हमके ना बुझाइल: हरेश्वर राय

कतने दिवाली अइली गइली, हमके ना बुझाइल
हम कतने मरीचा खा गइलीं, हमके ना बुझाइल
बचपन- जवानी के मजा किनारी काट लिहलस
कब चुप्पे बुढ़ौती आ गइली, हमके ना बुझाइल।
हरेश्वर राय, सतना, म.प्र.

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