ई गीत अँग्रेज सम्राट जार्ज पंचम के सम्बोधित कइले बाड़े, जे 1911 में भारत आइल रहले आ जिनका ख़ातिर दिल्ली दरबार सजल रहे।

दरअसल नीक भा जबून देखे-देखावे के ई परंपरा आज के ना ह, आ एके देश के ना ह। 'बटोहिया' में बटोही भारत में रहवइया भी हो सकत बाड़े, भारत से बाहर रहे वाला भारतीय भी हो सकत बाड़े, जार्ज पंचम हो सकत बाड़े, कवि के कवनो मित्र हो सकत बाड़े चाहे कवि स्वयं हो सकत बाड़े। संभव बा, कवि अपने के जगावे ख़ातिर अपने के 'बटोही' कहत होखे-'सूतल अमर के जगावे, रे बटोहिया!'

निराला अपना कालजयी कविता 'जागो फिर एक बार(1929) में देश के लोगन के 'अमृत संतान'( अमृतस्य पुत्रा:) कह के जगावत बाड़े।

तमसा तट पर महर्षि वाल्मीकी अपना प्रिय शिष्य भरद्वाज से कहत बाड़े- 'बबुआ! देख' त' ई घाट सज्जन व्यक्ति के मन निअर कतना निर्मल बा।'# अकर्दमिदं तीर्थ भरद्वाज निशामय। रमणीयं प्रसन्नाम्बु सन्मनुष्यमनो यथा।।# वाल्मीकीय रामायण/बालकाण्ड द्वितीय सर्ग/5#

श्रीमद्भगवद्गीता में त भगवान कृष्ण अर्जुन के सृष्टि के हर रहस्य देखा देले बाड़े। आपन विराट रूप देखे ख़ातिर दिव्य आँखियो देले बाड़े। कृष्ण कहत बाड़े- "हे अर्जुन, अब तूँ हमार सैकड़न-हजारन रंग आ आकृति वाला दिव्य रूपन के देख'-

पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशो'थ सहस्रश:।
नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च।।
-11/06

कहल जाला अँग्रेजी के प्रसिद्ध कवि W H Auden अपना प्रसिद्ध कविता Look, Stranger(1936) में Stranger(अजनबी) शब्द के प्रयोग कवनो नारी, जे उनकर आपन मेहरारुओ हो सकत बाड़ी, ख़ातिर कइले बाड़े। ओजहीं, कुछ लोगन के कहनाम बा कि सुबह-सुबह 'डोवर तट' प खाड़ होके प्रकृति के खूबसूरती निहारत कवि ओकर वर्णन करत अपने के संबोधित क' रहल बा।

डॉ तिवारी के मुताबिक 'बटोहिया' गीत में भारत के शाश्वत मूल्यन के बखान बा। ई गीत 'फिरंगिया' जइसन कई दोसर-दोसर क्रांतिकारी गीतन के प्रेरणास्रोत बनल, जेकरा के गावत अनेक लोग जेल गइले, रचनात्मक आंदोलन कइले आ सामाजिक उत्थान के जतन कइले। रघुवीर नारायण के ई गीत वेदध्वनि अस अपौरुषेय हो गइल।

भोजपुरी आलोचना के क्षेत्र में प्रमोद जी के उपस्थिति नया दीठि, नया कान आ नया जीभ के लखार करवावत बा- कुछ नया देखे-देखावे, सुने-सुनवावे अउर बोले-बोलवावे ख़ातिर। कठोर से कठोर सत्य के सहज विनम्रता के साथ, बिना कुछ छुपवले, सबके सामने रखे में इनकर जोड़ मुश्किल से मिली। अपना एगो आलेख 'भाषा के सामंतवाद आ तेग़ अली के तीखा तेग़' में प्रमोद भोजपुरी में लिखल साहित्य के प्रतिष्ठा ना मिलला के वज़ह से साहित्य आ समाज के होखे वाला नुकसान के बारे में बात करे के क्रम में कहत बाड़े कि " ई खाली एगो संयोग ना ह' कि हीरा डोम के खाली एगो कविता मिलेले आ भरपूर उमिर जीयेवाला तेग़ अली ते़ग के खाली 23 गो ग़ज़ल भेंटाले।"

एकर कारण उनुकरे शब्दन में देखल जाउ- "ई कहीं से मानेवाला बात नइखे कि कवनो कवि अपना जिनगी में खाली एगो कविता लिखी आ ऊ पहिलके कवितवा एतना ताकतवर हो जाई कि सरस्वती पत्रिका के संपादक ओकरा पर मुग्ध हो जइहें। एह बात के पूरा संभावना बा कि ई लोग भरपूर लिखले होई बाकिर साहित्य के धीरोदात्त आ धीरललित वाला परिभाषा के कारण ओकरा के अश्लील, भदेस आ गँवार कह के साहित्य के दुआरी में घुसे से मना क' दिहल गइल होई।"

अइसन संभावना बनत बा बाकिर, संभावना त संभावने ह। ज ले कुछ प्रामाणिक नइखे मिल जात, त ले हमनी के संभावना खोजे ख़ातिर स्वतंत्र बानीं जा।

प्रमोद कुमार तिवारी के एह क़िताब में आइल कुछ अन्य महत्वपूर्ण आलोचना-विवेचना बा-

1. जगावेवाला गुरु गोरखनाथ आ भोजपुरी
2. कवना समाज के हीरो हउअन रैदास?
3. किंवदन्ती बने बदे मजबूर महेंदर मिसिर
4.भिखारी ठाकुर के नाटक आ भोजपुरी समाज
5. भोजपुरिया माटी के पहचान: शैलेन्द्र
6.भोजपुरी के ताकत क' सनदि(जेहल क' सनदि)
7.भोजपुरियत के जीत के कहानी 'बिंदिया'(रामनाथ पांडेय रचित भोजपुरी साहित्य के पहिल उपन्यास)
8. लोहा चबाई के नेवता बा, सेनुर पोंछवाइ के नेवता बा(चंद्रशेखर मिश्र के महाकाव्य 'कुँवर सिंह)

डॉ तिवारी यदि अपना आलोचनात्मक आलेखन में, ओह विषयन से सम्बन्धित अपना पहिले के विद्वानन के कुछ अतिशय महत्वपूर्ण बातनो के यथास्थान चर्चा कइले रहितन(जइसे 'बटोहिया' पर डॉ भागवत शरण उपाध्याय के विचार आदि) त' बेशक उनकर ई आलोचनात्मक कृति जइसन नीमन बा, ओहू से नीमन हो जाइत।
सम्प्रति:
विष्णुदेव तिवारी, बक्सर, बिहार

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